वर्ष - 28
15-10-2020


बिहार विधान सभा का चुनाव कोविड-19 की परछाई में हो रहा है. चुनाव प्रचार व लोगों के इकट्ठा होने पर बहुत सी पाबंदियां भी लगी हुई हैं. बिहार का एक बड़ा हिस्सा अब भी बाढ़ की चपेट से उबर नहीं पाया है. बिहार पहला राज्य है जहां इस तरह की पाबंदियों के बीच चुनाव हो रहा है. हमने चुनाव आयोग से अनुरोध किया था कि ऐसी महामारी के मद्देनजर वे मतदान की तारीख इस तरह तय करें कि चुनाव में लोगों की भागीदारी पर बुरा असर न पड़े, लेकिन आयोग ने आम दिनों की तरह ही मतदान की तारीखें घोषित कर दीं. हमारी आप सबसे अपील है कि कोविड-19 से बचने के जरूरी उपायों और नियमों का पालन करते हुए चुनाव में बढ़-चढ़ कर भागीदारी कीजिए.

नीतीश सरकार अब भी विकास और सुशासन का दावा करते नहीं अघाती लेकिन लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों से इनका कोई लेना-देना नहीं रह गया है. मोदी के ‘अच्छे दिन’ के नारे की तरह ये बातें क्रूर मजाक साबित हुई हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा के खिलाफ स्पष्ट जनादेश दिया था, लेकिन भाजपा द्वारा किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करने के लालच और नीतीश कुमार के बेशर्म राजनीतिक अवसरवाद ने इस जनादेश को मजाक बना दिया. बिहार की जनता और जनादेश का यह अभूतपूर्व अपमान था. भाजपा की सत्ता हड़पने की भूख ने अब उनके अपने गठबंधन में ही सेंध लगा दी है और लोक जनशक्ति पार्टी राजग गठबंधन से अलग हो गई है. साथ ही दर्जनों भाजपा नेता लोजपा का टिकट लेकर जदयू के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर चुके हैं.

नीतीश कुमार के शासन के माॅडल में हमेशा ही नौकरशाही का दबदबा रहा है, जहां चुने हुए जनप्रतिनिधियों की भूमिका बहुत ही सीमित रही है. समाज के विभिन्न हिस्सों द्वारा अपने अधिकारों की मांग को लेकर चलने वाले आंदोलनों व उनकी जायज मांगों के प्रति भी इस सरकार ने हमेशा ही चरम उपेक्षा का प्रदर्शन किया है. नौकरशाही के जरिए शासन का यह तरीका लगातार संदिग्ध और मनमाना बनता चला गया. कई विभागों या इलाकों में तो कुछ खास राजनेताओं व नौकरशाहों के गठजोड़ ही सारे फैसले लेते रहे हैं और जो अधिकारी इन मनमाने पफैसलों को नहीं मानते उन्हें विभिन्न तरीकों से प्रताड़ित किया जाता है. नीतीश के ‘सुशासन’ के इस जुमले की आड़ में सृजन जैसे घोटाले, मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड जैसे बलात्कार व हत्या के जघन्य मामले और छपरा-मधेपुरा से लेकर औरंगाबाद-जहानाबाद तक लगातार दंगे होते रहे हैं. भाजपा नीतीश कुमार के चेहरे को आगे करके लगातार अपनी पहुंच बढ़ाने और अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी हुई थी. अब वह खुद ही सारी सत्ता हड़पने के लिए बेचैन है. दरअसल सत्ता का केन्द्रीकरण मोदी सरकार की खास पहचान बन चुकी है और इस सत्ता का इस्तेमाल भारत के किसानों, मजदूरों और आम नागरिकों के अधिकारों को रौंदकर अडानी और अंबानी के साम्राज्य को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है.

नीतीश कुमार कभी बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग किया करते थे लेकिन सच्चाई तो यह है कि मोदी सरकार योजनाबद्ध तरीके से भारत के संघीय ढांचे को ही खत्म कर रही है. संविधान द्वारा विशेष मान्यता प्राप्त जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य का न सिर्फ विशेष दर्जा समाप्त किया गया बल्कि उसका राज्य का दर्जा ही समाप्त करके दो केन्द्र शासित इलाकों में तब्दील कर दिया गया. सहयोगात्मक संघीयता (कोऑपरेटिव फेडरलिज्म) के जुमले से अब इस केन्द्रीकरण के हमले को छुपाया नहीं जा सकता. सत्ता के केंद्रीकरण के साथ ही चरम अहंकार और जनता व लोकतंत्र पर हमले लगातार तेज हो रहे हैं. इस बार का चुनाव डबल इंजन के नाम पर बिहार को रौंद रही डबल बुलडोजर की इस सरकार को सत्ता से बेदखल करने का निर्णायक अवसर है.

