विगत 15 जुलाई 2020 को बिहार के विपक्षी दलों के राज्याध्यक्षों / सचिवों का हस्ताक्षरयुक्त संयुक्त ज्ञापन चुनाव आयोग, बिहार को सौंपा गया. इस संयुक्त ज्ञापन में विपक्षी दलों ने प्रमुख रूप से चुनाव के वर्चुअल तरीके की बजाए परंपरागत शैली में चुनाव करवाने, जनता की व्यापक भागीदारी और चुनाव में पारदर्शिता, निष्पक्षता व विश्वसनीयता बनाए रखने की मांग की.
यह भी मांग की गई कि चुनाव आयोग को इस बात की गारंटी करनी चाहिए कि चुनाव कोरोना संक्रमण का बड़ा कारण न बन जाए.
हस्ताक्षर: कुणाल, राज्य सचिव, भाकपा(माले); श्री जगदानंद प्रसाद सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, राजद; सत्यनारायण सिंह, सचिव, सीपीआई; अवधेश कुमार, राज्य सचिव, सीपीएम; श्री बीएल वैश्यंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, ‘हम’; श्री राजेश यादव, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, रालोसपा.
प्रतिनिधिमंडल के सदस्य - धीरेन्द्र झा, भाकपा(माले); अरुण कुमार मिश्रा, सीपीआईएम; विजय नारायण मिश्र, सीपीआई; राजेश यादव, रालोसपा; श्री बीएल वैश्यंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, ‘हम’.
विषय: बिहार विधानसभा चुनाव, 2020 में तमाम पार्टियों को समान अवसर, व्यापक रूप से जनता की भागीदारी और चुनाव की पारदर्शिता, निष्पक्षता व विश्वसनीयता के संबंध में.
महाशय,
हम आसन्न बिहार विधान सभा चुनाव के संदर्भ में निम्नलिखित बिंदुओं पर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं –
1. सभी दलों को समान अवसर मिले: आज देश का लोकतंत्र, जो दुनिया का सबसे बड़ा और गौरवशाली लोकतंत्र माना जाता है, खतरे में है. बिहार में सतरहवीं विधानसभा का चुनाव शुरू होने वाला है. मुख्य चुनाव पदाधिकारी, बिहार द्वारा आयोजित विगत सर्वदलीय बैठक में सत्ताधरी दलों द्वारा प्रचार करने संबंधी जो प्रस्ताव दिए गए, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वर्चुअल रैली एवं प्राइवेट तथा सरकारी चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव प्रचार का भारी खर्चवाला कारपोरेट तरीका अपनाकर तथा वास्तविक और पारंपरिक चुनावी सभा पर प्रतिबंध लगाकर अन्य दलों को वे प्रचार से दूर रखना चाहते हैं. यह भारतीय प्रजातंत्र को समाप्त करने की दिशा में एक खतरनाक कदम होगा.
प्रचार का वर्चुअल तरीका स्मार्टफोन और इंटरनेट की उपलब्धता पर आधारित होगा. बिहार में इंटरनेट का विस्तार (स्मार्टफोन, ब्राॅड बैंड, केबल सहित) महज 37 प्रतिशत है. इसमें से 80 प्रतिशत वे लोग हैं जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं. महज 20 प्रतिशत आम लोगों के पास ही इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है. यानि, पूरी आबादी का लगभग 75 प्रतिशत, जो अपने नेताओं और पार्टी का विचार नहीं देख-सुन पाएंगे, अमूमन विपक्षी दलों के वोटर होंगे. यदि चुनाव प्रचार का वर्चुअल तरीका अपनाया गया, तो धनबल की बदौलत एकतरफा रूप से सिर्फ सत्ताधारी पार्टी की बात ही जनता तक पहुंच पाएगी.
भारतीय प्रजातंत्र का तकाजा है कि समाज के हर सामाजिक एवं आर्थिक वर्ग के नागरिकों तक सभी दलों का प्रचार बराबर रूप से पहुंचे, ताकि वोट के मामले में उन्हें सही निर्णय लेने में सहूलियत हो. इसे सुनिश्चित करना चुनाव आयोग की जिम्मेवारी है.
अतः सभी विपक्षी दलों की मांग है कि आयोग द्वारा पारंपरिक तरीके से चुनावी सभाओं के माध्यम से प्रचार की व्यवस्था की जाए जिसमें प्रशासन यह सुनिश्चित करे कि सभी लोग मास्क या गमछा लगाकर और आपस में पर्याप्त दूरी बनाकर सभाओं में हिस्सा लें.
2. धनबल के दुरुपयोग पर रोक लगे: विपक्षी दलों की चिंता है कि समृद्ध पार्टियां धनबल के जरिए तीन माह पहले से ही वर्चुअल प्रचार में जुटी हुई हैं और जिसका खर्च पार्टी वहन कर रही है. ऐसे खर्च की कोई सीमा आयोग की तरफ से निर्धारित नहीं है. अतः धनबल को प्रभावहीन करने एवं चुनावी खर्च कम करने की दिशा में यह बड़ा कदम होगा यदि आयोग द्वारा उम्मीदवार की खर्च सीमा के साथ-साथ आचार संहिता से पहले और बाद में पार्टी द्वारा किए जाने वाले प्रचार-खर्च की सीमा भी निर्धारित कर दी जाए.
