भाकपा(माले) की केंद्रीय कमेटी की संक्षिप्त एक दिवसीय बैठक 6 अगस्त को हुई. बैठक में दुनिया भर में कोविड-19 के चलते प्राण गंवाने वालों, विनाशकारी बेरूत धमाकों में मरने वालों, अनियोजित तथा क्रूरतापूर्वक थोपे गए लाॅकडाउन के शिकार होने वालों, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के अमफन चक्रवाती तूफान और असम व बिहार की बाढ़ के शिकार लोगों की मृत्यु पर शोक प्रकट किया गया.
14-16 मार्च, 2020 को कोलकाता के बाद जिन कामरेडों को हमने खो दिया, उन्हें श्रद्धांजलि दी गई जिनमें कामरेड सत्यनारायण सिंह (बिहार राज्य सचिव, भाकपा), श्यामल चक्रवर्ती (सीटू और माकपा, पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ नेता), चंदन सरकार, शांतनु बख्शी, तरुण प्रकाश कुंडु, प्रदीप बनर्जी (पश्चिम बंगाल), बुद्धा मरियदंडया (मैसूर, कर्नाटक), जीवा (सिवागंगई, तमिलनाडु) जाॅयसिंग हनसे और पातोर फांगचो (कार्बी आंगलोंग), विद्यानंद सहाय, राजकुमार, सुहैल अख्तर, गुड्डू पासवान, कृष्ण बिहारी सिंह, तेतरी देवी, सुखदेव राम, फकरे आलम (बिहार), कांग्रेस यादव, दिलीप सिंह (झारखंड), चितरंजन सिंह (उत्तर प्रदेश), गणनाथ पात्र, माना राव (रायगड़ा, ओडिसा) नरेंद्र कुमार, केशव राम (दिल्ली) और प्रख्यात बुद्धिजीवी व एक्टिविस्ट प्रो. हरि वासुदेवन, मानवेन्द्र बनर्जी (कोलकाता), वी. प्रसाद राव, वी. संबाशिव राव, पांडुरंग रेड्डी (आंध्र प्रदेश), रंगमंचीय शख्सियतें – उषा गांगुली और इब्राहिम अल्काजी, एक्टिविस्ट राया देबनाथ (कोलकाता) और बांग्लादेश की चर्चित सांस्कृतिक शख्सियत कमल लोहनी शामिल हैं.
केंद्रीय कमेटी ने देश में कोविड-19 की निरंतर बिगड़ती स्थिति पर गंभीर चिंता प्रकट की और स्थिति से निपटने में पूर्णतया विफल रहने के लिए केंद्र सरकार और अधिकतर राज्य सरकारों की आलोचना की. सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को दुरुस्त करके तीन ‘टी’ फार्मूला (टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट) पर जोर देने के बजाय लोगों को प्राइवेट लैब, क्लीनिक और अस्पतालों के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है, जो उनसे जम कर वसूली कर रहे हैं.
विभिन्न राज्यों में प्रवासी मजदूरों और अन्य लाॅकडाउन प्रभावित, आपदा पीड़ितों के बीच राहत और सहायता अभियान चलाने के लिए केंद्रीय कमेटी ने कामरेडों को बधाई दी. समाज के लाॅकडाउन प्रभावित हिस्सों के साथ खड़े होने और विभिन्न मुद्दों पर लाॅकडाउन बन्दिशों के बावजूद आंदोलन और प्रतिरोध संगठित करने के लिए केंद्रीय कमेटी ने पार्टी कमेटियों, सदस्यों और समर्थकों को बधाई दी.
मोदी सरकार द्वारा लाॅकडाउन और लाॅकडाउन जनित सामान्य जनजीवन के स्थगन का लाभ उठाते हुए लोगों पर अपना आर्थिक, राजनीतिक और वैचारिक एजेंडा थोपने की शरारतपूर्ण कार्यवाही पर केंद्रीय कमेटी ने गौर किया. आत्मनिर्भर भारत के लिए विशेष आर्थिक पैकेज के नाम पर सरकार ने आक्रामक निजीकरण / काॅर्पाेरेटीकरण अभियान तेज कर दिया है. विदेशी पूंजी के लिए द्वार खोले जा रहे हैं जिसमें कोयला, रेलवे, रक्षा और बैंकिंग जैसे क्षेत्रा खास तौर से निशाने पर हैं. कृषि उदारीकरण और कृषि व्यापार पर काॅर्पाेरेट नियंत्रण के लिए कृषि अध्यादेश लाये जा रहे हैं. मजदूरों के अधिकारों को कमजोर करने और बड़ी पूंजी के प्रभुत्व को मजबूत करने के लिए श्रम कानूनों को स्थगित किया जा रहा है और उनका पुनर्लेखन हो रहा है. पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को कमजोर या निष्प्रोज्य किया जा रहा है और हाल ही में सरकार नई शिक्षा नीति (2020) ले कर आई है, जो बड़े पैमाने पर छात्र-छात्राओं की बेदखली, शिक्षा का व्यापारीकरण, शिक्षा व्यवस्था के केन्द्रीकरण और भगवाकरण और शिक्षा के क्षेत्र में वर्ण व्यवस्था को पुनः लागू करने का ब्लूप्रिंट है.
