भारत में शिक्षा की नींव डालने वाली सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की साझी विरासत का वाहक बनने के संकल्प के साथ अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने ब्राह्मणवाद, पितृसत्ता और साम्प्रदायिकता के खिलाफ सामाजिक न्याय, समानता और आजादी के लिए सप्ताह भर चलनेवाले देशव्यापी अभियान की घोषणा की है. यह अभियान सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की साझी विरासत को याद करने, महिलाओं की सम्पूर्ण आजादी के लिए संगठित संघर्ष करने और महिला आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए है.
पूरे देश में सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस 3 जनवरी से फातिमा शेख के जन्मदिवस 9 जनवरी तक साझी विरासत का सप्ताह मनाने के दौरान कई कार्यक्रम आयोजित हुए हैं.
झारखंड के गिरीडीह के बगोदर में (ऐपवा) की बगोदर ईकाई ने सरिया रोड स्थित शहीद महेंद्र सिंह भवन में उन्हें याद किया, उनकी तसवीर पर माल्यार्पण किया और उनके महिला शिक्षा और आधुनिकता के रास्ते को वर्तमान समय में और भी बुलंद करने का संकल्प दोहराया.
बगोदर मध्य की जिला पार्षद सरिता महतो के संचालन व पूर्व पंचायत समिति सदस्य खगिया देवी की अध्यक्षता में हुए कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बगोदर पश्चिमी की जिला पार्षद पूनम महतो ने कहा कि सावित्रीबाई ने शिक्षा का दीप जलाया और समाज को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाया. उनके सुझाये रास्ते को आज बुलंद करने की जरूरत है. उप प्रमुख व ऐपवा प्रखंड सचिव सरिता साव ने कहा कि सावित्रीबाई फुले के सामाजिक उत्तरदायित्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 1897 में प्लेग मरीजों की सेवा करते हुए खुद प्लेग से पीड़ित होकर दुनिया से विदा लीं.
पं. स. सदस्य वसंती देवी, लक्ष्मी देवी, ललित देवी, फूलमती देवी, हेमंती देवी, टुकनी देवी, कुसनी देवी, चंपा देवी, जागेश्वरी देवी, मूल्या देवी, मंजू देवी, सुमित्रा देवी, सोनिया देवी समेत दर्जनों महिलाएं मौजूद थीं. बगोदर के राजगढ़ (चक मंजू पंचायत) में ऐपवा नेत्री का. मीना देवी के नेतृत्व में सावित्रीबाई फुले की 190वीं जयंती मनाई गई.
गढ़वा के मेराल प्रखंड के बौराह और डंडा प्रखंड के कोर्टा गांव में ऐपवा के नेतृत्व में सावित्री बाई फुले की 190वीं जयंती में मनाई गई. इस मौके पर ऐपवा जिला अध्यक्ष कामरेड सुषमा मेहता ने कहा कि सावित्रीबाई और फातिमा शेख दोनों में लक्ष्य के प्रति अटूट एकता व प्रतिबद्धता थी. वे दोनों आज भी प्रेणादायक है. कार्यक्रम में ललिता देवी, आरती देवी, वसंती देवी, लालती देवी, सुमित्रा देवी, मैत्री देवी, सविता देवी, माया देवी, लालमोती देवी, कमला देवी, राजकुमारी देवी, अस्तुरणा देवी, संगीत देवी, उर्मिला देवी, गायत्री देवी, गिरजा देवी, फूला देवी, सुकीर्ति देवी, चिंता सेवी, कुनंदिनी देवी, प्रमिला देवी, सुरतमनिया देवी, मीना देवी, शीला देवी, राधिका देवी, सीता देवी, राजपति देवी, सुमित्री देवी सहित कई महिलाएं शामिल हुईं.
देवघर के मोहनपुर स्थित विवाह भवन में ऐपवा और तेजस्वनी परियोजना ने संयुक्त रूप से सावित्री बाई फुले का जन्म दिवस मनाया. इस अवसर पर भारत की शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा कि विगत साल के 25 मार्च से पूरे देश में ताला बंदी चल रही है. मंदिर-मस्जिद सबके ताले खुल गये. बिहार में चुनाव भी संपन्न हुआ और सरकार भी बन गई. बंगाल में भी बड़ी बड़ी रैलियां हो रही हैं. लेकिन, जो विद्या मंदिर है, उस पर मोदी सरकार ने आज तक ताला लगा रखा है.
