यह सरकार की आलोचना करने वाले छात्रों और कार्यकर्ताओं का दमन तथा आइसा को निशाना बनाने के लिए एक राजनीतिक स्क्रिप्ट का हिस्सा है!
भाजपा सरकार द्वारा छात्र कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और धमकी की कड़ी में ही 27 अप्रैल को दिल्ली पुलिस कामरेड कवलप्रीत कौर के घर गई और दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच के नाम पर उनका मोबाइल फोन जब्त कर लिया. उन्हें दी गई जब्ती ज्ञापन में यूएपीए (UAPA) जैसे काले कानून सहित कई प्राथमिकी का हवाला है - यूएपीए (UAPA) जो एक कथित रूप से आतंकवाद-रोधी कानून है, लेकिन असल में यह एक बहाना है जिससे सरकार की आलोचना करने वाले छात्रों और कार्यकर्ताओं को बिना किसी सुनवाई और जमानत के बंद कर दिया जाता है.
यह कार्रवाई असल में पिछले दिनों कार्यकर्ताओं को डराने-धमकाने और गिरफ्तारी के सिलसिले की ही एक कड़ी है. इसमें खासकर सीएए का विरोध कर भारत के संविधान को बचाने के लिए चले आंदोलनों की आवाजों को निशाना बनाया जा रहा है, जो एनपीआर और एनआरसी के साथ मिलकर गरीब और अल्पसंख्यक भारतीयों की नागरिकता छीनने वाला कानून है.
असम में, सीएए विरोधी कार्यकर्ता अखिल गोगोई अभी भी जेल में है. दिल्ली में, जामिया और जेएनयू के छात्रों-एल्युमनी के साथ-साथ सीएए विरोधी आंदोलनों के आयोजकों को काले कानूनों और झूठे आरोपों के तहत फंसाया जा रहा है. इसी तरह यूपी में छात्रों-कार्यकर्ताओं को भी सीएए विरोधी धरना-स्थलों से गिरफ्रतार किया गया. इस बीच, भीमा कोरेगांव मामले में यूएपीए के तहत 11 शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया हैं. हाल ही में, कन्नन गोपीनाथन जिन्होंने आइएएस के पद से इस्तीफा दिया था और सीएए विरोधी प्रदर्शनों की मुखर युवा आवाज थे, उनपर भी आइएएस पद को पुनः स्वीकार नहीं करने के बाद दमण और दीव में एक प्राथमिकी दर्ज किया गया है.
इस तरह बहाने और संदर्भ अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन सरकार की योजना स्पष्ट है – असहमति की आवाजों को निशाना बनाना, उन्हें गिरफ्तार करना और भारत के संविधान की रक्षा में बोलने के साहस के लिए उन्हें दंडित करना.
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल द्वारा आइसा की दिल्ली राज्य अध्यक्ष कवलप्रीत कौर को निशाना बनाने का यह मामला उसके बाद सामने आया जब 25 अप्रैल, 2020 को इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि उसने नौ लोगों के व्हाट्सएप चैट की जांच की है जिसके आधार पर विभिन्न छात्रों और कार्यकर्ताओं पर यूएपीए का चार्ज लगाया जाएगा तथा ‘पाॅपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई), जामिया कोऑर्डिनेशन कमिटी (जेसीसी), पिंजड़ा तोड़ , ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) के कई सदस्यों समेत दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू के पूर्व और वर्तमान छात्रों पर कार्रवाई की तैयारी है.
दिल्ली पुलिस का दावा है आइसा कार्यकर्ताओं समेत अन्य छात्रा कार्यकर्ताओं पर यह कार्रवाई पूरी तरह से ‘जांच’ पर आधारित है! इसकी क्या विश्वसनीयता है, आइये देखते हैं –
1. एक महीने से भी अधिक पहले 7 और 8 मार्च, 2020 को एएनआई, राजस्थान पत्रिका और अन्य मीडिया घरानों द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के उस बयान को खबर बनाई गई जिसके अनुसार आइसा पर अन्य संगठनों के साथ मिलकर नाॅर्थ ईस्ट दिल्ली दंगे की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था. 12 मार्च को आइसा ने राजस्थान पत्रिका को एक पत्र भेजा, जिसे बाद में सार्वजनिक भी किया गया, जिसमें इस झूठ का पर्दाफाश और निंदा की गई थी.
2. 11 मार्च 2020 को मोनिका अरोड़ा, जो भाजपा के लिए काम करने वाली वकील है, एबीवीपी और डीयूएसयू की अध्यक्ष और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की पूर्व उम्मीदवार रह चुकी हैं, के नेतृत्व में ‘बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों का एक समूह’ गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी से मिला और एक रिपोर्ट पेश की. आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने इस ‘रिपोर्ट’ पर एक विस्तृत आलेख छापा. इस तथाकथित ‘रिपोर्ट’ (मनगढ़ंत कहानी) के अनुसार ‘सीएए विरोधी आंदोलन पीएफआई और आइसा की साजिश है.’ यह जाहिर तौर पर आइसा को लेकर एक झूठी और षड्यंत्रकारी कहानी गढ़ने का प्रयास था.
