वर्ष - 29
अंक - 25
13-06-2020

अचानक लाॅकडाउन की घोषणा और उसके बाद कर्फ्यू ने हमको बिल्कुल अनिश्चितता की स्थिति में डाल दिया था. हम समझ गए कि मेहनतकश जनता को किस कदर भुखमरी और कठिन हालात का सामना करना पड़ेगा. चंडीगढ़ में मजदूर वर्ग के बीच हमारा अधिकांश कामकाज निर्माण मजदूरों, ठेका एवं अन्य किस्म के असंगठित मजदूरों के बीच केन्द्रित है. मार्च के अंतिम सप्ताह में हुए इस अचानक लाॅकडाउन से सभी लोगों को अनिवार्य रूप से नकदी और वेतन के नुकसान और काम के अभाव का सामना करना पड़ा. शुरूआत में हमने वालंटियर के पास हासिल करने के लिये प्रशासनिक अधिकारियों से सम्पर्क किया. जल्द ही हमें पता चल गया कि प्रशासन को वालंटियरों की कोई जरूरत नहीं है, कम से कम हम लोगों में से तो किसी की नहीं.

लाॅकडाउन के पहले चरण के तीसरे दिन मुझको संकट में पड़ी एक घरेलू कामवाली महिला का फोन आया. उन्होंने मुझको अपनी तकलीफ के साथ-साथ वे जिस मुहल्ले में रहती हैं उस समूचे मुहल्लेवालों की परेशानियों के बारे में बताया. इससे हमको एक कार्यभार मिल गया, हमें राशन जमा करना होगा और खुद ही उसके वितरण की व्यवस्था करनी होगी क्योंकि हमें अंदाजा मिल गया था कि प्रशासन इससे ज्यादा कुछ नहीं करेगा कि मजदूरों की हताशा और आक्रोश चरम विस्फोट की स्थिति तक न पहुंचने पाए.

हमारे कुछ दोस्त, जो पहले सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन में हमारे साथ थे, तथा विश्वविद्यालय और मीडिया के दोस्तों ने सुझाव दिया कि क्राउड फंड (नेट के माध्यम से अपील करके) इकट्ठा किया जाए और खाद्यान्न वितरण अभियान चलाया जाए. हमने शुरूआत में एक स्थानीय एनजीओ द्वारा इसी दिशा में किये जा रहे प्रयासों में भाग लिया. जल्द ही हमारी पीईसी मेस वर्कर्स यूनियन द्वारा शुरू किये गये क्राउड फंडिंग अभियान ने गति पकड़ ली और जब हमने एक लाख रुपये से अधिक राशि इकट्ठा कर ली तो हमारे पास जरूरतमंदों के फोन नम्बर और पतों की एक लिस्ट बन चुकी थी. हमारी ठेका मजदूर यूनियन के सदस्यों के आंकड़ों को एकत्रित करने व डिजिटलीकरण के काम में हमारे ट्रेड यूनियन के कामरेड ईशा, का. जीवराज और का. सतीश के प्रयास उल्लेखनीय रहेसभी लोग जरूरतमंद थे मगर हमने उनको प्राथमिकता दी, जिन्होंने अपने से हमसे सम्पर्क किया था. निर्माण मजदूरों के बीच, रेहड़ी-फरही (फेरीवालों) की यूनियन तथा मजदूर वर्ग की बस्ती कच्ची बस्ती धनास के हमारी यूनियन के सदस्यों ने हमें अपने हालात के बारे में और प्रशासन की उदासीनता के बारे में बताया, जिसका सामना वे कर रहे थे.

chandi

 

17 अप्रैल को हमने भाकपा(माले) की चंडीगढ़ केन्द्रशासित प्रदेश कमेटी की ऑनलाइन बैठक आयोजित की. हमने फौरी चुनौतियों के बतौर दो मसलों को चुना – लाॅकडउान से पैदा फौरी भुखमरी और निश्चित तौर पर इसके बाद आने वाली आर्थिक बदहाली. राशन किट बांटने के दौरान हमने तय किया कि हमें साथ-ही-साथ प्रशासन पर दबाव बढ़ाना होगा कि वह इस कार्यभार को अपने जिम्मे ले. हमने अपनी ओर से सहयोग का जो हाथ बढ़ाया था उसको तो प्रशासन ने नामंजूर कर दिया था. जाहिर था कि वे केवल आरएसएस के लोगों, और कुछेक भाजपा से सम्पर्कित एनजीओ तथा पार्षदों के साथ मिलकर काम करना चाहते थे.

हमारे प्रयासों को हमारे लोकल यूनिट के कामरेडों, खासकर धनास, हल्लोमाजरा, सेक्टर-2, विकास नगर, मौलीजागरन, दादू माजरा आदि से भारी उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली. जल्द ही हमें महसूस हो गया कि यह संकट न सिर्फ लम्बे अरसे तक जारी रहेगा, बल्कि जैसे जैसे हम लाॅकडाउन के अगले चरणों में पहुंचेंगे यह संकट और गंभीर होता चला जायेगा. इसलिये हमने मुख्यतः ह्वाट्सएप ग्रुपों के जरिये हमारे कार्यक्षेत्र के छह बस्ती इलाकों में रहने वाले लगभग 600 परिवारों को ‘महामंदी-महामारी रोको कमेटियों’ में संगठित किया. अभी तक हम इन ग्रुपों को केवल समन्वय और रिपोर्टिंग तथा सूचना के सम्प्रेषण के काम में, राशन वितरण के कार्यभार में तथा हाल के दौर में घरों के अंदर रहकर प्रतिवाद के कुछेक केन्द्रीय आह्नानों में संगठित करने में ही इस्तेमाल कर पाये हैं, लेकिन भविष्य में हमें आशा है कि कुछेक ग्रुपों को लाॅकडाउन की स्थितियों से उभरने वाले ट्रेड यूनियन के मुद्दों के इर्द-गिर्द संगठित करने के अपने कार्यभार में भी सक्रिय कर पायेंगे.

केवल एक कर्फ्यू पास और एक गाड़ी के सहारे, जिसमें केवल दो व्यक्तियों को ही जाने की इजाजत थी, जरूरतमंद लोगों के पास पहुंच पाना सचमुच चुनौतीभरा काम था. अब तक हम 600 से ज्यादा परिवारों तक पहुंच पाये हैं और अभियान जारी है. क्राउड फंडिंग के जरिये तथा अन्य सम्पर्कों के माध्यम से 7 लाख रुपये से ज्यादा रकम जमा हुई जो खर्च हो चुकी है. फिर भी आने वाली जरूरतों के लिये हमारे पास एक लाख रुपये से ज्यादा राशि सुरक्षित है. अभी हमारे काम का दबाव प्रवासी मजदूरों की यात्रा से जुड़े मुद्दों की तरफ चला गया हैनागरिक समाज से कई प्रोफेसरों, पत्रकारों और वकीलों ने इस अभियान में अपना योगदान किया है – केवल सामयिक रूप से नहीं, बल्कि इस अभियान का नेतृत्व करने और इसको समन्वित करने में भी. हमारी पार्टी कमेटी, और कई युवा एवं ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं ने, जिनमें नरिंदर सिद्धू, पुनीत, गगन, उस्मान, रजिया, प्रज्ञा, सुदामा, अनुज पांडेय, अगिन, लाल बहादुर आदि नाम उल्लेखनीय हैं, जमीन पर कामकाज करने में असाधारण सक्रिय भमिका निभाई हैे.
– कंवलजीत सिंह