भाजपा सरकार की मजदूर विरोधी, किसान विरोधी, जन विरोधी व देश विरोधी नीतियों के खिलाफ तमाम केंद्रीय ट्रेड यूनियनों तथा कर्मचारी संघों/महासंघों ने 9 अगस्त को ‘भारत बचाओ’ दिवस मनाया और इस दिन सत्याग्रह, जेल भरो, जुलूस व रैलियां जैसे कार्यक्रम संगठित किए जिसे भारी जन समर्थन प्राप्त हुआ. मजदूरों, किसानों और आम जनता ने अपने-अपने कार्य-स्थलों, यूनियन दफ्तरों तथा सड़कों पर इन कार्यक्रमों में भागीदारी की.
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने अपने संयुक्त वक्तव्य में कहा कि देश भर में लगभग एक लाख जगहों पर ये कार्यक्रम आयोजित किए जिनमें कुल मिलाकर लगभग एक करोड़ लोगों ने शिरकत की. राजधानी दिल्ली के औद्योगिक इलाकों के साथ-साथ जंतर मंतर पर भी एक कार्यक्रम हुआ जिसमें केंद्रीय ट्रेड यूनियनों – इंटक, ऐटक, सीटू, ऐक्टू, एचएमएस, एआइयूटीयूसी, टीयूसीसी, ‘सेवा’, एलपीएफ, यूटीयूसी के अलावा बैंक, बीमा, प्रतिरक्षा, बिजली, रेलवे, पेट्रोलियम, डाक और दूर-संचार क्षेत्रों के राष्ट्रीय नेतागण शामिल हुए.
देश भर में हुए इन प्रतिवादों के दौरान श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधन वापस लेने; श्रमिकों के लिए 21000 रुपया न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने; सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को बेचना बंद करने; किसान विरोधी अध्यादेशों को रद्द करने; कोरोना अवधि में मजदूरों को वेतन देने व उनकी छंटनी पर रोक लगाने; किसानों की फसलों के लिए उचित मूल्य देने; कर्ज से मुक्ति; मनरेगा में 200 दिन का काम; काॅरपोरेट फार्मिंग पर रोक लगाने; आंगनबाड़ी, मध्याह्न भोजन व आशा कर्मियों की सेवा के नियमितीकरण; फिक्स्ड टर्म नियोजन की प्रथा खत्म करने और प्रति व्यक्ति 10 कि.ग्रा. राशन व 7500 रुपया भत्ता देने जैसी मांगें उठाई गईं.
इस मौके पर ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने कहा कि आने वाले दिनों में मोदी राज के खिलाफ आन्दोलन और तेज किए जाएंगे. चार महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को खत्म करने और इसके बदले चार श्रम कोडों को लागू करने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है. कोरोना संकट के समय भी काम के घंटे को 8 से बढ़ाकर 12 कर दिया गया है. विशाखापत्तनम से लेकर दिल्ली तक, पूरे देश में मजदूरों के लिए कार्य-स्थितियां बेहद खतरनाक हो गई हैं. हाल की औद्योगिक दुर्घटनाओं में अनेक मजदूरों की मौत हो गई है और कई मजदूर बुरी तरह जख्मी हो गए हैं, लेकिन तब भी फैक्ट्री अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, ट्रेड यूनियन अधिनियम और अन्य महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को क्षतिग्रस्त कर मजदूरों की सुरक्षा को ताक पर रख दिया गया है.
मोदी सरकार ने न केवल ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा प्रस्तुत सुझावों को दरकिनार कर दिया है, बल्कि वह इन सुझावों के ठीक विपरीत काम कर रही है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार, आरएसएस, भाजपा और संघ परिवार धार्मिक व सांप्रदायिक दिशा में मजदूर वर्ग को विभाजित करने और नफरत व हिंसा फैलाने के जरिये समरसतापूर्ण माहौल को बिगाड़ने में लगे हुए हैं. इस सब की आड़ में वे मजदूरों व किसानों के अधिकारों को छीन लेना चाहते हैं. मोदी सरकार भारतीय रेल, बीपीसीएल, ओएनजीसी और ‘भेल’ जैसी राष्ट्रीय संपदा की नीलामी करने की ओर कदम बढ़ रही है. सरकार इन संस्थानों और श्रमिकों को पूंजीपतियों के हवाले कर देना चाहती है जिसके जरिये हमारा देश कई मामलों में आत्मनिर्भर बना है.
