भोजपुर जिले का गड़हनी बाजार जिले में बीते 5 दशकों से जारी सामाजिक-राजनीतिक बदलाव के संघर्ष, इसकी उपलब्धियों और इसकी कुर्बानियों का केन्द्रबिन्दु रहा है. पार्टी के संस्थापक नेताओं व शहीदों का. रामेश्वर यादव और डा. निर्मल से इसकी पुरानी पहचान जुडी हुई है. पिछले ही दिनों शहीद हुए लोकप्रिय मुखिया व जननेता का. अरूण सिंह ने इस पहचान को एक बार फिर से स्थापित किया हैपिछले दिनों देशव्यापी शाहीनबाग आंदोलनों में एक नाम गड़हनी शाहीनबाग का भी जुड़ा. कोरोना महामारी जनित लाॅकडाउन की घोषणा के दिन तक यहां सैकड़ों हिन्दू-मुसलमानों ने धरना देकर यह संदेश दिया कि सीएए, एनआरसी व एनपीआर उन्हें कत्तई मंजूर नहींसामंती-साम्प्रदायिक ताकतों ने इसके खूब जहर उगला लेकिन उनकी एक न चली.
लेकिन, बिना किसी तैयारी के मोदी सरकार द्वारा घोषित लाॅकडाउन ने आंदोलनकारियों के सामने एक नई चिुनौती पेश कर दी. यह थी – लाॅकडाउन से तबाह हो रहे गरीबों को कोरोना व भुखमरी से बचाने की चुनौती. पिछले दिनों चलाए गए सघनतापूर्ण राहत अभियान यह बताता है कि शाहीनबाग के संचालकों ने इस चुनौती को भी स्वीकार कर लिया है.
राशन जुटाने व वितरण करने की योजना मुख्यतः गड़हनी शाहीन बाग संचालकों के साथ बनी और इसकी शुरुआत हुई – कोविड-19 के प्रति जन-जागरूकता फैलाने व मोहल्ले की साफ-सफाई करने से. आइए, अब एक नजर डालते हैं उन गांव-टोलों पर जिसमें राशन वितरण किया गया. इसमें गड़हनी के बीचली पट्टी, उत्तर-पट्टी, बर मोहल्ले के 438 परिवार शामिल हैं. इस्लामगंज, पड़ाव व इमामगंज मुहल्ले के 70 परिवारों और भाकपा(माले) द्वारा बसाये गए निर्मल नगर (पड़रिया) और शांति नगर (धमनिया) में क्रमशः 67 और150 परिवारों को भी राहत-राशन पहुंचाया गया. प्रखंड मुख्यालय के पास स्थित देवढ़ी गांव में 120, काउप में 40, इचरी में 50 और कुरकुरी में 80 गरीब व दलित-महादलित परिवारों तक राहत सामग्री पहुंचाई गई. रजिन परिवारों को राहत मिला उनकी कुल संख्या है -1007.
जो खाद्य-सामग्री वितरित की गई उसमें प्रति परिवार 5 किलो चावल, आधा किलो दाल, 1.5 किलो आलू, 200 ग्राम सरसो तेल, आधा किलो प्याज, आधा किलो नमक, 2 साबुन (1 नहाने और 1कपड़ा धोने का) और 100 ग्राम हरी मिर्च शामिल थी. इन सामग्रियों का थैला बनाकर व्यवस्थित तरीके से और लाॅकडाउन के नियमों का पालन करते हुए वितरण किया गया है. देवढ़ी में वितरित खाद्य सामग्री पैकेट में सोयाबीन भी था जबकि काउप पंचायत के छह गांवों में 3000 साबुन भी वितरित किया गया.