मोदी सरकार के इस नीतिगत हमले के खिलाफ चल रहे प्रतिवादों और विकसित होते प्रतिरोधों का केंद्रीय कमेटी ने स्वागत किया और अपनी सभी कमेटियों और कामरेडों का आह्वान किया कि वे इन प्रतिरोधों को तीव्र करने के लिए पूरी ताकत से जुट जाएं.
हमारे संसाधनों पर आर्थिक प्रहार के अलावा, मोदी सरकार ने जन आंदोलनों की विभिन्न धाराओं, खास तौर पर सीएए-विरोधी उभार, क्रांतिकारी छात्र आंदोलन और मानवाधिकार अभियान से जुड़े हुए कार्यकर्ताओं के विरुद्ध दमनात्मक अभियान और राजनीतिक धरपकड़ तेज कर दी है. भीमा कोरेगांव मामले में और गिरफ्तारियों के साथ, गिरफ्तार होने वालों की कुल संख्या बारह हो गयी है और दिल्ली दंगों के केस को शाहीनबाग प्रतिवाद और ‘भारत बचाओ, संविधान बचाओ’ अभियान के लिए षड्यंत्र में तब्दील कर दिया गया. कई एक्टिविस्टों को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है (जैसे ‘पिंजरा तोड़’ अभियान की नताशा नरवाल और देवांगना कालिता, घृणा के विरुद्ध एकजुट अभियान के खालिद सैफी आदि) तथा कई औरों से पूछताछ की जा रही और उन्हें चार्जशीटों में फंसाया जा रहा है (आइसा दिल्ली की अध्यक्ष कंवलप्रीत कौर, माले नेता कविता कृष्णन, जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव, शांति और न्याय अभियान के हर्ष मंदर, दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिशियन अपूर्वानंद और कई अन्य कार्यकर्ता इस सूची में शामिल हैं). सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों की धरपकड़ कई भाजपा शासित राज्यों में चल रही है, जिसमें असम और उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं (गोरखपुर के प्रख्यात बाल रोग विशेषज्ञ डा. कफील खान मथुरा जेल में हैं जबकि अखिल गोगोई और उनके साथी असम में गिरफ्तार हैं तथा माले नेता कामरेड बिबेक दास का फोन पुलिस ने जब्त कर लिया है). केंद्रीय कमेटी भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी बनाए गए लोगों और सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों की बिना शर्त रिहाई की मांग करती है.
केंद्रीय कमेटी ने जम्मू कश्मीर के हालात की भी समीक्षा की, जहां एक साल से सामूहिक कैद, दमन और इंटरनेट बंदी जारी है और अब कश्मीरियों से उनके अधिकार छीनने के लिए और बाहरी लोगों को अधिक अधिकार तथा नौकरियों व संसाधनों पर कब्जा दिलाने के लिए कानूनों में निरंतर बदलाव किया जा रहा है ताकि इस पूर्व-राज्य की जनसांख्यकीय स्थिति बदल दी जाये. साथ ही, वैचारिकी से लैस कदम के तौर पर सरकार ने ऑपरेशन कश्मीर की पहली बरसी को पूर्ववर्ती बाबरी मस्जिद के स्थल पर राम मंदिर के शिलान्यास के दिवस के रूप में चुना. हालांकि यह कदम अपने आप में संविधान व उसकी भावना और न्याय, धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व के वायदे पर खुला हमला था, लेकिन अयोध्या में मोदी के भाषण में जिस तरह 5 अगस्त को 15 अगस्त से जोड़ा गया, वह आरएसएस-भाजपा द्वारा भारत को फासिस्ट हिन्दू राष्ट्र में बदलने की उनकी योजना की सर्वाधिक मुखर अभिव्यक्ति है. बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि का विवाद या टकराव भारत की आजादी के पूरे आंदोलन में कभी सामने नहीं आया. अयोध्या और उससे लगे हुए इलाके 1857 की बगावत के महत्वपूर्ण केंद्र थे और ब्रिटिश शासकों के खिलाफ पूरा इलाका 1857 की हिन्दू-मुस्लिम एकता की भावना से ओतप्रोत था. यहां तक कि स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरण में जब सांप्रदायिक विभाजन तीव्र हुआ, तब भी अयोध्या टकराव की वजह नहीं बना. 22-23 दिसंबर, 1949 को मस्जिद में रहस्यमय तरीके से मूर्तियां रखे जाने के बाद (गांधी की हत्या के लिए गोडसे को फांसी चढ़ाये जाने के कुछ समय बाद और आरएसएस द्वारा भारत के संविधान को मानने, राष्ट्र ध्वज का सम्मान करने तथा राजनीति से दूर रहने व एक सांस्कृतिक संगठन के तौर पर काम करने के वायदे पर प्रतिबंध हटने के कुछ समय बाद) जिसे 9 नवंबर के अयोध्या फैसले में मस्जिद को अपवित्र करना कहा गया है, के बाद ही यह विवाद पैदा किया गया.