कार्यक्रम का नेतृत्व ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव का. गीता मंडल, तेजस्विनी परियोजना के प्रखंड समन्वयक सिकंदर कुमार व निहारिका, प्रीति, संजू, सोनी, मांगी देवी (ऐपवा नेत्री), चमेली देवी, मंजू देवी, संजू देवी, सुचिन्ता झा, शम्भू तुरी (इंनौस नेता), विनय तांती, समाज सेवी सुरेश दास, शंकर दास व भाकपा(माले) जिला कमिटि सदस्य जयदेव सिंह आदि समेत सैकड़ों महिलाओं और छात्रों ने भाग लिया.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सावित्रीबाई फुले-फातिमा शेख को याद करते हुए ऐपवा नेत्री मीना सिंह ने कहा कि आज न सिर्फ स्त्री शिक्षा खतरे में है, बल्कि हमारी साझी विरासत भी खतरे में है. इसलिए इस मौके पर न सिर्फ फुले-फातिमा को याद करना है बल्कि उनके द्वारा स्थापित आदर्शाे का अनुसरण भी करना है. ऐपवा नेता ने कहा कि मोदी सरकार ‘बेटी पढाओ-बेटी बचाओ’ के नारे के साथ आई थी लेकिन बेटियों पर हो रही बर्बरता पर चुप्पी साधे बैठी है. इसके खिलाफ एक बड़े जनांदोलन की आवश्यकता पर बात हुई. कार्यक्रम में लज्जावती, उर्मिला, परवीन, चांदनी, रामदेवी आदि महिलाएं शामिल हुईं.
बिहार के अधिकांश जिलों में सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख को याद करते हुए सम्मेलन, गोष्ठी, परिचर्चा आदि का आयोजन किया गया. पटना शहर में आशियाना, कौशलनगर, चितकोहरा, पटना सिटी, अदालतगंज आदि जगहों पर कार्यक्रम हुए जिनमें अच्छी तादाद में छात्राओं व घरेलू कामकाज से जुड़ी मेहनतकश महिलाओं ने भाग लिया. कुछ जगहों पर आंगनबाड़ी सेविकाओं और विद्यालय रसोइयों ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया. पटना के पालीगंज में एक बड़ी गोष्ठी आयोजित हुई जिसमें नवनिर्वाचित विधायक भाकपा(माले) विधायक का. संदीप सौरभ भी शामिल रहे.
गया में रीता वर्णवाल और नवादा में सावित्री देवी व सुदमिया देवी के नेतृत्व में कार्यक्रम हुए. सिवान में सोहिला गुप्ता और मालती राम के नेतृत्व में दो जगहों पर सावित्री बाई फुले की जयंती मनाई गई. भोजपुर जिले के गड़हनी में काइंदु सिंह नेतृत्व में महिलाओं का सम्मेलन हुआ. वैशाली में साधना और शांति के नेतृत्व में कार्यक्रम हुए. दरभंगा व भभुआ में भी कार्यक्रम आयोजिन हुए.
पटना सिटी के शहीद पीर अली चिकित्सालय में आयोजित कार्यक्रम में ब्राह्मणबाद, पितृसत्ता व सांप्रदायिकता के खिलाफ समानता, भाईचारा व आजादी के लिए संघर्ष का संकल्प लिया गया. विभा गुप्ता की अध्यक्षता व राखी मेहता के संचालन में हुए कार्यक्रम में आइसा नेत्री अनुमाला मेहता ने एप्रोच पेपर रखा. मुख्य वक्ता ऐपवा राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे ने कहा कि आज उन्हीं विचारों व शक्तियों का बोलबाला है जिनके खिलाफ सावित्री बाई फुले-फातिमा शेख ने मिल-जुलकर ताजिंदगी संघर्ष चलाया.
तलाश पत्रिका की संपादक मीरा दत्ता ने कहा कि सावित्री बाई फुले व फातिमा शेख के समय की चुनौतियां आज भी मौजूद हैं. मौजूदा सरकार स्त्री, दलित, मुस्लिम व किसान विरोधी है. विभा गुप्ता ने स्वरचित कविता ‘हमारी विरासत’ का पाठ किया. कार्यक्रम को भाकपा(माले) नेता नसीम अंसारी, अनय मेहता, राजेश कुशवाहा ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम में रसोईया संघ नेताओं ने भी शिरकत की.
