कोविड-19 महामारी से जूझ रहे देश में महज आठ दिनों के भीतर कला जगत की चार हस्तियों का निधन भारत की प्रगतिशील-यथार्थवादी और जनप्रिय सांस्कृतिक धारा के लिए अपूरणीय क्षति है. ये चारों जनता के पक्षधर थे, सांप्रदायिक कट्टरता के विरोधी थे, इस देश के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने वाली शक्तियों के विरोधी थे.
23 अप्रैल को उषा गांगुली को दिल का दौरा पड़ने से का निधन हो गया. 27 अप्रैल को महेंद्र भटनागर नहीं रहे, 29 अप्रैल को इरफान का निधन अंतःस्रावी ट्यूमर से जुड़े कैंसर से हुआ और 30 अप्रैल को फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर का ब्लड कैंसर से निधन हो गया. शायद कोई और समय होता तो हमें इतने कम समय के भीतर ऐसे कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों को खोना नहीं पड़ता. उषा गांगुली के एक भाई का निधन चंद रोज पहले ही हुआ था. इरफान ने भी महज तीन दिन पहले अपनी अम्मा को खोया था और अपनी बीमारी ओर कोरोना महामारी के चलते वे उन्हें अंतिम विदाई देने नहीं जा पाए थे.
उषा गांगुली ने मृच्छकटिकम, महाभोज, कोर्ट मार्शल, रुदाली, हिम्मत माई, चंडालिका, सरहद पर मंटो जैसे नाटकों में काम किया. उन्होंने ‘रंगकर्मी’ नामक जो नाट्य संस्था बनाई जिससे प्रशिक्षित होकर कई रंगकर्मी निकले जो आज भी रंगमंच की दुनिया में सक्रिय हैं.
महेंद्र भटनागर की बीस से अधिक काव्य-कृतियां प्रकाशित हुई थीं. कई कविताओं प्रफेंच, अंग्रेजी, चेक और भारत की अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हुए थे. उनकी अधिकांश रचनाएं- कविता, आलोचना और अन्य – ‘महेंद्र भटनागर समग्र’ के छह खंडों में संकलित हैं.
इरफान जैसे बेमिसाल अभिनेता को असमय खोना बेहद दुःखद है. पान सिंह तोमर, लाइफ ऑफ पाई, द लंच बाॅक्स, पीकू, अंग्रेजी मीडियम, हिंदी मीडियम, करीब-करीब अकेले, सलाम बांबे, वारियर, पार्टीशन, लाइफ इन ए मेट्रो, द नेमसेक, मकबूल, हासिल, स्लमडाॅग मिलेनियर जैसी फिल्मों और ‘भारत एक खोज’ समेत कुछ महत्वपूर्ण टीवी धारावाहिकों में उन्होंने जितना प्रभावशाली अभिनय किया, उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता. ‘लाल घास पर नीले घोड़े’ नाटक में उन्होंने लेनिन और ‘कहकशां’ धारावाहिक में इंकलाबी शायर मख्दूम मोइनुद्दीन की भूमिकाएं निभाई थीं.
ऋषि कपूर ने अपने पिता महान फिल्मकार राजकपूर की मशहूर फिल्म ‘श्री चार सौ बीस’ से अभिनय शुरू किया था और ‘मेरा नाम जोकर’ में भी जोकर के बचपन की यादगार भूमिका निभायी थी. उन्होंने बाॅलीवुड के पोपुलर सिनेमा में लगभग डेढ़ सौ फिल्मों में काम किया. इनमें बाॅबी, प्रेम रोग, लैला मजनूं, कभी-कभी, सरगम, दामिनी, एक चादर मैली सी, फना आदि उल्लेखनीय हैं. भाजपा-संघ के सत्ता में आने के बाद खान-पान को लेकर फैलायी जा रही सांप्रदायिक नफरत और पड़ोसी देश पाकिस्तान को इंगित कर भड़काये जा रहे अंधराष्ट्रवादी उन्माद के खिलाफ ऋषि कपूर ने बड़े बेबाक बयान दिए थे. इन चारों को हमारी श्रद्धांजलि!