1970 के दशक में बिहार तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई का एक मजबूत मैदान था. जयप्रकाश नारायण से प्रेरित 1974 के छात्र आंदोलन ने आपातकाल को हटाकर लोकतंत्र को बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1990 के दशक के शुरू में बिहार ने सामाजिक न्याय व धर्मनिरपेक्षता के आंदोलन की अगुवाई की और संघ परिवार की सांप्रदायिक व सामंती आक्रामकता का मुकाबला किया. आज बिहार को एक बार फिर से अपनी पूरी ताकत और संकल्प शक्ति से संविधान को बचाने, लोगों के अधिकारों की रक्षा करने और सच्चे लोकतंत्रा को बहाल करने के लिए मोदी के सरकार बदलो, बिहार बदलो 2 फासीवादी बुलडोजर को रोकना होगा.

पांच दशक पहले अपनी स्थापना के समय से ही भाकपा-माले बिहार में सबसे उत्पीड़ित तबकों की पार्टी बनकर उभरीसामंती हिंसा और राज्य दमन का सामना करते हुए भी लोकतंत्र, गरीबों के मान-सम्मान और सामाजिक बदलाव का झंडा उठाये रखा. भाकपा-माले के विधायक बिहार विधान सभा में लगातार जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं. बिहार और देश के इतिहास के इस नाजुक मोड़ पर जब भाजपा और संघ परिवार बिहार पर कब्जा करके इसे उत्तर प्रदेश की तरह ही सामंती-सांप्रदायिक-पितृसत्तात्माक हिंसा, कट्टरता और नफरत की प्रयोगशाला में तब्दील कर देना चाहते हैं, भाकपा-माले अपनी पूरी ताकत लगाकर इस फासीवादी हमले के खिलाफ बन रही व्यापक एकता को मजबूत करने के लिए दृढ़संकल्पित है.

आर्थिक विकास और आधारभूत ढांचे के विकास के लंबे-चौड़े दावों के बाद भी सच्चाई तो यह है कि बिहार अब भी गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन के जाल में फंसा हुआ है. सरकारी शिक्षा व स्वास्थ्य प्रणाली गहरे संकट में है. लाॅकडाउन के समय बिहार के प्रवासी मजदूरों और छात्रों को जिन तकलीफों का सामना करना पड़ा, उसने पूरी दुनिया के सामने रोजगार विहीन विकास की सच्चाई को उजागर कर दिया. यह भी साफ हो गया कि रोजगार और शिक्षा के लिए अब भी बिहार के छात्रों और मजदूरों की बड़ी तादाद को दूसरे राज्यों में जाना पड़ रहा है. कुछ छोटी-मोटी योजनाओं का नाम गिनाकर यह दावा नहीं किया जा सकता कि बिहार का विकास हो गया है. समस्याओं की जड़ तक पहुंचने की बात तो छोड़िये ये योजनायें तो ऊपरी तौर पर भी कोई बदलाव करने में अक्षम साबित हुई हैं. विकास के मुद्दे को जनता के सशक्तीकरण और सामाजिक बदलाव से जोड़ना होगा. विकास का एजेंडा संविधान के न्याय, स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के सिद्धांतों के अनुरूप होना होगा. उम्मीद व बदलाव के इस भविष्योन्मुख नजरिये के साथ भाकपा(माले) 2020 का अपना चुनाव घोषणापत्र पेश कर रही है. यह बिहार के आम लोगों की बेहतरी के लिए हमारी पार्टी का संकल्प पत्र है.

बदलाव के लिए भाकपा-माले का चार्टर

2020 बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भाकपा-माले द्वारा पेश यह चार्टर लंबे समय से बिहार की जनता द्वारा आंदोलनों में उठाए गए मांगों की निरंतरता में है. हमारा चार्टर बदलाव के लिए बिहार की जनता की आकांक्षाओं और संघर्षों के लिए संकल्पित है. हम उम्मीद करते हैं कि 2020 चुनाव से चुनी गई नई सरकार बदलाव की इसी दिशा में काम करेगी. बदलाव के लिए जनता के इस घोषणापत्र के क्रियान्वयन के लिए भाकपा-माले संघर्ष करने के लिए प्रतिबद्ध है.