3. चुनाव की पारदर्शिता - विश्वसनीयता की रक्षा हो: आयोग ने 65 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों के लिए पोस्टल बैलेट का प्रावधान किया है जिससे चुनाव की गोपनीयता प्रभावित होगी और वोटिंग पर कोई भी निगरानी नहीं रह जाएगी. सत्ताधारी दल के लोग धनबल-बाहुबल-सत्ताबल के जरिए इन मतों पर कब्जा कर सकते हैं. 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत है. हरेक विधान सभा में इस तरह के वोटर औसतन 20-25 हजार होंगे. बिना आयोग की निगरानी के इतनी बड़ी आबादी की पोस्टल बैलेट से वोटिंग कराना पूरे चुनाव को न सिर्फ व्यापक रूप से प्रभावित करना होगा, बल्कि चुनाव की पारदर्शिता व विश्वसनीयता पर ही बड़ा प्रश्न चिन्ह लग जाएगा. इस विधि से वोटिंग का मूल स्वरूप ही बदल जाएगा.
अतः हमारी राय है कि 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए हर बूथ पर अलग लाइन की व्यवस्था की जाए और भौतिक दूरी सुनिश्चित करते हुए प्राथमिकता के आधार पर उनकी वोटिंग कराई जाए.
4. मतदान में व्यापक जनता की भागीदारी की गारंटी करें: पूरा बिहार कोरोना महामारी की चपेट में है. दिन-प्रतिदन शहरों के साथ-साथ गांवों में भी कोरोना विस्फोट होने लगा है. डाॅक्टर व स्वास्थ्यकर्मी, कोर्ट, जेल, राजनेता, डीएम-एसपी-पुलिसकर्मी सभी इसकी चपेट में आ रहे हैं. बिहार के अनेक जिलों में लाॅकडाउन पुनः लागू कर दिया गया है. कोरोना का आतंक चहुंओर पसरा हुआ है. दूसरी ओर, लाखों-लाख परिवार रोजगार खोकर जिंदा रहने की जद्दोजहद झेल रहे हैं.
सामान्य समय में बिहार का मतदान प्रतिशत 60-65 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रहता. कोरोना आतंक व जिन्दा रहने की जद्दोजहद की वर्तमान घड़ी में यह और भी बहुत नीचे आने को बाध्य है. महज मुट्ठी भर मतदाताओं की भागीदारी से क्या चुनाव मजाक नहीं बन जाएगा?
5. चुनाव महामारी फैलाने का जरिया न बने: बिहार की जनता काफी चिंतित है कि चुनाव कहीं महामारी को खतरनाक रूप से फैलाने का जरिया न बन जाए! तूफानी गति से कोरोना फैल रहा है और विशेषज्ञों के अनुसार अगस्त-सितंबर तक देश में रोजाना 2 लाख संक्रमण का अनुमान है.
सरकार ने अभी तक किसी सामूहिक आयोजन में भागीदारी की अधिकतम संख्या 50 तय कर रखी है. आयोग ने बूथ पर वोटरों की संख्या घटाकर अधिकतम 1000 करने का फैसला किया है. लेकिन क्या यह भी एक बड़ा जमावड़ा नहीं होगा और क्या इसके जरिए कोरोना संक्रमण फैलाव की प्रबल संभावना नहीं बनती है?
लक्षण रहित संक्रमित मतदाताओं से अन्य मतदाता में संक्रमण नहीं फैलने के क्या उपाय किए जाएंगे? सरकारी आंकड़ा कहता है कि देश में कुल संक्रमित मरीजों का 80 प्रतिशत लक्षणरहित संक्रमितों का है. मतदान करने आए लक्षणरहित मतदाताओं की क्या संक्रमण बढ़ाने में बड़ी भूमिका नहीं होगी? लक्षणरहित संक्रमित मतदाताओं की पहचान कैसे होगी? वर्तमान स्थिति में मतदाताओं की व्यापक भागीदारी और संक्रमण से उनकी सुरक्षा की गारंटी के लिए आयोग ने कौन से ठोस व गारंटीशुदा उपाय किए हैं?
आपसे हमारी अपील है कि ऊपर उठाए गए बिन्दुओं पर गंभीरता से गौर करेंगे और हमारी मांग है कि संविधान में प्रावधानित राज्य की इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया को गंभीरता के साथ अंजाम दिया जाए, ताकि लोकतंत्र की मूल भावना आहत न हो – सभी दलों को समान अवसर मिले, जनता की व्यापक भागीदारी हो, धनबल के दुरुपयोग पर रोक लगे, चुनाव की पारदर्शिता-निष्पक्षता-विश्वसनीयता बरकरार रहे, चुनाव महामारी फैलाने का जरिया न बने और कुल मिलाकर चुनाव मजाक न बने.