इस कोरोना संकट ने सब के सामने निजी अस्पतालों की लालच व मुनाफाखोरी को उजागर कर दिया है. अगर रेलवे और सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य इकाइयों का निजीकरण किया जाएगा तो यह गरीबों व मेहनतकश अवाम के लिए सबसे बड़ी त्रासदी होगी. रेल मजदूरों के बीच काफी गुस्सा है; कोयला मजदूरों ने हड़ताल की; प्रतिरक्षा क्षेत्र के श्रमिकों ने भी हड़ताल की घोषणा की; स्कीम वर्कर देश भर में आन्दोलन कर रहे हैं. यह सरकार ‘आत्मनिर्भरता’ के नाम पर देश को गिरवी रख देना चाहती है. लेकिन, भारत का मजदूर वर्ग मोदी सरकार को देश बेचने की इजाजत हर्गिज नहीं देगा.
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने कहा कि यह सरकार न केवल समय रहते इस महामारी की रोकथाम के लिए उचित कदम उठाने में नाकाम रह गई, बल्कि उसने बिना किसी योजना के आनन-फानन में लाॅकडाउन घोषित कर लोगों और खासकर, प्रवासी मजदूरों की तकलीफें बढ़ा दीं. सरकार ने स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर बनाने और फ्रंट लाइन योद्धाओं के लिए सुरक्षा उपकरण मुहैया कराने के लिए कारगर प्रयास नहीं किया; और न ही उसने लाॅकडाउन अवधि में जनता की जरूरतें पूरी करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मियों की सेवाओं को उचित महत्व दिया. इसके विपरीत, सरकार ने काॅरपोरेटों और बड़े व्यवसाइयों के हितसाधन के लिए ही सारे कदम उठाए.
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के थोक भाव में निजीकरण व विनिवेश; तथा भारतीय रेल, प्रतिरक्षा, गोदी व बंदरगाह, कोयला, एयर इंडिया, बैंक व बीमा, दूर संचार, बिजली, डाक के साथ-साथ अंतरिक्ष विज्ञान व परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर एफडीआई की योजना का विरोध किया है. इसके साथ ही, श्रम संगठन तमाम आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में लगातार इजाफे का भी विरोध कर रहे हैं.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के घटक लगभग 250 किसान संगठनों ने मोदी सरकार की कारपोरेटपरस्त और देश के संशाधनों को बेचने की नीतियों के खिलाफ जोरदार प्रतिवाद दर्ज किया. किसान संगठनों ने देश के लगभग 500 जिलों में प्रदर्शन आयोजित किए. दिल्ली के जंतर मंतर पर भी प्रदर्शन किया गया और कृषि संबंधी तीनों अध्यादेशों की प्रतियों को जलाया गया. इन प्रदर्शनों में लाखों किसानों ने भागीदारी की. कई स्थानों पर ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों ने संयुक्त रूप से भी प्रदर्शन आयोजित किए.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने इस विरोध कार्यक्रम को जोर देने के लिए लगातार 9 दिन फेसबुक लाइव के जरिये किसानों को संबोधित किया. इसमें समिति से जुड़े किसान संगठनों के नेताओं ने किसानों को संबोधित किया. 9 अगस्त को सुबह 10 बजे से 4 बजे तक चले लाइव कार्यक्रम में किसान नेताओं के संदेश के साथ देश भर से प्रदर्शन की लाइव वीडियों भी दिखाए जाते रहे. इस फेसबुक लाइव कार्यक्रम को लाखों किसानों ने देखा.
इस लाइव कार्यक्रम को किसान नेता वीएम सिंह, योगेंद्र यादव, का. राजा राम सिंह, का. रुलदू सिंह, का. हन्नान मौलाह, का. अशोक धावले, डा. सुनीलम, मेधा पाटकर, राजू सेट्टी, प्रतिभा शिंदे, आशीष मित्तल, दर्शन पाल सहित दर्जनों किसान नेताओं ने संबोधित किया. अखिल भारतीय किसान महासभा से दिल्ली मुख्यालय, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम के नेताओं ने भी फेसबुक लाइव कार्यक्रमों को संबोधित किया.