भूमि और कृषि सुधार

डी बंद्योपाध्याय भूमि आयोग की सिफारिशों के आलोक में संघर्ष को आगे बढ़ाना

  1. सीलिंग की सीमा को घटाना और उसका मानकीकरण करना, सीलिंग कानून का सख्ती से पालन ताकि फाजिल जमीन का वितरण प्रत्येक भूमिहीन-गरीब परिवारों के बीच किया जा सके,
  2. पर्चा न होने का बहाना बनाकर भूदान व अन्य जमीनों से गरीबों की बेदखली पर रोक और तमाम गरीब वउत्पीड़ित समुदायों की बस्तियों को तत्काल नियमित करना,
  3. भूदान समितियों की पुनस्र्थापना, जिन्हें नीतीश सरकार ने रद्य कर दिया है,
  4. बिना आवास वाले सभी परिवारों को दस डिसमिल आवासीय जमीन की गारंटी करना,
  5. बटाईदारों का पंजीकरण, बटाई की दर को नियमित करना, उनके खेती करने के अधिकार की सुरक्षा और खेती के लिए उन्हें तमाम तरह की जरूरी सुविधयें उपलब्ध कराना.

कृषि विकास और किसानों की बेहतरी

  1. बिहार विधानसभा से ऐसा कानून पारित करना जो मोदी सरकार की किसान विरोधी तीनों कृषि कानूनों के दुष्प्रभावों को निष्प्रभावी कर सके. इस कानून के तहत राज्य की मंडियों से किसानों के फसलों के लागत मूल्य का डेढ़ गुणा दाम पर सरकारी खरीद की गारंटी और कंपनियों द्वारा किसानों के हित या खाद्य सुरक्षा को हानि पहुंचाने वाले कार्यों के लिए कठोर सजा का प्रावधन करना,
  2. कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी निवेश को बढ़ाना,
  3. सस्ते लोन की गारंटी करना,
  4. सस्ते दर पर बिजली और पानी की गारंटी,
  5. सस्ते दर पर सिंचाई की व्यवस्था की गारंटी,
  6. सस्ते दर पर खाद, बीज इत्यादि की समय पर उपलब्ध्ता की गारंटी,
  7. हर पंचायत में खरीद केंद्र की स्थापना,
  8. कोल्डस्टोरेज की व्यवस्था को ठीक करना और उसका विस्तार करना,
  9. हर प्रखंड में वेटनरी हाॅस्पिटल का प्रावधन,
  10. नए कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना.

औद्योगिक विकास

  1. बंद पड़े मिलों और सरकारी क्षेत्र की बीमार इकाइयों को फिर से चालू करने के लिए स्पेशल पैकेज की व्यवस्था करना,
  2. रोजगारोन्मुख कृषि आधारित व अन्य छोटे-मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन.

रोजगार का अधिकार

  1. सभी रिक्त पड़े सरकारी पदों पर अविलंब बहाली,
  2. मनरेगा में प्रति परिवार की बजाए प्रति व्यक्ति 200 दिन काम और न्यूनतम मजदूरी की गारंटी,
  3. शहरी रोजगार गारंटी कानून पारित कर उसके तहत 300 दिन का काम और न्यूनतम जीवनयापन लायक मजदूरी की गारंटी,
  4. कोविड-19 के दौर में विकेन्द्रित शहरी योजना बने जिसके तहत राज्य सरकार ‘जाॅब स्टाम्प’ जारी करेगी और उन्हें अनुमोदित संस्थाओं में वितरित करेगी, नियोक्ता द्वारा जारी जाॅब स्टाम्प दिखाकर मजदूरी का भुगतान सीधा श्रमिकों के खाते में किया जाएगा.

र्प्रवासी मजदूरों के अधिकार

  1. अन्य राज्यों और देशों में काम करने वाले बिहार के प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा-सम्मान और देखभाल के लिए बिहार सरकार द्वारा स्थाई हेल्पलाइन सहित अन्य योजनाओं की व्यवस्था,
  2. बिहार के सभी प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण,
  3. मौजूदा अंतराज्यीय प्रवासी मजदूर कानून, जो कि बेहद कमजोर है, के बजाए नए व सख्त केंद्रीय कानून की मांग करते हुए बिहार विधानसभा से प्रस्ताव पारित करवाना.