किसानों, नौकरीपेशा लोगों व दूकानदारों ने अनाज, राहत सामग्री व रुपये दिए. मुख्यतः अत्यंत गरीब, राशन कार्ड विहीन और वृद्ध, विकलांग तथा विधवा पेंशन से वंचित लोगों को राशन बांटने की योजना पर काम शुरू किया गया था. घर-घर चंदा करने के दौरान ही सर्वे में यह रिपोर्ट आने लगी कि मध्यम किसान व किसान परिवार के कुछ घरों में भी भूखमरी की स्थिति है जिसको वे कह नहीं पा रहे हैं. इस तरह सर्वे में ऐसे तमाम परिवारों का नाम भी जोड़ा जाने लगा. गड़हनी शाहीन बाग के नेतृत्वकारियों व शिरकत करने वालों ने आगे बढ़कर करीब 80 हजार रुपए की मदद की.
एक पार्टी कार्यकर्ता शिक्षक ने अपने वेतन के आधे महीने की राशि दी. गड़हनी बाजार के सभी समुदाय के छोटे-बड़े दूकानदारों ने अपनी स्थिति के मुताबिक दाल, आलू, प्याज, नमक आदि दिया. इसके अलावा धमनिया, काउप, देवढ़ी, इचरी, गड़हनी, कुरकुरी आदि गांवों के किसानों ने बीसीयों क्विंटल चावल और गेहूं दिया. इलाके के एक राइस मिल ने करीब 10 क्विंटल चावल चंदा में दिया. राहत वितरण के दौरान ये सभी लोग आमंत्रित भी किए गये और वे भाकपा(माले) के बैनर तले राशन बांटने भी आए.
यह गांव अगिआंव विधानसभा क्षेत्र से वर्तमान विधायक का पैतृक निवास भी है जो जदयू से आते हैं. इसी गांव में गरीबों को डीलर से राशन नहीं मिला था और राशन कार्ड से वंचितों की संख्या भी काफी थी. गांव के जो डीलर हैं वे वर्तमान विधायक के भाई ही हैं. इतना ही नहीं, डीलर की पत्नी इस क्षेत्र से जिला परिषद् सदस्य भी हैं. इस राहत-राशन वितरण के दौरान विधायक के प्रति जनता का आक्रोश साफ-साफ दिख रहा था.
राहत वितरण में किसी भी तरह की संकीर्णता नहीं बरती गई और लाॅकडाउन के दौरान भूखमरी के कगार पर पहुंच गए किसी भी वर्ग, जाति व धर्म के गरीबों के बीच राहत वितरण किया गया. राहत देने में वृद्ध, विधवा और विकलांग व्यक्तियों का खास ख्याल रखा गया.
खाद्य सामग्री जुटाने व वितरण करने में भाकपा(माले) केन्द्रीय कमेटी के सदस्य का. मनोज मंजिल और काउप पंचायत मुखिया का. कलावती देवी भी शामिल रहीं. राहत सामग्री पैकिंग करने वाली टीम में मुख्यतः शाहीन बाग संचालक व स्थानीय युवा रहे. करीब 350 पैकेट की पैकेजिंग और वितरण गड़हनी स्थित प्रखंड पार्टी कार्यालय से किया गया और जबकि 400 पैकैट का वितरण शाहीन बाग चलाने के दौरान संपर्क में आये अल्पसंख्यक समुदाय के मुहल्ले से किया गया.
इस अभियान ने एनआरसी-सीएए-एनपीआर विरोधी आन्दोलन व शाहीन बाग प्रोटेस्ट के दौरान जीवंत संपर्क में आये अल्पसंख्यक समुदाय के भीतर आत्मविश्वास भरने और साथ ही पार्टी के प्रति उनके भीतर विश्वास और उम्मीद को जगाने का काम भी किया है. इसी का नतीजा है कि गरीबों को राशन की मांग पर ‘घर-घर, दरवाजे-दरवाजे थाली बजाओ’ कार्यक्रम हो या ऐपवा का एकदिवसीय धरना-अनशन हो या आज चरपोखरी दलित छात्रा के साथ हुए बलात्कार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो, इन सभी कार्यक्रमों में उनकी अच्छी भागीदारी हुई. इससे यह पता चलता है कि भाकपा(माले) के साथ मिलकर संघर्ष करना उनकी प्राथमिकता बन रही है.
– नवीन कुमार