वर्ष - 29
अंक - 25
13-06-2020

कोविड-19 महामारी के समय में तमाम सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई तो बंद कर दी गई है, लेकिन विद्यालय रसोइयों को बाहर से आ रहे प्रवासी मजदूरों के लिए बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों में मजदूरों के लिए खाना बनाने के लिए जिम्मेदारी दी गई . शुरू में तो इक्का-दुक्का मजदूर ही आ रहे थे, लेकिन बाद में लाॅकडाउन आगे बढ़ने पर व श्रमिक ट्रेन चलने पर उनकी संख्या बढ़ने लगी. उस समय रसोइयों के ऊपर कामकाज का बोझ बढ़ने लगा. उन्हें सुबह 6 बजे विद्यालय जाना पड़ता था और घर लौटने में 9-10 बजे रात हो जाती थी.

इस बीच रसोइयों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. पहले तो सरकार ने उनके लिए उचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं की; उन्हें मास्क, सैनिटाइजर, साबुन आदि का समुचित वितरण नहीं किया. रसोइयों को इन सुरक्षा उपायों का स्वयं ही इंतजाम करना पड़ता था. दूसरे, विद्यालयों में पानी का पर्याप्त प्रबंध नहीं होने के कारण एक ही चापाकल पर मजदूरों और रसोइयों को पानी लेना पड़ता था. इससे उनके संक्रमित होने का खतरा बना रहता था और यही वजह है कि रसोइयों को गांव वाले प्रताड़ित करते थे कि तुमको क्वारंटाइन सेंटर में ही रहना है, गांव नहीं आना है. पूर्वी चंपारण के पकड़ीदयाल प्रखंड में तो कुछ रसोइयों के साथ गांव वालों ने मारपीट भी की. इस संबंधा में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है.

तीसरे, रसोइयों को 6 बजे से सुबह से लेकर के रात 9 बजे तक काम करने से काम का बोझ काफी बढ़ गया. कहीं-कहीं तो दो शिफ्रट में रसोईया काम करती थी. कहीं एक ही रसोईया शुरू से लेकर अंत तक काम करती थी और यही कारण रहा कि 2 रसोइयों की मौत हो गई – एक पूर्वी चंपारण में सकली देवी की, और दूसरा समस्तीपुर में उमेश महतो की.

बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ की पूर्वी चंपारण इकाई ने रसोईया के साथ हुई मारपीट की घटना की जांच पड़ताल की एवं 27 मई को जिला स्तर का आंदोलन किया. सकली देवी की मौत के बाद भी 29 मई को जिलास्तरीय आंदोलन हुआ, मांगपत्र दिया गया और 19 मई को उमेश महतो के यहां भी जांच पड़ताल की गई एवं उनके दाह संस्कार के लिए चंदा किया गया. प्रशासनिक लापरवाही के खिलाफ आंदोलन भी किया गया. इस दरमियान प्रशासन का रुख बहुत ही संवेदनहीनता का रहा. उन्होंने आज तक रसोइयों की कोई मदद नहीं की.

क्वारंटाइन सेंटरो में काम कर रहे रसोइयों को न्यूनतम मजदूरी तक नहीं दी गई. केवल दरभंगा में 287 रुपया और मुजफ्फरपुर में 299 रुपया प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी दी गई. अन्य जगहों पर अभी तक उन्हें भुगतान नहीं हुआ, जबकि निजी तौर पर काम रहने वाले रसोइयों को प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान हुआ. पूर्वी चंपारण में 100 रुपया के हिसाब से भुगतान की बात कही गई है. वैशाली में 4 रसोइयों को मिलाकर 125 रुपया भुगतान करने की बात कही गई है. इस मनमाने रुख के खिलाफ लगातार घर से ही आंदोलन भी किए जा रहे हैं और मांगपत्र भी दिया गया है.

सरकारी संवेदनहीनता को देखते हुए ‘तलाश’ पत्रिका की संपादक डा. मीरा दत्ता ने मृत दोनों रसोइयों के परिजनों को 20-20 हजार रुपए का सहयोग किया. उन्होंने पटना में दो जगह – पटना सिटी (5 जून) और दीघा (6 जून) – में जाकर रसोइयों के बीच मास्क व साबुन का वितरण भी किया. वहां रसोइयों के बीच ‘स्कीम वर्कर्स की स्थिति व सरकार’ विषय पर चर्चा करके मौजूदा हालात के बारे में भी विचार विमर्श किया गया. कोविड-19 में मारे गए तमाम कोरोना वारियर्स को श्रद्धांजलि भी दी गई.

पटना सिटी के कार्यक्रम में डा. हलीम, कामरेड नसीम अंसारी, अनय मेहता, ललन यादव, गोपाल वर्मा व बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ की कोषाध्यक्ष राखी मेहता समेत 50 रसोइयों ने भाग लिया. दीघा में ऐपवा की पटना नगर सचिव अनीता सिन्हा, भाकपा(माले) के नगर कार्यकारी सचिव जितेंद्र कुमार, रसोईया संघ की नेत्राी मीना देवी समेत लगभग 50 रसोइयों ने भाग लिया.

इन दोनों कार्यक्रमों को संबोधित करते हुए संघ की महासचिव सरोज चौबे ने कहा कि सरकार ने रसोइयों को काम पर तो लगा दिया है, लेकिन न तो उनके मानदेय का नियमित भुगतान किया जा रहा है और न ही उन्हें लाॅकडाउन भत्ता दिया जा रहा है. रसोइयों से हर समय सरकारी कर्मचारी जैसा काम तो लिया जाता है लेकिन उनको सरकारी कर्मचारी घोषित नहीं किया जाता. और अब काम के घंटे बढ़ा करके उनका शोषण किया जा रहा है. इसके खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन तेज करना होगा.

डा. मीरा दत्ता ने कहा कि विद्यालय रसोइयों को अपने प्राप्त संसाधानों में ही अपना ख्याल रखना होगा, क्योंकि सरकार अब कह रही है कि हमें कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा, अर्थात सरकार अब चुनाव की तैयारी में लग गई है. उसे कोरोना महामारी से लोगों को बचाने की चिंता नहीं रही. अनिता सिन्हा ने कहा कि हमें संगठन को मजबूत करके अपनी लड़ाई लड़ने की तैयारी करनी होगी और 3 जुलाई को आहूत राष्ट्रीय प्रतिवाद को सफल बनाना होगा.

– सरोज चौबे