वर्ष - 29
अंक - 39
19-09-2020

मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 44 महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को रद्द करके श्रमिकों के अधिकारों को छीनने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है. संसद का मानसून सत्र, जो एक लंबे अंतराल के बाद हो रहा है, उसे इस तरह सूत्रबद्ध किया गया है कि लाखों श्रमिकों और किसानों से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा ही ना हो. जिस तरह से व्यापक विरोध के बावजूद मोदी सरकार तमाम मजदूर व किसान विरोधी कानून बना रही है, वह साफ तौर पर सरकार के मजदूर विरोधी और कारपोरेट समर्थक रुख को दर्शाता है. संसद के वर्तमान सत्र में तीन अत्यंत ही श्रमिक विरोधी विधेयकों को पेश किया जाएगा जिनमें ‘लेबर कोड ऑन सोशल सिक्यूरिटी’, ‘कोड ऑन इंडस्ट्रीयल रिलेशंस’ व ‘लेबर कोड ऑन ओक्युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस’ शामिल हैं.

किसी भी सरकार को मजदूरों-किसानों को गुलामी की ओर धकेलने का अधिकार नहीं

आज जब मोदी सरकार पूरे देश को बता रही है कि ‘लाॅकडाउन’ में मारे गए मजदूरों का उसके पास कोई आंकड़ा नहीं है, तब मजदूर-हितों के लिए बने श्रम कानूनों को खत्म करना, मजदूरों के ऊपर दोहरी मार के समान है. पिछले कुछ वर्षों में बड़े कारपोरेट और सरकार समर्थक थिंक-टैंकों ने ‘ईज ऑफ डूइंग बिजिनेस’ को देश व अर्थव्यवस्था के लिए एक अत्यंत ज़रूरी पैमाने के रूप में पेश किया है, जिसके नाम पर तमाम मजदूर-अधिकारों को छीना जा रहा है. मोदी सरकार की नीतियों के चलते अडानी-अम्बानी जैसे पूंजीपति तो दिनों दिन अमीर हो रहे हैं, पर आम जनता की स्थिति बदतर होती जा रही है.

ऐक्टू का मजदूर अधिकार बचाओ देशव्यापी अभियान

ऐसे में ऑल इंडिया सेंट्रल कौंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) ने भारत को विनाशकारी मोदीशाही के चुंगल से मुक्त कराने तथा गुलामी के श्रम कोड, बढ़ती बेरोजगारी, निजीकरण और देश के संसाधनों को बेचने, लोकतंत्र पर हमले के खिलाफ प्रतिरोध तेज करने के आह्वान के साथ ‘मजदूर अधिकार बचाओ’ देशव्यापी अभियान (16 सितंबर-28 सितंबर) चलाने का निर्णय लिया.

अभियान की शुरूआत 16 सितंबर को ‘मजदूर अधिकार बचाओ, गुलामी के श्रम कोड जलाओ’, ‘गुलामी के सभी चार कोड वापस लो’, ‘भाजपा शासित व अन्य राज्यों में श्रम कानूनों के निलंबन को वापस लो’, ‘12 घंटे का कार्य दिवस नहीं चलेगा, नहीं मानेंगे’ के नारों के साथ देश भर में 4 श्रम कोड की प्रतियां जलाने के साथ हुई.

ऐक्टू महासचिव व अन्य पुलिस हिरासत में लिए गए
दिल्ली में श्रम मंत्रालय के सामने श्रम संहिता विधेयकों की प्रतियां जलाई गईं. प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी व ऐक्टू दिल्ली के अध्यक्ष संतोष राॅय के साथ श्वेता राज और मधृरिमा कुण्डू को मंदिर मार्ग और संसद मार्ग पुलिस थानों में हिरासत में ले लिया और काफी जद्दोजहद के बाद ही उन्हें रिहा किया.

बिहार, झारखंड, प. बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि विभिन्न राज्यों की राजधानियों और जिला स्तर के श्रम विभागों के समक्ष इसी तरह के विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया.

प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए राजीव डिमरी ने कहा, ‘संसद के इस सत्र को महामारी, बेरोजगारी और चौपट अर्थव्यवस्था के मुद्दों को हल करने के लिए नहीं बल्कि मजदूर-किसान विरोधी विधेयकों और अध्यादेशों को पारित करने के उद्देश्य से बुलाया गया है. मोदी सरकार सोचती है कि वह बिना किसी प्रतिरोध के श्रम कानूनों को निरस्त करने की ओर बढ़ सकती है. हम ये कहना चाहते हैं कि ऐक्टू व अन्य संघर्षशील ट्रेड यूनियन संगठन लगातार अपना विरोध दर्ज कराते रहेंगे. सरकार को असली चुनौती का सामना संसद के अन्दर नहीं बल्कि सड़कों पर करना पड़ेगा. संसद के मानसून सत्र के दौरान हम हर दिन अपना प्रतिरोध जारी रखेंगे.’ उन्होंनेे 23 सितंबर के संयुक्त ट्रेड यूनियन कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भागीदारी करने की अपील की.

 

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Patna, Bihar

 

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