मजदूरों-कर्मचारियों के अधिकार

  1. राज्य में वर्ष 2005 से लागू की गई नई अंशदायी पेंशन योजना जिससे केवल काॅरपोरेट एवं पूंजीपतियों को लाभ पहुंचता है, को बंद कर पूर्व की भांति पुरानी पेंशन योजना लागू करना,
  2. सभी विभागों में स्कीम वर्करों सहित संविदा-मानदेय-आउटसोर्स एवं दैनिक वेतन भोगी कर्मियों तथा शिक्षकों को नियमित करते हुए शेष रिक्त पदों पर स्थाई नियुक्ति करना,
  3. जीविका, आशा, आंगनबाड़ी, रसोइया आदि महिलाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और मासिक 18 हजार रु. न्यूनतम वेतन की गारंटी,
  4. सभी रिक्त पदों पर वर्षों से लंबित स्थायी नियुक्ति-प्रोन्नति,
  5. कोरोना के नाम पर रोके गए महंगाई भत्ते/मँहगाई राहत का भुगतान,
  6. पूर्व की भांति राज्य कर्मियों को बोनस की व्यवस्था,
  7. राज्यकर्मियों के 50 वर्ष उम्र पूर्ण करने के उपरांत सरकार द्वारा समीक्षा के नाम पर जुलाई 2020 में थोपे गए जबरन सेवानिवृत्ति का आदेश रद्द करना, सभी सर्विस बुक मेंटेन करना और सेवा निवृति के दिन ही सभी सेवानिवृति लाभ मिलने की गारंटी करना,
  8. सभी उद्योगों व पेशों के असंगठित मजदूरों (खेत मजदूरों और घरेलू कामगार सहित) और उनके परिवारों के लिए कल्याणकारी बोर्ड की स्थापना जिसके तहत आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और पेंशन की गारंटी हो और सभी दुर्घटना प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा मिले,
  9. बिहार में घरेलू कामगार कल्याण व सामाजिक सुरक्षा कानून पारित करवाना और घरेलू कामगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय करना.

सबको समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी

  1. जून 2007 में समान शिक्षा नीति पर मुचकुन्द दूबे कमीशन की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करना ताकि 6 से 14 वर्ष के बीच के सभी बच्चों को मुफ्त व गुणवत्तापूर्ण समान शिक्षा की गारंटी हो सके,
  2. आयोग की सिफारिशों के अनुसार बिहार में 60 हजार अतिरिक्त स्कूलों की व्यवस्था (26 हजार प्राथमिक स्कूल, 15500 मध्य विद्यालय और 19 हजार उच्च माध्यमिक स्कूल). नीतीश सरकार द्वारा बंद किए गए स्कूलों को फिर से खोलना,
  3. प्राथमिक विद्यालयों में हर 30 छात्रों पर एक शिक्षक और मध्य विद्यालयों में हर 33 छात्रों पर एक शिक्षक की गारंटी करना,
  4. शिक्षकों की बहाली का ठेका-मानदेय माॅडल रद्द कर समान काम के लिए समान वेतन का प्रावधान करना और सभी शिक्षकों को स्थायी करना, शिक्षकों के लिए सुरक्षित नौकरी व उचित प्रशिक्षण की गारंटी ताकि शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर बनाई जा सके,
  5. मदरसों व संस्कृत विद्यालयों की उन्नति और उनको बेहतर सुविधा उपलब्ध करवाना,
  6. सभी स्कूलों में ललित कला, कंप्यूटर और खेल के लिए शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति,
  7. स्कूलों में हर स्तर पर संवैधानिक नैतिकता की शिक्षा शुरू करना जिसके तहत छात्रों को लैंगिक, जाति आधारित और सांप्रदायिक भेदभाव को पहचानने और उसका मुकाबला करने के लिए तैयार किया जा सके,
  8. मिड डे मिल कर्मियों का स्थायीकरण,
  9. बिहार की उच्च शिक्षा में व्याप्त अराजकता को खत्म करना, सेशन को नियमित बनाना, शिक्षकों व कर्मचारियों के सभी रिक्त पदों को भरना, छात्र संघ का नियमित चुनाव,
  10. उच्च शिक्षा में हुए घोटालों की जांच व दोषियों को सजा,
  11. पटना विवि को केंद्रीय विवि का दर्जा,
  12. नई शिक्षा नीति 2020 के खिलाफ बिहार विधानसभा से प्रस्ताव पारित करवाना.

