29 दिसंबर के ऐतिहासिक राजभवन मार्च के बाद अखिल भारतीय किसान महासभा व भाकपा-माले ने विगत 5 जनवरी से पूरे राज्य में अनिश्चितकालीन धरना आरंभ कर दिया है. कुछेक जिलों में यह धरना जिला स्तर पर हो रहा है तो भोजपुर में प्रखंड स्तर पर. धरना में दिन-प्रतिदिन किसानों की भागीदारी बढ़ रही है. किसान आंदोलन से भयभीत सरकार कई स्थानों पर कार्यक्रम की अनुमति नहीं दे रही है. सिवान में धरना की अनुमति नहीं दिए जाने पर वहां किसान महासभा के बैनर से लगातार प्रतिवाद मार्च आयोजित कर जिलाधिकारी का घेराव किया जा रहा है. यह धरना दिल्ली आंदोलन के समर्थन में तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने, बिजली बिल 2020 वापस लेने, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद की गारंटी करने, 2006 में नीतीश सरकार द्वारा भंग किए गए मंडी व्यवस्था को फिर से बहाल करने आदि मांगों पर आरंभ हुआ है.
बिहार में मंडी व्यवस्था बहाल करो -- बिहार ऐसा राज्य है जहां 2006 में ही मंडी व्यवस्था को नीतीश सरकार ने सत्ता में आते ही खत्म कर दिया था. इसके स्थान पर उसने पैक्स की व्यवस्था की थी. लेकिन पैक्स व्यवस्था न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान अथवा अन्य फसलों की खरीददारी की व्यवस्था साबित होने की बजाए बिचैलियों के हाथों किसानों की लूट और संगठित भ्रष्टाचार का जरिया ही साबित हुआ है. सरकार पैक्सों को कोई आर्थिक सहायता प्रदान नहीं करती. वह बैंक से कर्ज लेकर किसानों का धान खरीदती है और फिर भारी ब्याज के साथ बैंकों का कर्ज चुकाती है. पैक्स हर समय पैसे के अभाव का तर्क देती है. लिहाजन, बिहार के किसानों को धान का निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य 1868-1888 रु. कभी मिलता ही नहीं है. वे 800-900 रु. प्रति क्विंटल की दर से बिचैलियों को अपना धान बेचने को मजबूर हैं. कई जगहों से ऐसी रिपोर्टें मिली हैं बाद में पैक्स बिचैलिए से 1400-1500 रु. प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदता है, जबकि कागज पर खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दिखाया जाता है. इस प्रकार आधी राशि बिचैलिये और पैक्स के संचालकों के पाॅकेटों में जाता है. जाहिर सी बात है कि कमीशन की एक बड़ी राशि सत्ता में बैठे लोगों के पास भी पहुंचती है. न्यूनतम समर्थन मूल्य मांगने पर जगह-जगह पैक्स अध्यक्षों की दबंगई का मामला भी सामने आया है. हाल ही में, सिवान जिला के दरौली प्रखंड के दोन पंचायत में किसानों से एक ट्रैक्टर धान की तौल करा ली गयी और उसके बाद कहा गया कि पैसा सरकारी दर पर नहीं दिया जाएगा. किसान ने जब इसके विरोध में धान बेचने से इंकार कर दिया, तब पैक्स अध्यक्ष ने कुशवाहा जाति से आने वाले उस किसान की बर्बरता से पिटाई कर दी.
आंदोलनों के दबाव में धान की खरीददारी में कुछ गति आई है, लेकिन प्रक्रिया को बेहद जटिल बनाकर रखा गया है. साथ ही, हर दिन पैक्स की नई अनियमितताओं की खबरें सामने आते रहती है. एक तरफ सरकार कह रही है कि सभी किसानों के धान खरीदे जायेंगे, वहीं उसने धान खरीद की नई तिथि घोषित कर दी है. पहले यह तिथि 31 मार्च तक निर्धारित थी, लेकिन अब इसे घटाकर 31 जनवरी कर दिया गया है सरकार की असली मंशा क्या है, इससे साफ जाहिर होता है.
