वर्ष - 29
अंक - 25
13-06-2020

गोरखपुर में गोलघर के अम्बेडकर छात्रावास में चल रहे हमारे कम्युनिटी किचन ने अपना 50वां दिन पूरा कर लिया था. कल से हमें अपना किचन बंद करना था. किचन के मेरे दो महत्वपूर्ण साथी रविन्द्र और सतेंद्र सुबह अपने घर चले गए. लोगों के लिये भोजन बनाना नहीं था, इसलिये हमारे अन्य साथी भी किचन के स्थान पर देर से पहुंचे.

सब लोग 50 दिनों की सुंदर यादों के एक-एक दिन के हसीं मजाक को याद कर हाॅस्टल की सफाई करने में लग गए. कुछ देर बाद घर गए साथी सतेंद्र का मेरे पास फोन आया. वो कहने लगा, भइया घर पर जरा भी अच्छा नहीं लग रहा है. मन कर रहा है चले आएं. मैने कहा मन नहीं लग रहा तो चले आओ, कुछ आटा हम लोगों के पास बचा हुआ है, उसको जरूरतमन्दों में बांट दिया जाएगा, उसके बाद घर चले जाना!

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कुछ देर बाद फिर फोन आया. यह फोन काॅल उस इलाके से था, जहां हमारा किचन पिछले 50 दिनों से लोगों को भोजन करा रहा था. फोन पर एक महिला थीं. उन्होंने पूछा, भइया आज सच में खाना नहीं लाइएगा ? मैंने कहा नहीं, कल सबसे बता दिया था कि अगले दिन से भोजन नहीं आयेगा. उस महिला ने कहा – भइया आज लेते आइए, कल हम कोई व्यवस्था कर लेंगे; आज कोई व्यवस्था हो नहीं पाया है, बच्चे भूखे हैं, कल हम कोई इंतजाम कर लेंगे.

शाम के 5 बज चुके थे. यह बात मैंने अपने साथियों से बताई. साथियों ने कहा क्या करना है, कुछ लोगों का भोजन बना दिया जाए. आप वहां फोन कर बोल दीजिये, हम लोग थोड़ा लेट ही सही, मगर 100 लोगों का खाना लेकर आएंगे.

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समस्या थी, इतने कम समय में बने तो क्या बने. सबका सुझाव आया 100 लोगों का तहरी बना दिया जाए. एक दो साथियों ने सुझाव दिया चावल सब्जी है, दो चूल्हे हैं, जल्दी बन जाएगा.

100 लोगों का सब्जी चावल बनाना तय हुआ, बिना आलू छिले आलू प्याज काटना शुरू हुआ. स्टोर रूम में जाने के बाद पता चला, चावल तो हम लोगों के पास है ही नहीं. बनेगा कैसे! साथी शैलेन्द्र को फोन मिलाया गया, उन्हें सारी बात बताई गई. साथी शैलेन्द्र अपने दो साथियों की मदद से तुरत 50 किलो चावल, आलू और एक बोरा सोयाबीन ले हमारे पास उपस्थित हो गए.

उसके बाद युद्ध स्तर पर भोजन बनाने में सभी साथी लग गए, रात आठ बजते बजते हम लोगों ने 70-80 लोगों का चावल सब्जी बना लिया. जिस गाड़ी में खाना लोड होकर बांटने के लिये जाता था, वो गाड़ी साथी सतेंदर की थी. वो गाड़ी लेकर चले गए थे. बड़े भाई धीरेंद्र ने तत्काल एक गाड़ी की व्यवस्था की जिसके जरिये खाना पहुंचाया गया.

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खाना देकर आने के बाद हम सभी साथियों ने तय किया कि हम लोग अपने किचन को कुछ दिन और चलाएंगे. इन दिनों में कुछ साथियों की मदद लेकर, भरपूर राशन का इंतजाम कर, कुछ बेहद जरूरतमंद परिवारों को राशन दे दिया जाएगा, जिससे वो कम से कम 15 दिनों तक किसी तरह भोजन कर सकें, उसके बाद अपने किचन को फाइनली बंद किया जायेगा.

– सुजीत सोनू