जन स्वास्थ्य

  1. बिहार की जनता के लिए स्वास्थ्य के अध्किार को काूननी अधिकार बनाने के लिए राज्य स्तर पर कानून बनाना, ऐसे कानूनों के तहत बिना किसी भेदभाव के बिना हर स्तर पर बिहार के हर नागरिक के लिए मुफ्त, गुणवत्तापूर्ण और व्यापक स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी,
  2. बिहार में आज स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष सरकारी खर्चा 20 राज्यों में सब से कम है. प्रति व्यक्ति संपूर्ण स्वास्थ्य का खर्च 2047 रु. है, इसमें सरकार की भागीदारी महज 18 फीसदी है. प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष दवाओं और जांच वगैरह पर सरकारी खर्चा मात्र 14 रु. है. बिहार के हर नागरिक को मुफ्त में दवाइयां व जांच की गारंटी, इसके लिए इस खर्च को बढाकर न्यूनतम 50 रु. करना, बजट का दसवां हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च हो,
  3. सभी सरकारी अस्पतालों में उपभोक्ता शुल्क का खात्मा,
  4. बिहार में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो में 39 प्रतिशत, स्वास्थ्य उप केंद्रों में 48 प्रतिशत और सामुदायिक स्वास्थ्य केद्रों में 91 प्रतिशत की कमी है. इस मूलभूत स्वास्थ्य संरचना के क्षेत्र में कमी को पूरा करने के लिए समयबद्ध रोड मैप बनाना,
  5. प्राथमिक स्वास्थ्य केद्रों में प्रसव और जच्चा-बच्चा मामले में आपातकालीन सेवाओं का प्रावधान,
  6. मेडिकल ऑफिसर, स्पेशलिस्ट डाॅक्टर, नर्स, एएनएम, फार्मासिस्ट, रेडियोग्राफर सहित स्वास्थ्यकर्मियों के अन्य अगुआ दस्तों का सरकारी अस्पतालों व स्वास्थ्य सेवाओं में रिक्त पदों पर समयबद्ध व स्थायी नियुक्तियां न कि ठेका-मानदेय आधारित,
  7. आशा-आंगनबाड़ी कर्मियों को सरकारी कर्मी का दर्जा,
  8. कोरोना व अन्य महामारियों व आपदाओं के दौरान स्वास्थ्य, सफाई और राहतकर्मियों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत व्यवस्था,
  9. समुदाय आधारित निगरानी, शिकायतों के निवारण की जनभागीदारी आधारित व्यवस्था ताकि बिहार की जनता अपने जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं को बतौर अधिकार पा सके, जवाबदेही मांग सके और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने में उनकी आवाज को सुनी जा सके,
  10. बिहार के शहरों व नगरों में हर 30 हजार लोगों पर संपूर्ण रूप से समृद्ध शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोलना. प्रत्येक ऐसे केंद्र में आशा की तर्ज पर उषा (शहरी सामाजिक स्वास्थ्यकर्मी) की नियुक्ति, इसके साथ सभी शहरी बस्तियों व झुग्गियों में मुहल्ला क्लिनिक की व्यवस्था,
  11. जनस्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के सभी तौर तरीकों पर रोक, पीपीपी माॅडल पर रोक जो जनस्वास्थ्य व्यवस्था को कमजोर करती है,
  12. समन्वित बाल विकास योजना (आंगनबाड़ी योजना) को सार्वभौमिक बनाना और उसमें तीन वर्ष के कम उम्र के बच्चों को समुदाय आधारित तरीके से पोषण व देखभाल मिले,
  13. स्वास्थ्य अथवा स्वास्थ्य संबंधी सभी सेवाओं और योजनाओं के लिए आधार कार्ड की मांग, जो कि असंवैधानिक है, को रद्द करना.

जन कल्याण और जनसुविधायें

1. बाढ़ नियंत्रण, जल प्रबंधन और आपदा प्रबंधन

(क) बाढ़ नियंत्रण, जल प्रबंधन और बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास के लिए तात्कालिक व दीर्घकालिक नीतियों व उपायों को लागू करना,
(ख) बाढ़ पीड़ित इलाकों में ऊपर उठे हुए सड़कों और चबूतरों का निर्माण,
(ग) खाद्यान्नों के सुरक्षित संग्रहण की व्यवस्था
(घ) बाढ़ निरोधक आवास की व्यवस्था,
(ङ) हर प्रखंड में फायर ब्रिगेड की व्यवस्था,
(च) जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन की योजना और ऐसी योजनाओं को त्वरित रूप से अमल करने के लिए प्रशिक्षित कर्मियों को उपलब्ध करना,
(छ) आहर, पोखर, नहर, पईन व जल के अन्य पारंपरिक स्रोतों को फिर से जिंदा करना.

2. बिजली व इंटरनेट
(क) बिजली के निजीकरण पर रोक,
(ख) बिजली के उत्पादन को बढ़ाने की योजना,
(ग) विकेन्द्रित और अक्षय ऊर्जा को प्रोत्साहन,
(घ) सभी ग्रामीण गरीब घरों को 100 यूनिट मुफ्त बिजली की गारंटी,
(ङ) सिंचाई के लिए सस्ती दर पर बिजली की व्यवस्था,
(च) शैक्षणिक संस्थाओं (स्कूल, काॅलेज, हाॅस्टल सहित) में मुफ्त वाई-फाई और हर गांव में वाई-फाई युक्त पुस्तकालय,
(छ) छात्रों को मुफ्त लैपटौप की व्यवस्था.

3. सड़क व जन परिवहन
(क) ग्रामीण सड़कों का निर्माण और उनका नियमित मरम्मतीकरण,
(ख) राज्य भर में सभी मौसमों में वाहन चलाने योग्य सड़कों का नेटवर्क जिसका समय पर नियमित मरम्मतीकरण,
(ग) पूरे बिहार को जोड़ने वाली सुरक्षित और सस्ती जन परिवहन की व्यवस्था.