किसान महासभा के आह्वान पर विगत 5 जनवरी से राज्य में किसानों का धरना आरंभ हुआ. भोजपुर में यह धरना प्रखंड स्तर पर आरंभ हुआ. सहार, तरारी, पीरो, चरपोखरी, संदेश, अगिआंव सहित 10 प्रखंडों पर किसानों का धरना आरंभ हुआ. इन धरनों में तरारी विधायक सुदामा प्रसाद, किसान नेता व पूर्व विधायक चंद्रदीप सिंह, अगिआंव विधायक मनोज मंजिल आदि शामिल हुए. सहार में धरने का तात्कालिक असर भी दिखा जहां विगत 51 दिनों में 20442 क्विंटल धान की खरीददारी के बरक्त 5 जनवरी को 2500 क्विंटल धान की खरीददारी की गई. इसी दिन सिवान में किसानों ने शहर में एक बड़ा प्रतिवाद मार्च निकाला और मांग पत्र सौंपने जिलाधिकारी के समक्ष पहुंचे. सिवान में प्रशासन ने धरना आयोजित करने की अनुमति प्रदान नहीं की. अतः किसान सभा के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने विरोध में मार्च किया. 5 जनवरी को ही पश्चिम चंपारण के नरकटियागंज में एक विशाल महापंचायत का आयोजन किया गया. इस महापंचायत में सिकटा विधायक बीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता और किसान महासभा के अध्यक्ष विशेश्वर यादव शामिल हुए. इस महापंचायत से किसानों के उपर्युक्त मांगों के साथ-साथ गन्ना खरीददारी के सवाल को प्रमुखता से उठाया गया. महापंचायत ने कहा कि गन्ना का भी मूल्य निर्धारित होना चाहिए और वह कम से कम 400 रु. प्रति क्विंटल होना चाहिए. पंचायत से गन्ना प्रभेद 2061 समेत कई प्रभेदों को रिजेक्ट प्रभेद की श्रेणी में डालने की की कार्रवाई को वापस लेने की मांग की. कहा यह सरकार और चीनी मिलों के लिए लूट का धंधा बन गया है. 2061 समेत तमाम घोषित रिजेक्ट प्रभेद को सामान्य श्रेणी में डालने की मांग उठाई गई. इसी दिन अरवल में भी धरना आरंभ हुआ, जिसमें अरवल विधायक महानंद सिंह शामिल हुए. गया में भी धरना आरंभ हुआ, जिसमें कोयल सिंचाई परियोजना को फिर से आरंभ करने, बीथो वीयर बांध व मुहाने जलाशय समेत अन्य लंबित परियोजनों को आरंभ करने, पैक्सों की मनमानी पर रोक लगाने आदि सवालों को भी उठाया गया. नालंदा के हिलसा में आरंभ हुए किसान धरना को अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार राज्य सचिव रामाधार सिंह ने संबोधित किया. धरना में बड़ी संख्या में किसानों की भागीदारी रहीनवादा में कड़ाके की ठंड के बावजूद शहर के रैन बसेरा में धरना आरंभ हुआ.
दूसरा दिन (6 जनवरी): 6 जनवरी को धरनों की संख्या में और वृद्धि हुई. इसी दिन पटना में भी किसान धरना आरंभ होना था लेकिन प्रशासन के द्वारा धरने की अनुमति नहीं मिलने के कारण वह आरंभ नहीं हो सका. जहानाबाद, दरभंगा, पूर्णिया, भागलपुर, मधुबनी आदि नए जिला केंद्रों पर धरने आरंभ हुए. 5 जनवरी से शुरू हुए धरने पूर्ववत जारी रहे.
अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार राज्य सचिव रामाधार सिंह, राज्य सह सचिव उमेश सिंह और जिला सचिव कृपानारायण सिंह के नेतृत्व में धरना आरम्भ हुआ. धरना में अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के महासचिव धीरेंद्र झा, फुलवारी विधायक गोपाल रविदास, ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव, मुर्तजा अली, पप्पू शर्मा, बृजमोहन दास, देवेंद्र वर्मा, राजद के अमीर अहमद व बसरा जी, इंसाफ मंच की आफसा जबीं आदि लोग शामिल हुए.
वक्ताओं ने कहा कि जैसे-जैसे एमएसपी का आश्वासन बढ़ रहा है उलटे धान के दाम गिर रहे हैं. कहा कि सरकार वार्ता तथा किसानों की समस्या को हल करने के प्रति गम्भीर नहीं है. धान अब 900 से 1000 रु. क्विंटल बिक रहा है. केंद्रीय मंत्री गडकरी की चर्चा करते हुए कहा गया कि भाजपा के नेता लगातार भ्रम की स्थिति बनाकर रखे हुए हैं. विदित है कि गडकरी ने एमएसपी की मांग को गलत बताते हुए कहा कि यह बाजार के रेट से ज्यादा है. यह तब कहा जब सरकार कह रही है कि एमएसपी जारी रहेगी. धरना के माध्यम से खाद्य पदार्थों से एथेनाॅल बनाने के फैसले की कड़ी निंदा की गई. कहा गया कि इससे खाद्य असुरक्षा बढ़ेगा. बिहार में भंग कृषि उत्पादन बाजार समिति को बहाल नही कर रही है.
दरभंगा में 7 जनवरी को पोलो मैदान से लहेरियासराय टाॅवर तक नरेन्द्र मोदी व अंबानी-अडानी का पुतला लेकर प्रतिवाद मार्च निकाला गया और लहेरियासराय स्टेशन पर पुतला दहन किया गया. इसमें अखिल भारतीय किसान महासभा के नेताओं के अलावा भाकपा-माले के भी नेतागण शामिल हुए. पुतला जलाने के बाद नारे लगाते हुए प्रदर्शनकारी पोलो मैदान में धरना पर बैठ गए. नेताओं ने कहा कि यदि सरकार-प्रशासन ने जल्द धान की खरीद आरंभ नहीं की, तो किसानों का चक्का जाम आंदोलन आरंभ होगा. प्रदर्शन में अच्छी संख्या में किसानों की भागीदारी रही.
इस दिन भोजपुर के जगदीशपुर प्रखंड पर आयोजित धरने में 50 ट्रैक्टरों पर लदे धान के साथ किसानों ने अपना विरोध जताया. आंदोलन के दबाव में बीडीओ-सीओ ने आंदोलित किसानों की मांगों को केंद्र व राज्य सरकार तक अविलंब पहुंचाने का आश्वासन दिया. आरा शहर में इन्हीं सवालों पर प्रधानमंत्री का पुतला फूंका गया. कार्यक्रम में किसान महासभा के अलावा इंसाफ मंच के कार्यकर्ता भी शामिल हुए.
7 जनवरी को सिवान में एक बार फिर से प्रतिवाद मार्च निकाला गया, जिसका नेतृत्व इलाके के चर्चित किसान नेता अमरनाथ यादव ने किया. समस्तीपुर में पूर्व सूचना के बावजूद जिलाधिकारी ने किसान धरना को पुलिस बल व मजिस्ट्रेट की तैनाती करके रोक दिया. इससे आक्रोशित किसानों ने सरकारी बस स्टैंड से विरोध मार्च निकाला और स्टेडियम गोलबंर व समाहरणालय होते हुए बस स्टैंड पर मार्च को समाप्त किया. नेताओं ने कहा कि प्रशासन सरकार के इशारे पर धरना को जितना प्रभावित करने की कोशिश करे, बिहार के किसान अब जाग चुके हैं.