‘कुल मिलाकर’ दिल्ली पुलिस 25 अप्रैल 2020 को दावा करती है कि आइसा और अन्य छात्र समूहों को निशाना बनाने के पीछे उनके द्वारा कठिन परिश्रम द्वारा की गई ‘जांच’ से मिले ‘सबूत’ हैं. लेकिन तथ्य यह है कि दिल्ली पुलिस महज उस स्क्रिप्ट पर काम कर रही है जो एक महीने पहले आरएसएस-भाजपा ब्रिगेड द्वारा तैयार की गई थी और मोनिका अरोड़ा जैसे समर्थकों द्वारा प्रचारित किया गया था! यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली पुलिस (गृह मंत्रालय द्वारा नियंत्रित) ने दक्षिणपंथी प्रोपेगैंडा को अपने ‘सबूत’ के रूप में पेश किया है. जेएनयू में एबीवीपी के गुंडों द्वारा हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस ने एक प्रेस काॅन्प्रफेंस आयोजित की थी, जिसमें आरएसएस, बीजेपी, एबीवीपी से जुड़े सोशल मीडिया एकाउंट से लिये गए तस्वीरों और वीडियो को पुलिस ‘जांच’ द्वारा इकट्ठा किए गए ‘सबूत’ के रूप में पेश किया गया था!
हमने देखा कि भीमा कोरेगांव मामले में भी इसी पैटर्न का पालन करते हुए रिपब्लिक टीवी स्टूडियो में बनाई हुई स्क्रिप्ट को आधार बनाकर पहले पुणे पुलिस द्वारा और अब एनआईए द्वारा गिरफ्तारी की गई. हमने ये भी देखा कि दिल्ली में साज़िश कर हिंसा और दंगा भड़काने में कपिल मिश्रा जैसे भाजपा नेताओं की भूमिका के पर्याप्त सबूतों के बावजूद दिल्ली पुलिस ने उसपर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया. इस दंगे ने पूर्वाेत्तर दिल्ली के बड़े हिस्से को प्रभावित कर दिया था. इसी तरह दिल्ली चुनाव में अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे लोगों द्वारा हिंसा भड़काने वाले जहरीले भाषण और नारों के बावजूद उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई. दिल्ली पुलिस ने इसकी भी अनदेखी की है कि किस प्रकार एबीवीपी नेता कोमल शर्मा और एबीवीपी के अन्य गुंडे नकाब पहनकर जेएनयू कैंपस में प्रवेश करते हैं और छात्रों तथा शिक्षकों पर जानलेवा हमला करते हैं. इसी तरह एनआईए ने भीमा कोरेगांव में दलितों के खिलाफ हिंसा में संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे के नेतृत्व वाली दक्षिणपंथी ब्रिगेडों के शामिल होने के सबूतों की अनदेखी की. बात चाहे दिल्ली दंगों की हो, भीमा कोरेगांव की हो या जेएनयू की, सभी जगह हिंसा के शिकार लोगों और उनके लिए आवाज उठाने वालों को ही निशाना बनाया जा रहा है – जबकि हिंसा के असल अपराधी खुले में घूम रहे हैं.
सबसे शर्मनाक बात यह है कि भारत के गृह मंत्रालय और मोदी सरकार द्वारा कोरोना महामारी और इस लाॅकडाउन का नाजायज फायदा उठाकर प्रतिरोध की हर आवाज को कुचला जा रहा है, उसे गिरफ्तार किया जा रहा है; क्योंकि सरकार को पता है कि इस दौरान इसके खिलाफ जनांदोलन की संभावना नहीं है और न ही ज्यादातर लोगों के लिए अदालत उपलब्ध है!
पूरे देश में सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ आंदोलनों में कामरेड कवलप्रीत के साथ आइसा के तमाम कार्यकर्ता और साथ में देश भर के विश्वविद्यालयों के हजारों छात्र शामिल हुए. छात्रों ने सार्वजनिक रूप से भारतीय संविधान की प्रस्तावना पढ़ी. जब सत्ता का इस्तेमाल कर हमारे देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करने की कोशिश की गई तब संविधान के धर्मनिरपेक्ष आधार की रक्षा के लिए आइसा कार्यकर्ताओं ने शांतिपूर्ण विरोध सभाओं में भाग लिया. पूर्वाेत्तर दिल्ली में हुई हिंसा के बाद, आइसा ने इससे प्रभावित व्यक्तियों को राहत पहुंचाने का काम किया. और अब, आरएसएस और भाजपा के इशारे पर पुलिस, उन्हीं छात्रों को डराने की कोशिश कर रही है जो देश के संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए खड़े थे!
आज हम अपने देश के उन लाखों गरीबों-मजदूरों के साथ खड़े हैं जिन्हें लाॅकडाउन में इस सरकार ने भूखा छोड़ दिया है. ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर हम अपनी आवाज उठा रहे हैं ताकि भूख की इस त्रासदी को खत्म किया जा सके और गरीबों और श्रमिकों के अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके. हम जानते हैं कि वे गरीब और मजदूर जिन्हें आज भूखे रहने के लिए छोड़ दिया गया है बाद में एनआरसी लागू कर उनकी नागरिकता भी छीन लेने की योजना है.
दिल्ली पुलिस और भारत का गृह मंत्रालय इस महामारी की आड़ में भारत के संविधान और लोकतंत्र के रक्षकों के खिलाफ षड्यंत्रा रच सकते हैं! लेकिन हम अपने नागरिक कर्तव्यों को जारी रखेंगे – गरीबों और वंचितों के अधिकार और सम्मान की मांग में साथ खड़ा होना, सत्ता की आंखों में आंख डालकर सवाल पूछने का साहस करना और उसकी जवाबदेही मांगना! हम एकजुट और निडर हैं. आप एक को चुप करना चाहते हैं, इधर से सौ और आवाजें बुलंद हो जायेंगी!
– आइसा