4. स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता व सफाई
(क) हर किसी को मुफ्त, सुरक्षित व साफ पेयजल व सफाई की गारंटी,
(ख) जल प्रदूषण पर रोक, खतरनाक प्रदूषणकारी तत्वों से पेयजल को मुक्त करना,
(ग) स्वच्छ भारत के नाम पर दबंगई और हिंसा पर रोक, उसके बजाए शौचालय के इस्तेमाल के बारे में लोगों को जाति आधारित पूर्वाग्रहों से मुक्त करने के लिए जागरूक बनाना और इको फ्रेंडली शौचालय बनाना जो लोग इस्तेमाल करने के लिए राजी हों,
(घ) गंदे नालों व सेप्टिक टैंक की सफाई में पूर्ण रूप से मशीनों का इस्तेमाल, सफाईकर्मियों का ऐसे काम में इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक और सफाईकर्मियों की सुरक्षा, मजदूरी व अधिकारों की गारंटी.

5. कर्ज मुक्ति
(क) किसानों को सभी प्रकार के कृषि कर्जों से मुक्ति,
(ख) स्वयं सहायता समूह में शामिल महिलाओं की कर्ज मापफी
(ग) माइक्रोफायनांस कम्पनियों द्वारा दिए गए कर्जों से महिलाओं की मुक्ति का आदेश सरकार इन कम्पनियों को दे और जरूरत पड़ने पर सरकार अपनी ओर से कंपनियों को पैसा दे,
(घ) हर समूह को उसकी क्षमता के अनुसार या कलस्टर बनाकर रोजगार का साधन उपलब्ध कराना और उनके उत्पादों की खरीद सुनिश्चित करना,
(च) स्वयं सहायता समूहों को दिए जाने वाले कर्ज को ब्याज मुक्त बनाना,
(छ) माइक्रोफायनांस कंपनियों के एजेंटों का गांव के अंदर घुसने और कर्ज वापसी के लिए दबाव बनाने पर तबतक रोक जबतक कि कोविड के कारण खस्ताहाल हो चुकी आर्थिक स्थिति नहीं सुधरती,
(ज) माइक्रो फायनांस कंपनियों के एजेंटों के द्वारा किसी भी तरह की वसूली व प्रताड़ना पर रोक,
(झ) कर्ज वसूली के नाम पर जबरदस्ती या सामूहिक रूप से शर्मिंदा अथवा किसी भी प्रकार की प्रताड़ना के लिए कड़ी सजा का प्रावधान.

6. जनवितरण प्रणाली
(क) राशन व अन्य कल्याणकारी योजनाओं को आधर कार्ड से जोड़ने की नीति खत्म करना,
(ख) कोविड-19 और लाॅकडाउन के कारण पैदा विषम परिस्थितियों से निजात के लिए जनवितरण प्रणाली का विस्तार व सर्वव्यापीकरण. प्रत्यकि परिवर को 2 रु. प्रति किलो की दर पर 50 किलो खाद्यान्न और 2 रु. प्रति लिटर की दर से 5 लिटर किरोसिन तेल सहित अन्य जरूरी सामग्री (दाल, तेल, साबुनआदि) का वितरण,
(ग) घर-घर राशन पहुंचाने की व्यवस्था.

शासन का लोकतंत्रीकरण

  1. झुग्गियों और ग्रामीण बस्तियों को उजाड़ने पर रोक,
  2. शहरी गरीबों और स्ट्रीट वेंडरों की बेदखली पर रोक और स्थायी आवास और स्थायी दुकानों की गारंटी हो,
  3. नौकरशाही को राजनीतिक नियंत्रण से स्वाधीन बनाना, सामाजिक भेदभाव-राजनीतिक उत्पीड़न और प्रताड़ना के रूप में ट्रांसफर करने पर रोक,
  4. भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए जनलोकपाल,
  5. दुकानदारों व ट्रेडरों को वसूली और हिंसा से सुरक्षा,
  6. शराब व ड्रग्स की लत से मुक्ति के लिए समुदाय आधारित जनभागीदारी वाला जनस्वास्थ्य का माॅडल, शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तार हजारों गरीबों की रिहाई, शराब व ड्रग्स की लत के इलाज के लिए मुफ्त में व्यसन मुक्ति केंद्र की स्थापना और शराब के उत्पादन और वितरण पर सख्ती से नियंत्रण,
  7. पारदर्शी बालू नीति, बालू के निजीकरण व बालू माफिया पर रोक; सरकारी नियंत्रण में बालू उत्खनन की गारंटी,
  8. सभी शेल्टर होम, वृद्धाश्रम, जुवेनाइल जस्टिस होम, प्रश्रय घर व भीख मांगने वालों के लिए आश्रय आदि सहित स्कूलों व हाॅस्टलों का हर 6 महीने पर सामाजिक लेखा-जोखा ताकि उसमें होने वाली प्रताड़ना व उत्पीड़न को रोका जा सके.

