बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 5 मई की शाम में आहूत सर्वदलीय बैठक में भाकपा(माले) विधायक दल नेता का. महबूब आलम ने सभी प्रवासियों की घर वापसी के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाते हुए कहा कि सरकार केवल उन्हीं मजदूरों को आने की इजाजत दे रही है, जो अचानक हुए लाॅकडाउन के कारण फंस गए थे. जो मजदूर पहले से कहीं रह रहे हैं, सरकार उन्हें क्यों नहीं लाना चाहती है, जबकि फैक्टरियां बंद हो चुकी हैं, रोजगार के कोई साधन नहीं हैं और वे भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं?
कहा कि जो भी मजदूर लौट रहे हैं, सरकार के दावे के विपरीत उनसे न केवल भाड़ा, बल्कि अतिरिक्त पैसा वसूला जा रहा है. किराया देने की सरकार की घोषणा का कोई आधिकारिक नोटिफिकेशन नहीं है. क्वारंटाइन के बाद पैसा देने से मजदूरों की समस्याओं का कोई हल नहीं निकलेगा.
उन्होंने मांग किया कि सभी प्रवासी मजदूरों की लौटने की गारंटी पीएम केयर फंड की राशि से की जाए, लाॅकडाउन में गुजारा भत्ता के लिए प्रत्येक मजदूर को 10 हजार रुपया मिले, उनके लिए काम की गारंटी की जाए, मृतक मजदूरों को 20 लाख रुपए का मुआवजा मिले और कार्ड व बिना कार्ड, अर्थात सभी जरूरतमंदों को 3 महीने का राशन मिले.
उन्होंने आगे कहा कि मुस्लिमों के बाद अब प्रवासी मजदूरों को टारगेट किया जा रहा है. भाजपा शासित प्रदेशों में बिहारी प्रवासी मजदूरों को ‘कोरोना बम’ कहा जा रहा है. कर्नाटक की भाजपा सरकार एक तरफ तो प्रवासी मजदूरों के खिलाफ जहर फैला रही है, वहीं बिल्डरों के दबाव में उसने प्रवासी मजदूरों को भेजने से इंकार भी कर दी है. यह उसका घोर मजदूर विरोधी और कारपोरेटपरस्त चरित्र है. यह बिहार का अपमान भी है. भाजपा शासित गुजरात सहित अन्य राज्यों में प्रवासी मजदूरों पर हमले हो रहे हैं. इस मामले में तत्काल केंद्र व संबंधित राज्य सरकारों से बात कर इस पर रोक लगनी चाहिए. महबूब आलम ने क्वारंटाइन सेंटरों की खराब हालत पर भी सवाल उठाए. विपक्षी पार्टियों तथा सामाजिक व मजदूर संगठनों से नियमित बातचीत करने पर जोर दिया. ग्रामीण इलाकों में मनरेगा व अन्य गतिविधियों को शुरू करने तथा गरीब लोगों पर सरकारी-सामंती दमन पर रोक लगाने की मांग की.