29 जुलाई 2020 को पटना सहित बिहार के सभी जिला मुख्यालयों में राज्यकर्मियों-शिक्षकों द्वारा राज्यकर्मियों की छमाही अनिवार्य सेवानिवृत्ति संबंधी निर्गत संकल्प की प्रति को जलाकर विरोध किया गया और उक्त संकल्प को तुरंत वापस लेने के संबंध में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव एवं अपर मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग को संयुक्त ज्ञापन सौंपा गया.
सामान्य प्रशासन विभाग, बिहार, पटना के संकल्प संख्या 6832 (दिनांक 23.7.2020) को वापस लेने संबंधी संयुक्त ज्ञापन में कहा गया है कि यह आदेश और इसमें किये गए प्रावधान बिल्कुल अलोकतांत्रिक, अफसरशाही को निरंकुश और राज्यकर्मियों को गुलाम बनाने वाला है. इससे स्वच्छ राज्य प्रशासन के लिए अनिवार्य लोकतांत्रिक व सौहार्दपूर्ण वातावरण गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होगा और प्रशासन में अवांछनीय चाटुकारिता व जी-हुजूरी का वातावरण स्थापित होगा. साथ ही, इस संकल्प के कारण लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा व राज्य सरकार के सुशासन व न्याय की नीति पर गंभीर आघात पड़ेगा.
ज्ञापन में आगे कहा गया है कि दक्ष व सुदृढ़ प्रशासन के अनेक कारक होते हैं जिसमें मंत्रिपरिषद, विभागीय मंत्री, विभागीय प्रधान / विभागाध्यक्ष / कार्यालय प्रधान की कार्य-पद्धति, कार्य कुशलता, नियमों के प्रति उनकी आस्था और अधीनस्थों के प्रति लोकतांत्रिक आचरण केंद्रीय और निर्णायक कारक होता है.
जारी संकल्प में इस ओर से आंखें मूंद कर समीक्षा समिति / नियुक्ति प्राधिकार / नियंत्री प्राधिकार को निरंकुश अधिकार और किसी कर्मचारी विशेष के प्रति पूर्वाग्रह-दुराग्रह को साधने का अवसर दे दिया गया है जो कत्तई उचित और स्वीकार्य नहीं हो सकता है.
संयुक्त ज्ञापन में कहा गया है कि बिहार सेवा संहिता का नियम-74 एक विशेष प्रावधान है जो एक तरफ नियुक्ति पदधिकारियों को किसी कर्मचारी विशेष के मामले में उसे अनिवार्य सेवा निवृत्ति देने का अधिकार देता है तो दूसरी ओर सेवा त्याग करने हेतु किसी इच्छुक कर्मचारी को भी स्वेच्छा से ऐसा करने का अधिकार देता है. यह कोई आम नियम नहीं है. लेकिन जारी संकल्प से इसे दैनिक क्रिया के रूप में तब्दील कर दिया गया है एवं हर साल छह-छह महीने में कर्मचारियों को जबरिया सेवा निवृत्ति दे देने का जरिया बना दिया गया है जिसे कत्तई जायज एवं न्यायसम्मत नहीं माना जा सकता है.
संकल्प में यह अवश्य कहा गया है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति का प्रभाव दंडात्मक नहीं माना जाएगा. लेकिन व्यवहारिक अर्थ में राज्यकर्मियों तथा उनके परिवार के लिए यह गहरा दंडात्मक प्रभाव डालने वाला निर्णय साबित होगा जिसे मानवीय दृष्टि से सहजता से समझा जा सकता है.
संकल्प में अराजपत्रित कर्मियों के मामले में उनके प्रतिनिधि को भी समीक्षा समिति की बैठक में आमंत्रित करने का निर्णय अंकित किया गया है जो अराजपत्रित कर्मचारियों के प्रतिनिधि संगठनों को बिल्कुल अस्वीकार्य है. कर्मचारी संघ-महासंघ के नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि कर्मचारी संगठन का कोई प्रतिनिधि कर्मचारियों के जबरिया सेवा समाप्ति के किसी भी सरकारी प्रक्रिया का हिस्सेदार नहीं होगा.
पटना में नया सचिवालय (विकास भवन) के सामने बिहार सचिवालय सेवा संघ के अध्यक्ष श्री विनोद कुमार, बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ (गोप गुट) के महासचिव श्री प्रेमचंद कुमार सिन्हा, बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष श्री विश्वनाथ सिंह एवं बिहार विश्वविद्यालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष श्री शंकर यादव के नेतृत्व में उक्त संकल्प की प्रति को जलाया गया जिसमें महासंघ (गोप गुट) के सम्मानित अध्यक्ष रामबली प्रसाद तथा राज्यस्तरीय नेता निरंजन कुमार सिन्हा, शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ की नेता नीलम कुमारी, अमित मिश्रा, बालकृष्ण मेहता, ऐक्टू के राष्ट्रीय सचिव रणविजय कुमार सहित दर्जनों कर्मचारी नेता उपस्थित रहे. प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के लगभग सभी जिला मुख्यालयों में संयुक्त रूप से राज्य सरकार के कर्मचारी विरोधी संकल्प की प्रति को जलाया गया जिसका नेतृत्व संबंधित जिलाध्यक्षों-सचिवों ने किया.