मतदाता बंधुओ,
बिहार विधानसभा चुनाव ऐसे वक्त में होने जा रहा है जब केन्द्र की मोदी सरकार के काॅरपोरेटपरस्त व जनविरोधी नीतियों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था -24% तक नीचे गिर गई है. रेलवे समेत वर्षों में निर्मित सरकारी कंपनियों के बेचे जाने से बेरोजगार छात्रा-युवाओं का भविष्य दांव पर लग गया है. कोरोना काल में कुविचारित लाॅकडाउन ने 29 हजार प्रवासी मजदूरों की जान ले ली है. 12 करोड़ लोगों को बेरोजगारी के दलदल में धकेल दिया है. रोज कमाकर खाने वाले मजदूर भूख व जहालत से उफब कर मौत को गले लगाने लगे हैं. माइक्रोफायनांस कंपनियों के कर्ज में डूबी जीविका, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अपमान व घुटन में जीने को विवश हैं और हाल में पारित किए गए तीन किसान विरोधी कानूनों ने खेती-किसानी पर काॅरपोरेट वर्चस्व का रास्ता भी साफ कर दिया है.
इससे पहले, रोज नए सांप्रदायिक विवाद व नागरिकता कानून में संशोधन ने करोड़ों भारतवासियों की रातों की नींद उड़ा दी. सरकार ने विभिन्न राज्यों में हिटलर के कंसन्ट्रेशन कैंप की तरह ‘डिटेंशन सेंटर’ बना लिए. देश में प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों – सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुंबडे आदि की गिरफ्तारी हुई. लोकतंत्र की हत्या, कानून का उल्लंघन एवं संविधान को बदल डालने की हर दिन नई साजिश रची गई. कोरोना संकट का इस्तेमाल भी आरएसएस व भाजपा के एजेंडे को लागू करने के अवसर के रूप में और विरोध की आवाज को कुचलने के लिए किया गया. जाहिर सी बात है कि बिहार विधानसभा चुनाव में मिली कोई सफलता उन्हें इन नीतियों को और तेजी से लागू करने के लिए उत्साहित करेगी. जबकि एनडीए की पराजय इन जनविरोधी नीतियों, काले कानूनों व कदमों पर रोक लगाएगी.
लगभग 15 वर्षों से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्रीत्व में बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन का शासन रहा है. लेकिन, नीतीश कुमार के पास ‘सुशासन’ और ‘विकास’ के झूठे दावों के सिवा कुछ भी पेश करने लायक नहीं है. इसीलिए वे 15 साल बनाम 15 साल का वितंडा खड़ा कर रहे हैं और आज के सवालों को भटकाने व एजेंडा बदलने की कोशिश में लगे हैं.
नीतीश कुमार ने कुर्सी के खातिर पूरे जनादेश से घोर विश्वासघात करते हुए उसी भाजपा से हाथ मिला लिया, जिसके खिलाफ जनता ने उन्हें वोट दिया था और राज्य में भाजपा-आरएसएस का रास्ता आसान बनाया. उनका 3 सी (क्राइम, करप्शन व कम्युनलिज्म) पर समझौता न करने का ऐलान ढोंग व पाखंड के सिवा क्या है? सृजन घोटाला, मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड और इन पर अपनाए गए सरकारी रवैये ने नीतीश सरकार के चरित्र को बेपर्दा कर दिया है. सरकारी संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक अपराध के मामले में बिहार गुजरात, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश सरीखे भाजपा शासित राज्यों की तरह ही शीर्ष पर कायम है. नीतीश राज में अपराधों की संख्या हर वर्ष बढ़ती ही गई है. वर्ष 2018 में बिहार में 167 सांप्रदायिक/धार्मिक दंगे हुए और इस मामले में वह देश में अव्वल रहा. जातीय हिंसा के मामले में भी बिहार दूसरे स्थान पर रहा.
हर गरीब को 5 डि. वासगीत जमीन का झांसा देकर वोट हथियाने वाली नीतीश सरकार ने वास-आवास की जमीन की मांग कर रहे गरीबों पर लाठियां बरसायीं. जल, जीवन व हरियाली के नाम पर गरीबों के घरों पर बुलडोजर चलाकर उन्हें उजाड़ने का काम किया. विधानसभा में भाकपा(माले) विधायकों द्वारा भूमि सुधाार की मांग पर नीतीश बाबू का यह कहना कि “यह बकवास है” उनके वर्ग चरित्रा को जाहिर करता है.
