वर्ष - 29
अंक - 52
26-12-2020


उत्तर प्रदेश का गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निरोधक अधिनियम, 2020, जो महिलाओं की “लव जिहाद” से रक्षा करने का दावा करता है, वास्तव में महिलाओं की स्वायत्तता और इच्छा के खिलाफ हिंसक हमला हैं. यह अध्यादेश – और साथ ही इसी किस्म के अध्यादेश जो उत्तराखंड में लागू हैं तथा भाजपा-शासित अन्य राज्यों में लागू होने की प्रक्रिया में हैं – हिंदू औरतों को ऐसा इन्सान नहीं मानते जो अपनी इच्छानुसार चुनाव कर सकती हैं, बल्कि महज हिंदू समुदाय की सम्पत्ति मानते हैं.

हम देख सकते हैं कि इस अध्यादेश के तहत एक के बाद एक दर्ज किये गये मुकदमों में किस तरह संघी लठैतों और पुलिस के जहर भरे गठजोड़ द्वारा बालिग हिंदू महिलाओं को उनके मुस्लिम जीवन-साथियों से हिंसात्मक तरीके से अलग किया जा रहा है. इस अध्यादेश के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किये गये लगभग सभी मामलों में महिलाओं ने यह दावा किया है कि उन्होंने अपनी पसंद से प्रेम किया और शादी की है – जबकि उनके मां-बाप ने संघी गुंडों द्वारा भड़काये जाने पर ही शिकायत दर्ज कराई है. एक मामले में तो ऐसा हुआ है कि संघी लठैत और पुलिसवाले एक शादी के समारोह में जबर्दस्ती घुस गये और उन्होंने होती हुई शादी को रोक दिया, हालांकि इस शादी को दूल्हा और दुल्हन दोनों के मां-बाप ने अपनी स्वीकृति और आशीर्वाद दे रखा था.

उत्तर प्रदेश में अंतर्धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों पर हमला करने वाले इन सड़क-छाप गुंडों का मनोबल इसलिये बढ़ा हुआ है क्योंकि उनका एक अपना आदमी ही आज उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन बैठा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस अध्यादेश की घोषणा करते हुए धमकी दी थी कि “जो लोग लव जिहाद करेंगे उन्हें अपने अंतिम संस्कार की तैयारी कर लेनी चाहिये”. यह अध्यादेश इसी बीच पहली बलि ले चुका है: मुरादाबाद के एक नवयुवा अंतर्धामिक शादीशुदा जोड़े की पहली संतान की गर्भ में ही मौत की शक्ल में. एक गर्भवती महिला को बलपूर्वक अपने पति से अलग कर दिया गया और “शेल्टर होम” में कैद कर दिया गया, और तब एक सरकारी अस्पताल में उसका बलपूर्वक गर्भपात करा दिया गया. डाक्टरों ने गर्भाशय के संक्रमण को रोकने के लिये उसको एंटीबायोटिक देने से मना करके उस महिला के जीवन, उसके स्वास्थ्य और भविष्य में उसकी गर्भ धारण करने की क्षमता को भी खतरे में डाल दिया.

मुरादाबाद का वाकया केवल कानून के “दुरुपयोग” का मामला नहीं है. इस कानून को ही इस तरह रचित किया गया है कि किसी बालिग महिला की इच्छा को ठुकराने और कदमों तले रौंदने के लिये इसका इस्तेमाल किया जाये, क्योंकि इस कानून के तहत किसी महिला के परिवार वालों को उस महिला की सहमति के बिना भी शिकायत दर्ज कराने की इजाजत दी गई है.

उत्तर प्रदेश का अध्यादेश और अन्य भाजपा-शासित राज्यों में इसी किस्म के अन्य कानून मनुस्मृति के उन कानूनों से प्रेरित हैं जो अंतर्जातीय विवाहों को प्रतिबंधित करते हैं, और साथ ही वे नाजी जर्मनी में अंतर्नस्लीय शादियों को आपराधिक करार देने वाले कानूनों तथा दक्षिण अफ्रीका एवं संयुक्त राज्य अमरीका में होने वाले रंगभेद से भी प्रेरित हैं.

