कोरोना की आड़ में सरकारें कड़े कानून बना कर तानाशाही को ओर बढ़ रही हैं. हमारे देश में महामारी से लड़ने हेतु एक कानून अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है जिसे ‘महामारी रोग अधिनियम, 1897’ के नाम से जाना जाता है. इस ऐक्ट के अंतर्गत पारित आदेशों का उलंघन आईपीसी की धारा-188 में दंडनीय है जिसमें एक महीने की साधारण जेल और 200 रुपया जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
हाल में केन्द्रीय सरकार ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन करके इसे अति कठोर बना दिया है. इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा करता है और उसे साधारण चोट पहुंचाता है तो दोषी पाए जाने वाले को 3 महीने से लेकर 5 साल तक की जेल और 50,000 से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना और गंभीर चोट पहुंचाने पर 6 महीने से लेकर 7 साल तक की जेल की सजा और 1 लाख से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगेगा. इस सजा के अतिरिक्त उसे किसी भी प्रकार की संपत्ति की क्षति की पूर्ती हेतु क्षति के बाजार पर मूल्य का दुगना हर्जाना भी देना होगा.
इसी प्रकार दिनांक 6 मई 2020 को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसे विस्तार देने के साथ-साथ और भी कठोर बना दिया है. ‘यूपी लोक स्वास्थ्य एवं महामारी रोग नियंत्रण अध्यादेश’ के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी को जानबूझकर बीमारी से संक्रमित करता है और उसकी मौत हो जाती है तो उसे आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है. अगर कोई व्यक्ति किसी को संक्रामक रोग से जानबूझकर उत्पीड़ित करता है तो उसे 2 से 5 साल तक की जेल और 50 हजार से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. अगर जानबूझकर कोई 5 या अधिक व्यक्तियों को संक्रमित कर उत्पीड़ित करता है तो उसे 3 से 10 साल तक जेल हो सकती है; साथ ही 1 लाख से 5 लाख रुपये तक जुर्माना भी है. अगर इस उत्पीड़न की वजह से मौत हुई तो तो कम से कम 7 साल की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास तक हो सकता है. वहीं, 3 लाख से 5 लाख रुपये जुर्माने की भी सजा तय की गई है. इसमें स्वास्थ्य कर्मियों के अतिरिक्त सफाई कर्मियों, पुलिस कर्मचारियों तथा कोरोना कार्य में लगे अन्य सभी कर्मचारियों को भी शामिल कर दिया गया है.
अध्यादेश में यह भी शक्ति दी गई है कि सरकार पीड़ित व्यक्तियों के मृत शरीरों के निस्तारण या अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी निर्धारित कर सकती है. अगर किसी व्यक्ति या किसी संगठन के जानबूझकर या उपेक्षापूर्ण आचरण से नुकसान होता है तो उसकी वसूली भी उसी से की जाएगी. अगर इस कृत्य से किसी की मौत हो जाती है तो दोषी से सरकार के दिए गए मुआवजे के बराबर वसूली की जा सकेगी.
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि कोरोना संकट की आड़ में सरकारें अति कठोर कानून बना कर अपनी पकड मज़बूत करने में लगी हैं जोकि लोकतंत्र के लिए खतरा है. यह भी सर्वविदित है कि इन कानूनों के पूर्व की भांति दुरुपयोग की भी पूरी सम्भावना रहती है.
यह विचारणीय है कि कि अगर अंग्रेजी सरकार पुराने कानून के साथ 50 साल तक प्लेग आदि महामारियों से निटप सकती है तो हमारी लोकतांत्रिक सरकार इससे क्यों नहीं निपट सकती? इस दौर में पुलिस को बर्बरता की खुली छूट दे रखी गई है, जो कि खुल कर सामने आ रही है.
पूरे देश में कोरोना रोकने के नाम पर इतनी ज्यादा सख्ती और डर का माहौल तो इंदिरा गांधी द्वारा लगायी गई इमरजेंसी में भी नहीं था, यह मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं, क्योंकि उस समय मैं पुलिस सेवा में था और इमरजेंसी लागू करने का काम मैंने स्वयं किया था.
– एस आर दारापुरी
(अवकाशप्राप्त आईपीएस एसआर दारापुरी ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
(‘अम्बेडकर इन इंडिया’ के जून, 2020 अंक में प्रकाशित लेख का संक्षिप्त अंश)