नीतीश राज में किसान भी क्या कम ठगे गए? 15 वर्षों की दीर्घ अवधि में भी न तो बाढ़ की समस्या का कोई निदान हुआ और न ही सुखाड़ का सवाल हल हुआ. बिहार की कृषि व्यवस्था की रीढ़ सोन नहर प्रणाली के आधुनिकीकरण व इसे पुनर्जीवन प्रदान करने वाले इंद्रपुरी जलाशय के निर्माण की कोई पहल नहीं ली गई. सरकारी ट्यूबवेल अपने जीर्णोंद्धार की बाट जोहते रहे. बटाईदारों को अपने हक-अधिकार नहीं मिले और डीजल-अनुदान जैसी मामूली सुविधा के लिए भी उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी. किसानों से धान-गेहूं की खरीद के मामले में तो नीतीश सरकार कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं है. सरकारी आंकड़े ही यह बताते हैं कि इस साल रबी फसल के बिक्री के मौसम में केन्द्र व राज्य दोनों सरकारों की एजेंसियों ने उत्पादित गेहूं के फसल के 1% से भी कम की खरीद की और राज्य भर में महज 1,619 क्रय केंद्र खोले.
हजारों किलोमीटर पैदल चलकर भूख, पीड़ा व दुख में डूबे बिहार की सीमा पर पहुंचे प्रवासी मजदूरों से नीतीश कुमार ने यह कहा कि “बिहार में घुसने नहीं देगे”. यह रोजगार के अभाव में दूसरे राज्यों में दर-दर की ठोकरें खाते बेरोजगार युवाओं के प्रति उनकी हिकारत को दर्शाता है. क्या यह ‘बिहारी अस्मिता’ के अपने नारे के साथ उनकी गद्दारी नहीं है? वर्ष 2005 में नीतीश कुमार जब सत्ता में आए थे उन्होंने यह वादा किया था कि बिहार के लोगों को अब से राज्य के बाहर प्रवास में नहीं जाना पड़ेगा. मगर कोरोना के फैलाव के बाद अपने घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों की भारी तादाद ने उनके वादे की हकीकत को उजगार कर दिया. आज बिहार में बेरोजगारी की दर देश के औसत बेरोजगारी दर से लगभग दुगुनी हो गई है. कहां तो उन्हें तो चूल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए था. लेकिन, वे बड़ी ही बेशर्मी के साथ प्रवासी मजदूरों को सरकार द्वारा दी गई मामूली-सी राहत की शेखी बघार रहे हैं.
बिहार में केन्द्र व राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में हजारों पद रिक्त पड़े हैं. केन्द्र सरकार की राह पर चलते हुए बिहार सरकार भी जहां एक ओर बिजली विभाग, नगर निकाय, स्वास्थ्य व अन्य विभागों में निजीकरण को बढ़ावा दे रही है. वहीं दूसरी ओर ठेका, संविदा, मानदेय, प्रोत्साहन आदि के तहत स्कीम वर्कर्स की एक बड़ी तादाद को न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन देकर 12 घंटों से भी ज्यादा समय तक काम ले रही है. आशा, रसोइया, आंगनबाड़ी, स्वयं सहायता समूह और जीविका की महिला कर्मियों ने बार-बार सम्मानजनक व सुरक्षित रोजगार की मांग उठायी है, लेकिन नीतीश सरकार बार-बार उन्हें झांसा दे रही है. संविदा शिक्षकों, कॅप्यूटर आपरेटरों, कार्यालय सहायकों के समान काम-समान वेतन की मांग की भी नीतीश सरकार ने लगातार उपेक्षा की है. एडमिशन व नौकरियों तथा पंचायती राज में एकल पदों पर आरक्षण को बचाने के लिए भी भी नीतीश कुमार ने कुछ नहीं किया.
कोरोना काल ने इस सच्चाई पर से पर्दा हटा कि देश की सबसे लचर स्वास्थ्य व्यवस्था बिहार में है. बिहार में अस्पताल, बेड व डाॅक्टर-जनसंख्या, रोगी जनुपात सबसे दयनीय है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार प्रति एक हजार आबादी पर एक डाॅक्टर होना चाहिए. बिहार में एक डाॅक्टर औसतन 43,788 लोगों की सेवा करता है. कोविड-19 मामलों की जांच के मामले में भी बिहार सबसे पिछड़ा हुआ है. नीतीश कुमार यह दावा करते फिर रहे हैं कि कोविड के चलते बिहार में मृत्यु दर सबसे कम है. लेकिन, कोविड के चलते बिहार में डाॅक्टरों की मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से नौगुना है. क्या यह तथ्य उनके दावे को झूठा साबित नहीं करता?
अब शिक्षा का हाल देखिए! नीतीश राज में स्कूली बच्चों के साईकिल-पोशाक व छात्रवृत्ति योजना में भ्रष्टाचार और हर बड़ी परीक्षा में पेपर लीक से बिहार बुरी तरह शर्मसार हुआ. स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा में भी भारी गिरावट आई. स्कूली शिक्षा (प्राथमिक व माध्यमिक) के मामले में बिहार देश के प्रमुख 20 राज्यों में 19 वें स्थान पर है और शिक्षा की गुणवत्ता व बुनियादी ढांचा आदिे के मामले में नीचे से दूसरे स्थान पर. यहां साक्षरता दर देश में सबसे कम है. प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लेनेवाले 62% छात्र अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते और 1% छात्र ही मैट्रिक तक पहुंच पाते हैं. बिहार सरकार छात्रों व शिक्षकों पर सबसे कम पैसा खर्च करती है. उसने करीब 3 हजार प्राथमिक विद्यालयों को बंद भी कर दिया है. एक भी काॅलेज या विश्वविद्यालय ऐसा नहीं जिसका देश में सौंवा स्थान भी हो. पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा भी नहीं ही मिला.