उत्तर प्रदेश के इस प्रेम-विरोधी अध्यादेश के खिलाफ कई लोगों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील दायर की है और रद्द कर देगा. हाल में ऐसे अनेक मामले हुए हैं जिनमें अदालतों ने बालिग महिलाओं के अपनी पसंद से प्रेम करने और शादी करने के अधिकार की रक्षा करते हुए फैसला सुनाया है. मगर यह तथ्य ही, कि इस अधिकार को लगातार कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, यह दर्शाता है कि यह अधिकार आज कितना दुर्दशाग्रस्त और जर्जर हो गया है. इन प्रेम-विरोधी कानूनों के जरिये भारत की शासक पार्टी इस पहले से जर्जर अधिकार का गला घोंटना चाहती है.

भाजपा भारत को इस रूप में परिभाषित करने की कोशिश कर रही है कि यहां प्रेम से नफरत की जाती है और नफरत को ही पसंद किया जाता है. अतः यह भारतवासियों का कर्तव्य है कि वे इसके खिलाफ मुंहतोड़ जवाब दें और इसके विपरीत को ही सच साबित करें. हमें नफरत और भेदभाव के खिलाफ प्रेम करने वाले हर जोड़े की रक्षा करने के लिये उठ खड़ा होना होगा. हमें प्रेम-विरोधी कानूनों को धता बताते हुए उनका प्रतिरोध करना होगा, और यह मांग करनी होगी कि इन कानूनों को रद्द किया जाये. हमें यह मांग करनी होगी कि विशेष विवाह कानून (स्पेशल मैरिज ऐक्ट) में परिवर्तन किये जायें, जिसमें उन प्रावधानों को खारिज किया जाये जो किसी जोड़े के शादी करने के निजी फैसले में पितृसत्तात्मक हस्तक्षेप तथा राजनीतिक दखलदारी को आसान बनाते हैं.

हमें उन हिंदू श्रेष्ठतावादी गुंडों का प्रतिरोध करने के लिये लोगों को गोलबंद करना होगा जो अंतर्धामिक विवाह करने वाले जोड़ों को आतंकित करते हैं. हमें मांग करनी होगी कि कोई भी सरकारी कर्मचारी, जो इन गुंडों के एजेंट के बतौर काम करता हो और होने वाली शादियों के बारे में इन निगरानी करने वाले गुंडा गिरोहों को सूचना देता हो, उसे नौकरी से निकाल बाहर करना होगा और उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करना होगा. हमें ऐसे तमाम कानूनों को, जो धर्म-परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाते हों, खत्म करने की मांग करनी होगी. किससे शादी करें, इसकी स्वायत्तता महिलाओं को देनी होगी और दबे-कुचले समुदायों को यह स्वायत्तता देनी होगी कि वे किस धर्म को अपनाएं, और इसमें उन्हें राज्य को कोई कैफियत नहीं देनी होगी.

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), प्रेम-विरोधी कानून, कृषि सम्बंधी तीन नये कानूनों और लेबर कोड कानून – इन सभी कानूनों को इस इरादे से बनाया गया है कि इनके जरिये कठिन संघर्ष के बल पर जनता द्वारा हासिल किये गये संवैधानिक अधिकारों को खत्म कर दिया जायेगा और एक ऐसे निरंकुश, कारपोरेट-परस्त हिंदू राष्ट्र का निर्माण किया जायेगा जिसमें मजदूरों और किसानों, महिलाओं, दलितों एवं अल्पसंख्यकों, सभी को अधिकार-सम्पन्न नागरिकों के बजाय गुलाम बना दिया जायेगा. इन तमाम संविधान-विरोधी कानूनों को उलट देने के लिये डटकर संघर्ष करें और भारत के हर व्यक्ति की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता और आजादी को बुलंद करें!