भाकपा(माले) ने चल रहे देशव्यापी किसान आंदोलन के समर्थन में महागठबंधन की पार्टियों राष्ट्रीय जनता दल, भाकपा और माकपा से आगामी 25 जनवरी को (गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर) पूरे बिहार में संयुक्त रूप से मानव श्रृखला बनाने की अपील की है. भाकपा(माले) राज्य सचिव कुणाल ने विगत 2 जनवरी को पत्र लिखकर यह अपील की है. कार्यक्रम पर सहमति बन जाने के बाद जल्द ही महागठबंधन की पार्टियों की बैठक बुलाई जाएगी जिसमें कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जाएगा.
महागठबंधन की पार्टियों को लिखे पत्र में भाकपा(माले) ने कहा है कि किसान विरोधी तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने, बिजली बिल 2020 वापस लेने और स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करते हुए सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी की मांग पर चल रहा किसान आंदोलन अब देशव्यापी स्वरूप ग्रहण कर चुका है. दिल्ली के बाॅर्डर पर कड़ाके की ठंड के बावजूद किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है. अब तक कई दर्जन किसानों की मौत भी हो चुकी है, लेकिन मोदी सरकार अपने अड़ियल रवैये पर कायम है. उनकी मांगों पर ईमानदारी पूर्वक विचार करने की बजाए वार्ताओं का दिखावा कर रही है और आंदोलन को बदनाम करने और उसमें फूट डालने की ही कोशिशें चला रही है.
आगे कहा गया है कि भाजपा किसान आंदोलन को बड़े फार्मरों और मूलतः पंजाब का आंदोलन बताकर उसकी धार कमजोर कर देना चाहती है, लेकिन विगत दिनों बिहार में भी विपक्षी पार्टियों के नेतृत्व में लगातार कई आंदोलन हुए हैं. 8 दिसंबर के भारत बदं में हम सभी साथ थे. बिहार की राजधानी पटना में 29 दिसंबर को दसियों हजार किसानों ने उपर्युक्त मांगों पर ऐतिहासिक राजभवन मार्च करके साबित कर दिया कि देश के किसान मोदी सरकार की असली मंशा को समझ चुके हैं कि वह दरअसल खेती-किसानी को काॅरपोरेटों के हवाले कर देश को कंपनी राज की ओर धकेल देना चाहती है. इस राजभवन मार्च में छोटे-मझोले-बटाईदार किसानों और कृषक मजदूरों की बड़ी संख्या शामिल हुई. तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बिहार में लगातार जारी आंदोलनों ने निश्चित रूप से दिल्ली बाॅर्डर का घेराव कर रहे किसानों को नई ताकत प्रदान की है.
भाकपा(माले) ने याद दिलाया है कि आज से एक साल पहले देश में सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ चल रहे आंदोलन को भी भाजपा ने यह कहकर अलगाव में डालने की कोशिश की थी कि यह तो मुस्लिमों का आंदोलन है. इस चुनौती को हम सबने स्वीकार किया था और कहा था कि सीएए, एनआरसी व एनपीआर जैसे प्रावधान अल्पसंख्यकों के साथ-साथ गरीबों, मजदूरों, जनता के व्यापकतम हिस्सों और संविधान व लोकतंत्र के खिलाफ हैं. बिहार में हमने एकजुट होकर लड़ाई लड़ी थी और 25 जनवरी 2020 को पूरे बिहार में मानव श्रृंखला का निर्माण किया था. हम एक बार फिर से गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मानव श्रृंखला का निर्माण कर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बिहार के किसान आंदोलन को एक नई ऊंचाई और देश में चल रहे आंदोलन को बल प्रदान कर सकते हैं.