अब उनके शहरी विकास पर भी एक नजर डाल लिया जाये. अपने 15 वर्षों के राज के दौरान लगभग दस वर्ष (दो कार्यकाल) उन्होंने जनता की बुनियादी जरूरतों की तो कोई सुध ही नहीं ली. लंबी-चौड़ी सड़कों, फ्लाई ओवरों, पार्कों, म्यूजियमों आदि पर खूब धन लुटाया. बिना पुनर्वास की व्यवस्था किए स्मार्ट सिटी के नाम पर गरीबों के घरों पर बुलडोजर चढ़ा दिए और उन्हें बेघर कर दिया गया. लेकिन. राजधानी पटना समेत राज्य के बड़े शहरों में जलजमाव व गंदगी की समस्या का कोई निदान नहीं निकला. मामूली बारिश ने ही विगत साल ऐसा कहर मचाया कि मंत्रियों तक को अपना आवास छोड़कर भागना पड़ा. हर त्रासदी को प्राकृतिक आपदा कहकर आम आदमी को उसके हाल पर जीने-मरने को छोड़ देना – यह तो नीतीश राज का गुण-धर्म ही बन गया. ये सारे तथ्य क्या नीतीश बाबू के ‘विकास’ के दावे की पोल नहीं खोल देते?
प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा का यह कथन कि ‘अगर नीतीश जी हमारे साथ हैं तो सब कुछ संभव है’ पूरी तरह से सच है. नीतीश कुमार को साथ रखते हुए ही भाजपा ने बिहार को अपनी सांप्रदायिक व विभाजनकारी नीतियों की प्रयोगशाला बनाने में सफलता पायी है और अब बिहार की सत्ता हड़प लेने का मंसूबा बना रही है. अगर ऐसा हुआ तो पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की तरह बिहार भी फर्जी एनकाउंटर व पुलिसिया आतंक तथा सवर्ण सामंती व सांप्रदायिक वर्चस्व के मातहत दलितों, मुसलमानों व महिलाओं पर हिंसा के अंतहीन सिलसिले का पर्याय और लोकतंत्र व आजादी की कब्रगाह बन जाएगा. क्या बिहार का भविष्य यही होगा? नहीं, हमें ऐसा हरगिज नहीं होने देना चाहिए.
भाकपा(माले) ने सड़क से सदन तक केन्द्र-राज्य की भाजपा-जदयू सरकार की जनविरोधी नीतियों व गरीबों-दलितों, छात्र-युवाओं महिलाओं पर हुए हमलों का प्रतिकार किया है. उनके हक-अधिकार एवं विकास की लड़ाइयां लड़ी हैं और अनगिनत कुर्बानियां देकर लोकतंत्र, संविधान व आजादी के परचम को हमेशा बुलंद रखा है. लाॅकडाउन के दौर में देशभर में तकलीफ व संकट झेल रहे प्रवासी मजदूरों के साथ रात-दिन खड़ी व सक्रिय रही है. भाकपा(माले) दक्षिणपंथ के हर दकियानूस सोच व नीतियों के खिलाफ अडिग रूप से खड़ी रही है. नागरिकता कानून के नाम पर मुसलमानों व गरीबों को प्रताड़ित करने की कोशिश हो या सांप्रदायिक-जातीय हिंसा व नफरत का ज्वार खड़ा कर राज्य को दंगों व जनसंहार की आग में झोंक डालने की साजिश – हमने हमेशा उसका पर्दाफाश किया है. हमने समाज को एक तार्किक, प्रगतिशील, जनपक्षीय और परिवर्तनकारी दिशा में ले जाने का अथक प्रयास किया है.
बिहार विधानसभा में मौजूद हमारे तीन विधायकों का दल बिहार के हर ज्वलंत मुद्दे पर सक्रियतापूर्वक पहल लेता रहा है और छोटी संख्या के बावजूद विपक्ष की धुरी बना रहा है. अपने राज्य बिहार को भाजपा के फासीवादी चंगुल से बचाने के लिए हमने राजद व कांग्रेस के साथ सीटों का पूर्ण तालमेल व गठबंधन बनाया है. भाकपा व माकपा भी इसमें शामिल है. आपसे अपील है कि बिहार से भाजपा-जदयू सरकार को खदेड़ बाहर करने और भाजपा द्वारा बिहार की सत्ता पर गिद्ध दृष्टि लगाए भाजपा-संघ परिवार के मंसूबे को चकनाचूर करने के इस महाअभियान में शामिल हों, अपने बंधु-बांधवों व ग्रामीणों के साथ हर प्रकार से हमारा सहयोग करें और भाकपा(माले) के प्रत्याशियों को विजयी बनाकर अपने संघर्षों की आवाज को बिहार विधानसभा में भेजें.