अनुसूचित जाति/जनजाति

  1. एससी/एसटी उत्पीड़न निवारण कानून के पालन पर सख्ती से निगरानी,
  2. एससी/एसटी छात्रों के लिए छात्रवृतियों में विस्तार,
  3. अंबेडकर छात्रावास, कस्तूरबा विद्यालयों व अन्य एससी-एसटी छात्र-छात्राओं के लिए स्कूलों व छात्रावासों की स्थिति पर समयबद्ध श्वेत पत्र जारी हो ताकि इनमें बुनियादी संरचनाओं व सुविधओं में आमूलचूल बदलाव हो सके,
  4. सरकार द्वारा एससी-एसटी समुदायों के साथ होने वाले भेदभाव व उत्पीड़न के खिलाफ जन जागरण अभियान चलाया जाए.

अल्पसंख्यक समुदाय

  1. सच्चर कमिटी व रंगनाथन मिश्रा कमीशन की सिफारिशों को समयबद्ध तरीके से लागू करना,
  2. अल्पसंख्यकों के लिए मौजूदा विकास योजनाओं का विस्तार जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर जोर हो,
  3. सांप्रदायिक नफरत व हिंसा से बचाव और इस पर समय पर कार्रवाई व सजा के लिए प्रशासन व पुलिस के आला अधिकारियों को जवाबदेह बनाना,
  4. सरकार द्वारा सांप्रदायिक भेदभाव व उत्पीड़न के खिलाफ व सांप्रदायिक सौहार्द व भाईचारे के पक्ष में जन जागरण अभियान चलाया जाए.

महिलाएं

  1. यौन हिंसा, घरेलू हिंसा व “इज्जत” के नाम पर हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए हेल्पलाइन का प्रावधान जिसके जरिए कानूनी व सामाजिक मदद मिल सके,
  2. लैंगिक हिंसा से पीड़ित महिलाओं व सांप्रदायिक-सामंती उत्पीड़न झेलने वाले अंतरजातीय-अंतरधार्मिक जोड़े के लिए सुरक्षित आश्रय की व्यवस्था,
  3. महिलाओं की स्वायत्तता और अधिकारों तथा अंतरजातीय-अंतरधार्मिक विवाहों के लिए जनसमर्थन के पक्ष में सरकार द्वारा जनजागरण अभियान,
  4. गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण युक्त भोजन, स्वास्थ्य का नियमित चेकअप, दवाइयों की सप्लाई व सुरक्षित डिलवरी आदि की व्यवस्था,
  5. यौन हिंसा की पीड़िताओं के लिए मुआवजा व पुनर्वास की व्यवस्था.

ट्रांसजेंडर समुदाय

  1. सुप्रीम कोर्ट के नालसा जजमेंट के तहत निर्धारित सभी तरह के सुरक्षा व कल्याणकारी नीतियों को लागू करना, बिना मेडिकल जांच सर्जरी आदि के सबूत जैसे प्रताड़ित करने वाली नीतियों के बिना सभी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपना जेंडर निर्धारित करने व सभी सुविधाओं को प्राप्त करने का हक,
  2. बिहार विधानसभा ट्रांसजेंडर कानून 2019 को रद्द किए जाने के पक्ष में प्रस्ताव पारित करवाना.

विकलांग व्यक्ति

  1. बिहार के सभी सार्वजनिक जगहों व संस्थाओं को विकलांग व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाने की समयबद्ध योजना
  2. विकलांग लोगों के लिए मशीनों, उपकरणों, दवाओं, जांच सेवाओं व सुधरात्मक सर्जरी मुफ्त में उपलब्ध करवाना
  3. विकलांग लोगों के लिए उच्च शिक्षा में पांच प्रतिशत आरक्षण व नौकरियों में चार प्रतिशत आरक्षण.

वरिष्ठ नागरिक

  1. 3000 रु. मासिक पेंशन,
  2. मुफ्त स्वास्थ्य सेवायें,
  3. गरीब पृष्ठभूमि से वयस्क नागरिकों के लिए हर प्रखंड में वृद्धाश्रम और देखभाल केंद्र,
  4. पेंशन व अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार कार्ड की जरूरत को खत्म करना.