देश भर के किसानों ने निम्नलिखित 9 मांगों पर विरोध कार्यक्रम आयोजित किए:
1. 5 जून 2020 को जारी किए गए तीनों कृषि अध्यादेशों को वापस लिया जाए, क्योंकि ये अध्यादेश अलोकतांत्रिक हैं और कोविड-19 तथा राष्ट्रीय लाॅकडाउन के आवरण में अमल किए गए हैं. ये किसान विरोधी हैं. इनसे फसल के दाम घट जाएंगे और बीज सुरक्षा समाप्त हो जाएगी. इससे उपभोक्ताओं के खाने के दाम बढ़ जाएंगे.
2. सभी किसानों के लिए कर्जदारी से मुक्ति की गारंटी सुनिश्चित किया जाए. सरकार को एआईकेसीसी द्वारा प्रस्तावित कर्जदारी से मुक्ति कानून पारित करना चाहिए और रब्बी 2019-20 फसल का कर्ज माफ करना तथा खरीफ फसल 2020 के लिए ब्याज मुक्त केसीसी जारी करना चाहिए. एसएचजी और माइक्रो फाइनेंस संस्थानों से लिए गए कर्ज का ब्याज माफ करो और उनकी वसूली पर रोक लगाओ.
3. सरकार यह सुनिश्चित करे कि पूरा लाभकारी मूल्य हर किसान का कानूनी अधिकार बने. सरकार को एआईकेसीसी द्वारा प्रस्तुत सभी किसानों के लिए लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून पारित करना चाहिए. इसके लिए आवश्यक है की सभी कृषि उत्पादों (सब्जी, फल और दूध समेत) का एमएसपी कम से कम सी-2 लागत और उस पर 50 फीसदी अधिक घोषित हो. सरकार को इस दाम पर फसल खरीद की गारंटी देनी चाहिए और सभी किसानों को विभिन्न तरीके से कानूनी अधिकार भी. एमएसपी से कम रेट पर खरीद करना फौजदारी जुर्म घोषित होना चाहिए.
4. बिजली बिल 2020 वापस लो. सरकार को यह बिल वापस लेना चाहिए तथा इस कोरोना दौर में किसानों, छोटे दुकानदारों, छोटे व मंझोले उद्यमियों तथा आमजन का बिजली का बिल माफ करना चाहिए. डीबीटी योजना को अमल में नहीं लाना चाहिए.
5. इस साल हुए फसल के नुकसान का किसानों को मुआवजा दो. फरवरी से जून, 2020 के बीच ओलावृष्टि, बिन मौसम बरसात और लाॅकडाउन के कारण किसानों की सब्जी, फल, फसल एवं दूध के नुकसान का सरकार को पूरा मुआवजा देना चाहिए.
6. डीजल का दाम तुरंत कम करो. डीजल का दाम तुरंत आधा किया जाए, अंतरराष्ट्रीय रेट 2014 की बनिस्पत 60 फीसदी घटा है, लेकिन भारत सरकार का टैक्स दोगुना बढ़ा है.
7. मनरेगा में काम का दिन बढ़ा कर साल में 200 दिन किया जाए और न्यूनतम मजदूरी की दर से भुगतान किया जाए, ताकि खेतिहर मजदूर व छोटे किसान गांव वापस आएं; प्रवासी किसानों को इस संकट में अपने घर में काम मिल सके और उनकी जीविका चल सके.
8. हर व्यक्ति को राशन में पूरा खाना दिया जाए और परिवार को अतिरिक्त नगद समर्थन दिया जाए. राशन में हर महीने प्रति यूनिट 15 किलो अनाज, 1 किलो तेल, 1 किलो दाल और 1 किलो चीनी सरकार को देना चाहिए.