आज जब समाज में हिंदू-मुस्लिम के बीच विभाजन, दलित उत्पीड़न और महिलाओं पर हिंसा बढ़ती जा रही है तब जरूरी हो जाता है कि हम इन दो नायिकाओं को याद करें जिन्होंने आज से डेढ़ सौ साल पहले हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करते हुए दलितों और महिलाओं की शिक्षा के लिए कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया.
आज इस देश मे सरकार जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बोल रही है, साम्प्रदायिक जहर घोलकर नफरत फैलाने की राजनीति कर रही है. मनुस्मृति को जायज मानते हुए महिला विरोधी कानूनों का निर्माण कर रही है. संविधान में बालिग लड़का-लड़की को अपनी मर्जी से शादी करने और अपना धर्म चुनने के अधिकार के विरुद्ध योगी सरकार ‘लव जिहाद’ का नाम लेकर एक ऐसा कानून लायी है जिसमें शादी के बाद धर्म परिवर्तन करने पर नवविवाहितों को प्रताड़ित किया जा रहा है. हमें भाजपा के इस घृणित महिला विरोधी हमलों का हर स्तर पर विरोध करना होगा.
सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी को महाराष्ट्र में हुआ था. 9 साल की उम्र में उनका विवाह 13 साल के ज्योतिबा फुले के साथ हुआ था. उस समय के समाज में किसी भी जाति की लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई करना बहुत कठिन था फिर भी ज्योतिबा फुले ने सावित्रीबाई को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया. फुले के नेतृत्व में आरंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद सावित्रीबाई शिक्षक प्रशिक्षण सर्टिफिकेट की पढ़ाई के लिए अहमदनगर गईं, जहां फातिमा शेख उनकी सहपाठी थीं.
औपचारिक शिक्षा के बाद फुले और सावित्रीबाई ने मिलकर भीलवाड़ा नाम की जगह पर लड़कियों के लिए पहला स्कूल शुरू किया. यह स्कूल सभी जाति की लड़कियों के लिए था. इसी साल उन्होंने दलित लड़कियों के लिए एक और स्कूल शुरू किया. इस तरह 1848 से 1852 के बीच इन दोनों लोगों ने मिलकर कम से कम 12 स्कूलों की स्थापना की. लड़कियों और शूद्रों (दलित और अतिपिछड़े) के लिए स्कूल खोलना और महिला शिक्षकों का उन्हें पढ़ाना - यह दोनों ही उस समय के समाज में किसी सामाजिक क्रांति से कम न था. स्कूल जाते समय सावित्रीबाई पर गांव वाले पत्थर और गोबर फेंकते, पर इससे सावित्रीबाई का लड़कियों को शिक्षित करने का संकल्प और ज्यादा मजबूत हुआ. सावित्रीबाई ने महिलाओं को शिक्षा के लिए सिर्फ इसलिए जागरूक नही किया कि वे एक अच्छी गृहिणी बनें बल्कि वह चाहती थीं कि महिलाएं पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त कर सकें. सावित्रीबाई ने बाल विवाह और नशा के खिलाफ भी अभियान चलाया. साथ ही, उन्होंने गर्भवती बाल विधवाओं के लिये आश्रय घर की भी शुरूआत की थी. ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और जाति आधारित गुलामी से समाज को मुक्त कराने के उद्देश्य से सन 1873 में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की गई तो सावित्रीबाई इसकी महिला इकाई की अध्यक्ष थीं. इसकी साप्ताहिक बैठकों में जनता को शिक्षित करने और विधवा पुनर्विवाह जैसे मसलों पर खुलकर चर्चाएं होती थीं. 1897 में पुणे जिले में व्यापक पैमाने पर प्लेग नामक महामारी फैल गई. सावित्रीबाई निजी स्तर पर राहत कार्य में जुट गईं और खुद प्लेग की चपेट में आ गईं. 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हो गई.
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख ने लड़कियों, खासकर दलित और मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को शिक्षित करने में अहम योगदान दिया था. फातिमा शेख सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं. जब ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए स्कूल खोलने का बीड़ा उठाया, तब फातिमा शेख ने भी इस मुहिम में उनका साथ दिया. फातिमा शेख ने सावित्रीबाई के स्कूल में पढ़ाने की जिम्मेदारी भी संभाली. इसके लिए उन्हें समाज के विरोध का भी सामना करना पड़ा था. ज्योतिबा फुले के पिता ने जब दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे उनके कामों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था, तब फातिमा शेख के बड़े भाई उस्मान शेख ने ही उन्हें अपने घर में जगह दी.
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