15 अगस्त ने संविधान को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया और संविधान ने धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की बुनियाद और खाका प्रदान किया. इसके विपरीत 5 अगस्त तो 6 दिसंबर 1992 के मस्जिद विध्वंस की उपज है जो भारत के संविधान पर चोट थी. अतः हमें अगस्त की वास्तविक विरासत पर पुनः जोर देना चाहिए – 9 अगस्त का ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन आजादी के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय उभार था और 15 अगस्त स्वतंत्रता आंदोलन की औपचारिक परिणति थी – उसे आज के संदर्भ में भारत के संविधान, लोकतंत्र और राष्ट्रीय हितों पर मोदी सरकार के निरंतर प्रहार के विरुद्ध ‘लोकतंत्र बचाओ, संविधान बचाओ’ का आह्वान करना चाहिए. इस सांप्रदायिक विमर्श को हमें अपने आगामी कार्यक्रमों में जबरदस्त जन भागीदारी के जरिये मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए – 9 अगस्त को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का प्रतिवाद, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति द्वारा प्रतिवाद, आइसा स्थापना दिवस, 13 अगस्त को कर्ज मुक्ति दिवस (सूक्ष्म वित्त कर्जदार महिलाओं और अन्य छोटे कर्जदारों व ईएमआई दाताओं पर केंद्रित) और 15 अगस्त को ‘संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, भारत बचाओ’ दिवस के रूप में मनाएं.
केंद्रीय कमेटी ने बिहार की स्थिति पर भी चर्चा की जहां चुनाव आयोग और एनडीए कोविड से निरंतर बिगड़ती स्थिति के बीच चुनाव कराने पर उतारू हैं. हमने और अन्य विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग को लिखा है कि चुनाव को ‘सुपर स्प्रेडर’ यानि संक्रमण के व्यापक फैलाव का आयोजन न बनने दें. चुनाव आयोग पर सार्वजनिक स्वास्थ्य और चुनावी प्रक्रिया में जनता की भागीदारी से समझौता न करने का दबाव बनाते हुए भी, हमें चुनाव के लिए अपनी तैयारियां तेज कर देनी चाहिए. राजद और अन्य विपक्षी पार्टियों से गठबंधन की संभावना तलाशते हुए, हमें जमीनी स्तर पर अपनी तैयारियों को किसी हाल में कमजोर नहीं होने देना चाहिए. हमारे चुनिंदा विधानसभा क्षेत्रों में, बूथ स्तर पर केंद्रीकृत करते हुए, हमें अपनी तैयारियों को युद्ध स्तर पर पहुंचा देना चाहिए. केंद्रीय कमेटी ने पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु की रिपोर्ट भी सुनी जहां अगले साल के शुरू में चुनाव होने हैं. पश्चिम बंगाल में सीपीएम और कांग्रेस अपनी 2016 की साझेदारी को संभवतः ज्यादा खुले और औपचारिक रूप में दोहराने की तैयारी में हैं, इसलिए किसी अर्थपूर्ण वाम एकता की संभावना काफी कमजोर प्रतीत होती है. असम में भाजपा के खिलाफ बहुतेरे प्रयास जारी हैं और सर्व समावेशी, चुनाव-पूर्व गठबंधन की संभावना नगण्य है. हमें बहुत सारे विपक्षी गठबंधनों के लिए तैयार रहना चाहिए, अपनी संभावित सीटें चिन्हित करके स्वतंत्रा तैयारी पर जोर देना चाहिए.
हालांकि निरंतर भाजपा विरोधी रुझान बढ़ रहा है और बहुत सारे मुद्दे हैं जिन पर लोग आंदोलित हैं, पार्टी और प्रमुख जन संगठनों के मामले में हमारे सांगठनिक नेटवर्क और पहलकदमियों का निर्णायक महत्व होगा. यही बात कार्बी आंगलोंग पर भी लागू होती है. तमिलनाडु में हम जन सक्रियता और व्यापक सांगठनिक गतिशीलता के दौर से गुजर रहे हैं और हमें इस प्रक्रिया को व्यवस्थित और तेज करना चाहिए तथा अभी से इसे अपनी चुनावी योजना से जोड़ देना चाहिए.