9. आदिवासियों व अन्य किसानों की जमीन व वन संसाधन की रक्षा करो, कंपनियों द्वारा जमीन अधिग्रहण करने पर रोक लगाओ. सरकार को एक पीढ़ी से ज्यादा खेती कर रहे किसानों को नहीं उजाड़ना चाहिए. कैंपा कानून के नाम पर जंगल की जमीन पर जबरन प्लांटेशन लगाना बंद किया जाए.
राजधानी पटना में पटना जंक्शन गोलंबर से डाक बंगला चौक तक केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ऐक्टू, एटक, सीटू, इंटक, एआईयूटीयूसी, यूटीयूसी, टीयूसीसी, एआईएमयू, एचएमएस आदि से जुड़े श्रमिक संघों ने संयुक्त बैनर तले पुरजोर नारों के साथ ‘जेल भरो सत्याग्रह प्रदर्शन’ निकाला और डाकबंगला चौक पर सभा का आयोजन किया.
पटना में हुए प्रदर्शन का नेतृत्व ट्रेड यूनियन नेता आरएन ठाकुर, रणविजय कुमार, धीरेंद्र झा, शशि यादव, रामबली प्रसाद, गजनफर नवाब, गणेश शंकर सिंह, चंद्रप्रकाश सिंह, सूर्यकर जितेंद्र, अनामिका, वीरेंद्र ठाकुर, अनिल शर्मा, नृपेन कृष्ण महतो आदि कर रहे थे.
डाकबंगला चौक पर हुई संक्षिप्त सभा का सम्बोधित करते हुए इन मजदूर नेताओं ने मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ को धोखा और भारत को बेचने का नुस्खा बताया और मोदी सरकार के लगातार हमलों से लोकतंत्र व संविधान, सरकारी क्षेत्र व राष्ट्रीय संसाधन तथा रोजगार व अधिकार बचाने का आह्वान किया.
इस कार्यक्रम में ऐक्टू व इससे सम्बद्ध ‘खेग्रामस’, कर्मचारी महासंघ (गोप गुट) तथा विद्यालय रसोइया संघ से जुड़े सदस्यों ने अच्छी संख्या में भाग लिया. ऐक्टू नेता जितेंद्र कुमार के नेतृत्व में ऐक्टू से संबद्ध इंडियन रेलवे एम्प्लाॅईज फेडरेशन (आईआरईएफ) से जुड़े ईस्ट सेंट्रल रेलवे एंप्लाॅई यूनियन (ईसीआरईयू) के दर्जनों सदस्यों ने अलग से पटना जंक्शन परिसर में मोदी के रेल बेचो, पोस्ट समाप्त करो अभियान के खिलाफ रेल बचाओ प्रदर्शन किया.
बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ की महासचिव सरोज चौबे, ऐपवा नेत्री विभा गुप्ता, किसान महासभा के नेता उमेश सिंह ने भाकपा(माले) राज्य कार्यालय में धरना देकर कार्यक्रम में भागीदारी की.
पटना के अलावा ऐक्टू व इससे जुड़े श्रमिक संगठनों खेग्रामस, आशा कार्यकर्ता संघ, विद्यालय रसोइया संघ, स्थानीय निकाय कर्मचारी महासंघ, बिहार राज्य निर्माण मजदूर यूनियन व अन्य स्थानीय संघों ने राज्य के अन्य जिलों में भी – खासकर दरभंगा, मोतिहारी, बेतिया, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, समस्तीपुर, गोपालगंज, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, मधेपुरा, बेगूसराय, भगलपुर, मुंगेर, जमुई, नालन्दा, नवादा, जहानाबाद, गया, डेहरी-ऑन-सोन, भोजपुर, बक्सर में – प्रदर्शन कर मोदीशाही के चंगुल से देश को मुक्त करने का आह्वान किया.
उधर, स्कीम वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने; जब तक सरकारी कर्मचारी नहीं होती हैं, तब तक मानदेय 21000 रुपया करने, प्रवासी मजदूरों समेत तमाम स्कीम वर्करों को 10000 रुपया लाॅकडाउन भत्ता देने, 6 महीने तक प्रवासी मजदूरों समेत तमाम स्कीम वर्करों को 10 किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से अनाज मुफ्त मुहैया करने, क्वारंटाइन सेंटरों में काम करने वाली रसोइयों को 500 रुपया प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी का अविलंब भुगतान करने, रसोइयों को 10 महीने की बजाए 12 महीने का मानदेय देने एवं मानदेय का नियमित भुगतान करने, मृत रसोइयों को 50 लाख रुपये जीवन बीमा भत्ता का भुगतान करने आदि सवालों को लेकर बिहार में स्कीम वर्करों की दो दिवसीय अखिल भारतीय हड़ताल सफलतापूर्वक संपन्न हो गई.
बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ की महासचिव व ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय संयोजक सरोज चैबे ने बताया कि इस दो-दिनी हड़ताल में पटना, पटना सिटी, भोजपुर, नालंदा, गया, नवादा, मुंगेर, जमुई, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, सिवान व कटिहार की रसोइयों ने भाग लिया. पटना सिटी में राखी मेहता, मुंगेर में सुनीता देवी, बीना देवी, भोजपुर में इंदू सिंह, सिवान में सोहिला गुप्ता, नालंदा नवादा में सावित्री देवी, गया में रीता वर्णवाल, कटिहार में जूही आलम ने हड़ताल कार्यक्रम का नेतृत्व किया.
का. चौबे ने कहा कि यदि सरकार रसोइयों की मांगें नहीं मानती है तो आगे आंदोलन और तेज किया जाएगा. उन्होंने यह भी मांग की कि बिहार सरकार तमाम स्कीम वर्कर की जान जोखिम में डालकर चुनाव न करवाएं. यदि वह ऐसा करने पर आमादा हो जाएगी तो रसोईया बिहार सरकार के खिलाफ भी आंदोलन करने को बाध्य होंगे.
वहीं, ऐक्टू व महासंघ (गोप गुट) से सम्बद्ध बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की राज्य अध्यक्ष सह ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय संयोजिका शशि यादव ने आज जारी बयान में कहा है कि आशाओं की न्यायसंगत मांगों की उपेक्षा करना पटना-दिल्ली सरकार को मंहगा पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि केंद्र व राज्य की सरकारें कोरोना वारियर्स और उनके परिवारों के प्रति सरकार बिल्कुल असंवेदनशील हैं. हमने इन सरकारों को अपना मांगपत्र थमा दिया है और सरकार को तत्काल उन मांगों को पूरी करनी चाहिए.
का. सरोज चैबे और शशि यादव ने इस सफल हड़ताल के लिए, और साथ ही ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन दिवस के अवसर पर अच्छी भागीदारी निभाने के लिए सभी स्कीम वर्कर्स को धन्यवाद दिया.
अखिल भारतीय किसान महासभा, एक्टू, आइसा व आरवाईए ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में धरना-प्रदर्शन किया किसान महासभा ने ‘कारपोरेट भगाओ-किसान बचाओ, मंहगाई-कर्जादारी पर रोक लगाओ, किसान विरोधी हाल के तीनों अध्यादेश वापस लो’; एक्टू ने ‘राष्ट्रीय संसाधनों, सार्वजनिक क्षेत्रों की नीलामी पर रोक लगाओ, श्रम कानूनों में हुए मजदूर विरोधी बदलाव रद्द करो, निजीकरण पर रोक लगाओ, लाकडाउन से बेरोजगार हुए मजदूरों को दस हजार रुपए प्रतिमाह भत्ता दो’ तथा आइसा-आरवाइए ने ‘मंदिर नहीं रोजगार दो, शिक्षा का निजीकरण बंद करो, नयी शिक्षा नीति वापस लो, सभी बेरोजगार नौजवानों को सम्मानजनक बेरोजगारी भत्ता दो’ आदि नारों के साथ प्रतिवाद किया.
भाकपा(माले) राज्य सचिव सुधाकर यादव व राज्य कमेटी सदस्य मिठाईलाल बिंद ने अन्य साथियों के साथ बनारस में प्रतिवाद किया. लेखक व वरिष्ठ पार्टी सदस्य वीके सिंह ने अपने आवास पर धरना दिया. बनारस ग्रामीण क्षेत्र में कई जगहों पर कार्यक्रम आयोजित हुआ.
