का. जनार्दन प्रसाद, भाकपा(माले) के झारखंड राज्य सचिव ने मुख्यमंत्री हेमुत सोरेन को पत्रा भेजकर कई बरसों से मेदिनीनगर जेल में बंद भाकपा(माले) के लोकप्रिय नेता काबीएन सिंह व अन्य साथियों को रिहा करने की मांग की है.
उन्होंने कहा है -- ‘बंदी मुक्ति के लिए राज्य सजा पुनरीक्षण बैठक से लिए गए फैसले ने हमें काफी अचंभित किया है जिसमें ‘जघन्य अपराध’ की विचित्र श्रेणी तथा जेल के बाहर की रिपोर्ट को आधार बनाकर रिहाई योग्य कई बंदियों की रिहाई नहीं की गयी. आजीवन कारावास की सजा भुगत चुके बंदियों को फिर से जघन्य अपराधी की श्रेणी में डालना उनके मानवीय और कानूनी अधिकारों पर हमला है.
‘आजीवन सजा भुगत रहे बंदियों की रिहाई की जो सूची बनाई गयी थी उसमें का. बिश्वनाथ सिंह, प्रदीप विश्वकर्मा और श्रवण विश्वकर्मा, जो पलामू जिले में हमारी पार्टी के नेता रहे हैं, के नाम भी शामिल थे. का. बिश्वनाथ सिंह 2005 के विधानसभा चुनाव में पांकी से भाकपा(माले) के उम्मीदवार थे और वे दूसरा स्थान प्राप्त किये थे. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में इन पर फर्जी मुकदमे किये गए जिसमें आजीवन कारावास की सजा हुई. अफसोस है कि राज्य सजा पुनरीक्षण बैठक में भी इन तीनों बंदियों की रिहाई नहीं की गयी.’
‘इनके लिए पलामू की स्थानीय पुलिस की रिपोर्ट को आधार बनाया गया जिसमें भाकपा(माले) से जुड़े रहने को ही अपराध की संज्ञा दी गयी. यह एक राजनीतिक पार्टीें के खिलाफ अलोकतांत्रिक और गैरकानूनी आक्षेप है. ऐसी रिपोर्ट तो भाजपा शासित राज्यों में विरोधियों को फर्जी मुकदमे में फंसाने के लिए बेधड़क इसतेमाल की जा रही है. क्या हेमंत सरकार भी इसी अलोकतांत्रिक ढर्रे पर चलेगी?’
‘समाज के दबे-कुचले हिस्से से आनेवाले हमारे तीनों कार्यकर्त्ता समाज के दबंग हिस्सों की राजनीति के शिकार हुए हैं. यह अपेक्षा थी कि इस सरकार में आदिवासी, दलित और समाज के कमजोर तबकों के साथ न्याय होगा. बंदी मुक्ति के मसले पर सरकारी निर्णय से यह अपेक्षाएं धूमिल हो गयी हैं. कोरोना के दौर में जहां खुद कोर्ट और सरकारें पूरी दुनिया में कैदियों को जेल से मुक्त करने का आदेश दे रही हैं, हेमंत सरकार द्वारा 20 वर्ष की सजा भुगत चुके बंदियों के बड़े हिस्से को रिहा नहीं करने का निर्णय जनमत और माहौल के खिलाफ है.’