बच्चे

  1. बिहार में सड़क पर पल रहे बच्चों और बाल श्रमिकों का सर्वे ताकि उनका तत्काल पुनर्वास हो सके,
  2. बाल श्रमिकों और सड़क पर पल रहे बच्चों के परिवारों को कम से कम महीने में न्यूनतम 3000 रु. प्रति मास दिया जाए ताकि बच्चों का स्कूलों में भर्ती हो सके और वहां टिकाया जा सके.

न्याय व मानवाधिकार

  1. असंवैधानिक एनपीआर (जो कि एनआरसी व सीएए के रास्ते में पहला कदम है और गरीबों व अल्पसंख्यकों की नागरिकता पर खतरा पैदा करता है) लागू न करने की सरकार की प्रतिबद्धता हो,
  2. मोदी शासन और विभिन्न भाजपा राज्य सरकारों द्वारा गलत ढंग से गिरफ्तार किए गए छात्रों, कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों की रिहाई की मांग, विरोध-प्रतिरोध की आवाज को दबाने के लिए यूएपीए का उपयोग नहीं; एनआईए, पुलिस और अन्य एजेंसियों द्वारा उत्पीड़न से बिहार के निर्दोष लोगों की रक्षा करना तथा लंबे समय से जेलों में बंद बिहार के सभी राजनीतिक कैदियों और निर्दोष लोगों को मुक्त करना,
  3. दलितों-अन्य उत्पीड़ित जातियों व अल्पसंख्यकों के जनसंहारों के दोषियों को सजा,
  4. सांप्रदायिक व जाति आधारित हिंसा के व आपदाओं के पीड़ितों के लिए मुआवजा व पुनर्वास की व्यवस्था,
  5. महिला आयोग, एससी/एसटी आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, मानवाधिकार आयोग सहित तमाम राज्य स्तरीय आयोगों को मजबूत बनाना,
  6. माॅब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हिंसा) को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के 11 निर्देशों का पालन: हर जिलमें सीनियर पुलिस को नोडल ऑफिसर घोषित करना, लिंचिंग के मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल अदालतों की स्थापना, और लिंचिंग के पीड़ितों व परिवारजनों के लिए मुआवजा की योजना बने,
  7. पुलिस व्यवस्था में सुधार ताकि पुलिस को भारत के संविधान के प्रति जवाबदेह बनाया जाए, हिरासत में हिंसा व पुलिस की मनमानी हिंसा पर रोक लगे. हिरासत में हत्याओं के मामले सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन,
  8. विचाराधीन कैदियों को बेल पर छोड़ने की समयबद्ध योजना, “जेल नहीं बेल” वाली नीति का पालन, गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले विचाराधीन कैदियों को 1 रु. के प्रतीकात्मक राशि पर बेल दिया जाए,
  9. व्यापक जेल सुधार, कैदियों के मानवाधिकारों की गारंटी, 2015 में तैयार किए गए बिहार की सभी जेलों पर रिपोर्ट के सिफारिशों का लागू करना, सभी कैदियों के लिए खासकर के महिलाओं व ट्रांसजेंडर कैदियों के स्वास्थ्य व मानसिक स्वास्थ्य सुविधायें, जेलों के अंदर अल्पसंख्यक समुदाय के कैदियों खासकर आतंकवाद के केसों में विचाराधीन कैदियों के खिलाफ भेदभाव व हिंसा पर रोक, सभी विचाराधीन कैदियों के लिए मुफ्त में कानूनी सलाह व वकालत उपलब्ध कराना.

संस्कृति, भाषा, खेल, पर्यटन

  1. भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका, वज्जिका सहित बिहार की भाषाओं को समृद्ध करना,
  2. सभी जिला मुख्यालयों में सांस्कृतिक केंद्र व रंगालय स्थापित किया जाए जो कि नागार्जुन, रामधारी सिंह दिनकर, फनीश्वरनाथ रेणु, भिखारी ठाकुर, राहुल सांकृत्यायन, गोरख पांडेय, नूर फातिमा, विंध्यवासिनी देवी आदि बिहार के सांस्कृतिक हस्तियों के नाम पर हो,
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में खेल को प्रोत्साहन देने के लिए नीति बने, हर स्कूल में खेल के शिक्षकों व प्रशिक्षण की सुविधाओं की व्यवस्था हो ताकि ग्रासरूट स्तर पर प्रतिभा की पहचान की जा सके, हर प्रखंड में खेल का स्टेडियम बने और हर जिला मुख्यालय पर स्पोर्ट काॅम्प्लेक्स बने,
  4. बिहार में पर्यटन के चौतरफा विकास के लिए योजना बने, ऐतिहासिक महत्व व प्राकृतिक सौंदर्य की जगहों की सुरक्षा व पर्यटनस्थल के रूप में विकास के लिए योजना बने.

भाकपा-माले को विजयी बनाएं!
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