भदोही जिले में जिला सचिव बनारसी सोनकर के नेतृत्व में धरना दिया गया. चंदौली जिले में किसान महासभा के जिलाध्यक्ष श्रवण मौर्य गांव रानेपुर में, जिला सचिव किस्मत यादव फुटिया तथा आरवाइए राज्य कमेटी सदस्य ठाकुर प्रसाद ने ढोकरी में प्रतिवाद कार्यक्रम में हिस्सा लिया. जिले में कुल 9 केंद्रों पर प्रतिवाद हुआ. मिर्जापुर जिले में तीन केंद्रों पर प्रतिवाद हुआ, जिसमें किसान महासभा के जिला अध्यक्ष भक्तप्रकाश श्रीवास्तव, पार्टी जिला कमेटी सदस्य ओमप्रकाश भारती, पार्टी जिला सचिव सुरेश कोल तथा किसान महासभा के जिला अध्यक्ष ओमप्रकाश पटेल ने हिस्सा लिया.
सोनभद्र जिले में कुल सात केंद्रों पर प्रतिवाद किया गया. जिले के घोरावल तहसील के मगरदहा गांव में राज्य स्थायी समिति के सदस्य शशिकांत कुशवाहा ने धरना को संबोधित किया. गाजीपुर जिले में किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा के नेतृत्व में रेल काॅरिडोर जमीन अधिग्रहण में मुआवजे की मांग को लेकर संघर्षरत किसानों ने मार्च निकालकर कर किसान विरोधी तीनों अध्यादेशों की प्रतियां जलाईं. पार्टी जिला कार्यालय, सुखदेवपुर, कसेरापोखरा, तियरी, सेवराई, खांनपुर, हथौड़ा, गैबीपुर, भुड़कुड़ा, शहाबपुर गांव में भी प्रतिवाद हुआ.
बलिया में खेग्रामस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीराम चौधरी ने सिकंदरपुर में प्रतिवाद सभा को संबोधित किया. मनियर में भी प्रतिवाद किया गया. आजमगढ़ में सात ब्लाक क्षेत्रों के कुल 13 जगहों पर 9 अगस्त के कार्यक्रम हुए. किसान महासभा के प्रदेशाध्यक्ष जयप्रकाश नारायण ने अपने गांव में धरना दिया. मऊ जिले में दोहरीघाट, अमिलापुर और जिला कार्यालय पर धरना दिया गया. देवरिया जिले के पांच केंद्रों पर धरना दिया गया. गोरखपुर में आरवाइए के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह के नेतृत्व में धरना दिया गया.
इलाहाबाद में एक्टू, सीटू व एटक के नेतृत्व में बालसन चैराहे पर प्रतिवाद करते हुए धरना दिया गया. धरने पर हुई सभा को एक्टू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डा. कमल उसरी, आइसा के प्रदेशाध्यक्ष शैलेश पासवान, आरवाइए प्रदेश सचिव सुनील मौर्य व अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया. फूलपुर में किसान महासभा के जिला संयोजक सुभाष पटेल के नेतृत्व में प्रर्दशन किया गया. लखनऊ में चारबाग जंक्शन पर संयुक्त ट्रेड यूनियन की प्रर्दशन सभा को एक्टू राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य चंद्रभान गुप्ता ने संबोधित किया. हरदासी खेड़ा में निर्माण मजदूर यूनियन ने धरना दिया. कानपुर में संयुक्त ट्रेड यूनियन की सभा को एक्टू नेता राना ने संबोधित किया. कानपुर पार्टी कार्यालय पर पार्टी जिला प्रभारी विजय कुमार के नेतृत्व में धरना दिया गया.
बांदा कताई मिल पर एक्टू नेता व पार्टी जिला प्रभारी रामप्रवेश यादव ने धरना दिया. रायबरेली में 101 गांव केंद्रों पर किसान महासभा ने धरना दिया. सीतापुर जिले में अखिल भारतीय किसान महासभा के सदस्यों ने मोदी सरकार के किसान-विरोधी अध्यादेशों के विरोध में धरना-प्रदर्शन कर विरोध जताया. जिले में 10 ब्रांचों में कार्यक्रम किया गया. जालौन में तीन केंद्रों पर धरना दिया गया. पीलीभीत जिले में भाकपा(माले) की केंद्रीय कमेटी सदस्य कृष्णा अधिकारी ने राहुल नगर में धरना को संबोधित किया. मथुरा में किसान महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष नत्थीलाल पाठक के नेतृत्व में धरना दिया गया.
