वर्ष - 29
अंक - 51
19-12-2020


कामरेड त्रिदिव घोष (82 वर्ष) का विगत 15 दिसंबर 2020 को रांची के बरियातु स्थित रामप्यारी अस्पताल में निधन हो गया. कोरोना से संक्रमित होने के कारण वे अपनी पत्नी व महिला नेत्री मालंच घोष के साथ ही पिछले कुछ दिनों से यहां भर्ती थे. वे इससे पूरी तरह ठीक भी हो चुके थे लेकिन अस्पताल से विदा होने के एक दिन पहले शाम 4.30 बजे अचानक पड़े दिल के दौरे ने उनकी जान ले ली.

युवावस्था में जर्मनी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे जब देश लौटे तो बोकारो स्टील प्लांट में इंजीनियर नियुक्त हुए. इसी दौरान वे पीयूसीएल से जुड़कर नागरिक अधिकारों के लिए सक्रिय हुए. लेकिन, 70-80 के क्रांतिकारी दशक में बिहार व झारखंड के जनांदोलनों ने उन्हें इस कदर प्रभावित किया कि वे सरकारी नौकरी छोड़कर क्रांतिकारी वामपंथी राजनीति के पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता बन गए. उन्होंने झारखंड के जननेता का. महेंद्र सिंह के साथ मिलकर देश के पहले क्रांतिकारी जन मोर्चा ‘इंडियन पीपुल्स फ्रंट’ के गठन में अहम भूमिका निभाई और प्रख्यात झारखंड आंदोलनकारी बुद्धिजीवी डा. वीपी केसरी समेत कई महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यकर्त्ताओं की टीम के साथ 1982 में दिल्ली में आयोजित स्थापना सम्मेलन में शामिल हुए. वे आईपीएफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और बाद में बिहार-झारखंड के सहसचिव बने. वे 1978 के आसपास भाकपा(माले) के गहन संपर्क में आए थे. 1980 के आखिरी महीनों में वे भाकपा(माले) में शामिल हुए. आगे चलकर वे इसकी मध्य बिहार रिजनल कमेटी का सदस्य भी बने.

90 के दशक में रांची के हेसांग में पुलिसिया उत्पीड़न से तीन युवकों की मौत के खिलाफ जुझारू आंदोलन संगठित करने के बाद वे व्यापक चर्चा में आ गए. का. महेंद्र सिंह के साथ मिलकर उन्होंने आईपीएफ व झारखंड मजदूर किसान समिति के बैनर तले झारखंड अलग राज्य की मांग को लेकर चले कई बड़े जन अभियानों का नेतृत्व किया. तत्कालीन सरकार द्वारा का. महेंद्र सिंह को झूठे मुकदमों में पफंसाने व पफांसी की सजा सुनाने के खिलाफ उन्होंने ‘न्याय मंच’ गठित कर जुझारू नागरिक अधिकार आंदोलन संगठित किया और सजा रद्द करवायी. उन्होंने हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से आईपीएफ प्रत्याशी के बतौर चुनाव भी लड़ा.

उन्होंने कुख्यात ‘पोटा कानून’ के खिलाफ नागरिक अधिकार आंदोलनों को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने जल-जंगल-जमीन के मुद्दों व आदिवासी समुदायों पर होने वाले सरकारी-प्रशासनिक दमन के सवालों पर चलने वाले ‘विस्थापन विरोधी’ जन आंदोलन तथा वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्त्ता फादर स्टेन स्वामी के साथ मिलकर कई संघर्ष अभियानों का संचालन किया.

बढ़ती उम्र और कई गंभीर बीमारियों का सामना करने के कारण हाल के वर्षों में जन आंदोलनों में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी कम होती गई. लेकिन वे सदैव ही क्रांतिकारी राजनीति और नागरिक अधिकारों के प्रवक्ता बने रहे.

16 दिसंबर को संपन्न हुई उनकी अंतिम यात्रा में पार्टी नेता व बगोदर विधायक का. विनोद सिंह, राज्य कमेटी सदस्य कामरेड भुवनेश्वर केवट व अनिल अंशुमन ने हिस्सा लिया. भाकपा(माले) राज्य मुख्यालय (रांची) में आयोजित उनकी श्रद्धांजलि सभा में भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य भी मौजूद रहे.

का. त्रिदिव घोष एक प्रखर वामपंथी विचारक और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़नेवाले जमीनी कार्यकर्ता थे. उनका निधन झारखंड राज्य नवनिर्माण के स्वप्नद्रष्टा डा. रामदयाल मुंडा, डा. वीपी केसरी और का. महेंद्र सिंह की पीढ़ी के एक और महत्वपूर्ण कड़ी का टूट जाना है.

– अनिल अंशुमन