रायबरेली जिले के राही में मोहम्मद अंसार, अमावां में जय सिंह, हरचन्द्रपुर में सुरेश शर्मा, डलमऊ में महारथी चौहान, दीनशाह गौरा में रवि शंकर सविता, खीरो में संतोष कुमार, सलोन में जागेश्वर पाल, सताव में उदय चौधरी, डीह में सिपही यादव, महराज गंज में शिव कुमार व शहर में मो. अहसन खान आदि ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया. रेल कोच में हरिकेश व शहर में बिजली मजदूरों के प्रदर्शन का नेतृत्व रियाज अहमद ने किया. जिला संयुक्त ट्रेड यूनियंस संघर्ष समिति ने भी जगह-जगह प्रदर्शन किये व राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन भेजा.
इसके अलावा लखीमपुर खीरी, मैनपुरी, मुरादाबाद, फैजाबाद, बस्ती आदि जिलों में भी धरना व प्रतिवाद कार्यक्रम हुए.
राष्ट्रीय आह्वान पर उत्तराखंड में आशाओं की तीन दिवसीय हड़ताल सफल रही. 9 अगस्त तक संघर्ष को जारी रखने का संकल्प लिया गया.
स्कीम वर्कर्स यूनियनों व आशाओं के राष्ट्रीय फेडरेशनों के आह्वान पर न्यूनतम वेतन, स्थायीकरण, लाॅकडाउन भत्ता, पेंशन, बीमा सुरक्षा और सम्मान के मुख्य सवालों पर उत्तराखंड राज्य में आशाओं के सवालों को उठाते हुए ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन ने 7-9 अगस्त की तीन दिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल में सक्रिय भागीदारी करते हुए पिथौरागढ़, गंगोलीहाट, धारचूला, डीडीहाट, बेरीनाग, चंपावत, पाटी, टनकपुर, जसपुर, बाजपुर, काशीपुर, रुद्रपुर, गदरपुर, लोहाघाट, हल्द्वानी, नैनीताल, बेतालघाट, गरमपानी, रानीखेत, सल्ट, भिकियासैंण, स्याल्दे, ताड़ीखेत, द्वाराहाट, बागेश्वर आदि जगहों में धरना-प्रदर्शन व कार्य बहिष्कार किया. प्रदर्शनों में सभी स्थानों में बड़ी संख्या में आशा वर्कर्स मौजूद रहीं. ‘काम का लेंगे पूरा दाम, लड़कर लेंगे हक और सम्मान’ नारे के साथ आशाओं ने केंद्र और राज्य सरकार पर आशाओं को बंधुआ मजदूर की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.
इस अवसर पर ऐक्टू व आशा नेताओं ने कहा कि आशाओं को मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए नियुक्त किया गया था, लेकिन उसके बाद आशाओं पर विभिन्न सर्वे और काम का बोझ लगातार बढ़ाया गया है. काम तो आशाओं से लिया जाता है किंतु उसका भुगतान नहीं किया जाता. यानी आशाओं को सरकार ने मुफ्त का कार्यकर्ता समझ लिया है. काम बढ़ाना है तो उसका भुगतान भी उसी हिसाब से देना होगा.
आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के नेताओं ने कहा कि उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ बनी हुई आशा वर्कर्स ने कोरोना वायरस के दौर और लाॅकडाउन में भी अपनी फील्ड में स्वास्थ्य सेवा का कार्य कर रही हैं. स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी एडवाइजरी के सारे काम – जनता के बीच कोरोना वायरस के बारे में जनजागरूकता फैलाना, इस बात का प्रचार प्रसार करना कि कोरोना वायरस से बचाव कैसे किया जाए और अन्य जो भी कार्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्धारित किये जा रहे हैं, वे सारे कार्य – आशाकर्मी स्वास्थ्य विभाग के दिशा निर्देशन में कर रही हैं. लेकिन इतने काम करने के बाद भी आशाओं की सुध लेने वाला कोई नहीं है. क्या सरकार स्वयं महिला श्रम का खुला शोषण नहीं कर रही है? उन्होंने कहा कि महिला सशक्तीकरण के सिर्फ विज्ञापनों पर ही अरबों रुपये खर्च करने वाली सरकार महिला श्रमिक आशाओं को मासिक वेतन तो छोड़िए, मासिक मानदेय तक देने को तैयार नहीं है, जो बेहद शर्मनाक है.
9 अगस्त को ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन दिवस पर आशा यूनियन ने हड़ताल के अंतिम दिन स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को याद करते हुए संघर्ष को भविष्य में भी जारी रखने का संकल्प लिया.
उदयपुर में मजदूरों और कर्मचारियों ने टाउन हाल स्थित शहीद स्मारक पर सभा आयोजित की और केंद्र सरकार की मजदूर-कर्मचारी-किसान विरोधी नीतियों और राष्त्रीय संपत्ति व संसाधनों को बेचने पर विरोध दर्ज किया. सभा ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के शहीदों के साथ-साथ आजादी के आन्दोलन के तमाम शहीदों को श्रद्धांजलि दे कर शुरू हुई.
इस मौके पर इंटक के राज्य अध्यक्ष जगदीश श्रीमाली ने कहा कि मोदी सरकार आपदा को अवसर बनाने के नाम पर रेलवे, रक्षा, पेट्रोलियम, बैंक, बीमा, कोयला, सिविल एविएशन आदि तमाम सार्वजनिक क्षेत्रों में निजीकरण की नीति लागू कर रही है जो जनहित और देशहित में नहीं है. केंद्र सरकार ने देश के मजदूरों को आश्वान दिया था कि लाॅकडाउन की अवधि का पूरा वेतन उन्हें मिलेगा, लेकिन पूंजीपतियों के दबाव में सरकार ने इस आश्वासन से अपना कदम पीछे खींच लिया और अब केंद्र सरकार श्रम कानूनों को भी खत्म कर उद्योगपतियों को मजदूरों के मनमाने शोषण की छूट दे रही है.
सीटू के जिला अध्यक्ष राजेश सिंघवी ने कहा कि कोरोना लाॅकडाउन मजदूर वर्ग के लिए केंद्र सरकार द्वारा निर्मित एक राष्ट्रीय त्रासदी बन गया. केंद्र सरकार ने भाजपा शाषित राज्यों – गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश आदि – में मजदूरों के तमाम कानूनों को ताक पर रख कर उनके शोषण का पूरा इंतजाम कर दिया. इसलिए अब मजदूरों के सामने सीधे संघर्ष का ही रास्ता बचा है.
ऐक्टू के राज्य सचिव सौरभ नरुका के कहा कि आज जो लोग स्वघोषित देशभक्त बने घूम रहे है वो पूरी आजादी के आन्दोलन के दोरान अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति के प्यादे बने रहे और आज वे उनकी उसी नीति का इस्तेमाल कर देशी और विदेशी बड़े पूंजीपतियों का हितसाधन कर रहे हैं. एटक के महेश शर्मा के कहा कि आज श्रमिक संगठनों की व्यापक एकता बनाकर संयुक्त आन्दोलन चलाने की जरूरत है ताकि रोजगार और मजदूरों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा की जा सके. प्रोफेसर आरएन व्यास ने कहा आज मजदुरों-कर्मचारीयों की मेहनत से बने सरकारी उपक्रमों को बेचा जा रहा है और रोजगार के अवसरों को ऐसे समय में खत्म किया जा रहा है जब पहले ही बेरोजगारी चरम पर है.
इस मौके पर इंटक के वरिष्ठ नेता सतीश आचार्य, एटक के हिम्मत चांगवाल, ऐक्टू के राज्य नेता शंकरलाल चौधरी, माले नेता चंद्रदेव ओला और मानव अधिकार कार्यकर्ता रिंकू परिहार मौजूद थे. आजादी के आन्दोलन के शहीदों को मौन श्रद्धांजलि देने के बाद सभा समाप्त की गई.