वर्ष - 29
अंक - 20
09-05-2020

विशाखापत्तनम में जहरीली गैस से रिसाव के कारण लगभग 11 लोगों की मौत और 800 लोगों के अस्पताल में भर्ती होने के बाद महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कम से कम 16 प्रवासी मजदूरों को ट्रेन द्वारा रौंद कर मार दिए जाने की वीभत्स घटना को लाॅकडाउन जनसंहार कहते हुए भाकपा(माले) और ऐक्टू, खेग्रामस, एआकेएम, ऐपवा, आइसा, इनौस समेत कई संगठनों ने 9 मई को देशव्यापी शोक व धिक्कार दिवस मनाने का आह्वान किया. इस आह्वान का पालन करते हुए देश भर की पार्टी व इन जनसंगठनों की कतारों ने शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए अपने घरों अथवा कार्यालयों पर काला झंडा फहराया, काली पट्टी बांधा और पोस्टर व अन्य माध्यमों से विरोध दर्ज कराया.

इन संगठनों ने कहा कि ट्रेनें प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचा सकती थीं, लेकिन वे रौंद दिए गए. प्रवासी श्रमिकों के लिए दुखों व यातनाओं का जैसे कोई अंत ही नहीं है. इन परिहार्य मौतों को रोका जा सकता था. लेकिन हमारी सरकार ने प्रवासी मजदूरों को मरने-खपने के लिए छोड़ दिया है. ऐसा नहीं कि सरकार व रेलवे प्रशासन को पता नहीं है कि प्रवासी मजदूर रेलवे ट्रैक पकड़कर वापस लौट रहे हैं. ऐसे में बिना जांच-पड़ताल के ट्रैक पर ट्रेन दौड़ा देना घोर आपराधिक कार्रवाई है. यह लाॅकडाउन जनसंहार है.

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विशाखापत्तनम गैस लीक कांड भी घोर लापरवाही और सुरक्षा मानकों की अवहेलना का ही नतीजा है. यह देश भोपाल गैस कांड की भयावह त्रासदी झेल चुका है. उसकी मार अब तक हम झेले रहे हैं, लेकिन हमारे हुक्मरानों ने कोई सबक नहीं सीखा. आज तक भोपाल गैस कांड के अपराधियों को सजा नहीं मिली है, न ही सभी मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा व अन्य सुविधाएं मिल पाई हैं. सुरक्षा मानकों की अवहलेना आम बात हो गई है और इसके एवज में लोगों को अपनी जिंदगी गंवानी पड़ रही है. लाॅकडाउन में हो रहे इन जनसंहारों के लिए बिना प्लान किए लाॅकडाउन और प्रधानमंत्री मोदी की मजदूर विरोधी नीतियां मुख्य रूप से जिम्मेवार हैं.

इन संगठनों के नेताओं-कार्यकर्ताओं तथा उनकी अपील पर आम लोगों द्वारा अपने व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया के प्रोफाइल को काला कर दिये जाने से इस शोक व धिक्कार दिवस की शुरूआत हुई. दिन की चढ़ते ही हाथों में काला झंडा लेकर व काला बिल्ला लगाकर अपने घरों अथवा कार्यालयों पर किए जानेवाले प्रदर्शन शुरू हो गए. प्रदर्शनकारी ‘मजदूरों की जानें सस्ती नहीं - मोदी सरकार जवाब दो’, ‘सभी प्रवासी मजदूरों को ट्रेन से घर पहुंचाओ’, ‘असुरक्षित फैक्टरियों के कारण लोगों की अकारण मौत का जिम्मेवार कौन - मोदी जवाब दो’, ‘भूख से मौत का जिम्मेवार कौन - मोदी जवाब दो’ आदि नारों की तख्तियां भी लगाए हुए थे. उन्होंने विशाखापत्तनम गैस लीक कांड और महाराष्ट्र ट्रेन कांड में मजदूरों व नागरिकों की वीभत्स मौतों को राष्ट्रीय शोक की संज्ञा देते हुए इन घटनाओं की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच व विशाखापत्तनम में लापरवाही बरतने वाले एलजी पाॅलिमर और सरकारी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करने के साथ ही इन हादसों की जबावदेही तय करने तथा मृतकों के परिजनों को 20-20 लाख रुपये का मुआवजा व हर प्रकार की सहायता की गारंटी व देखभाल करने तथा सभी प्रवासी मजदूरों की सकुशल घर वापसी की मांग उठाई.

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राजधानी दिल्ली में भाकपा(माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, पोलित ब्यूरो सदस्य व वरिष्ठ पार्टी नेता स्वदेश भट्टाचार्य, कविता कृष्णन, ऐक्टू महासचिव राजीव डिमरी, संजय शर्मा, पार्टी के दिल्ली राज्य सचिव रवि राय, सुचेता डे, आइसा अध्यक्ष एन साई बालाजी व महासचिव संदीप सौरभ आदि समेत भाकपा(माले) व जनसंगठनों के तमाम नेताओं ने इस दिवस का पालन तथा इसका नेतृत्व किया.

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बिहार में भाकपा(माले), खेग्रामस व ऐक्टू ने इस दिवस को संयुक्त रूप से मनाया. भाकपा(माले) के राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य का. अमर, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, राज्य अध्यक्ष सरोज चैबे व राज्य सचिव शशि यादव, ऐक्टू के महासचिव आरएन ठाकुर व राज्य सचिव रणविजय कुमार, खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा, अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह, भाकपा(माले) के तीनों विधायकों - महबूब आलम, सुदामा प्रसाद व सत्यदेव राम तथा वरिष्ठ पार्टी नेताओं कारामजतन शर्मा, रामेश्वर प्रसाद व केडी यादव ने राज्य के अलग-अलग स्थानों पर इस दिवस की मांगों से संबंधित पोस्टर तथा बांहों पर काली पट्टी बांधकर विरोध जताया दिन ढलते ही राज्य के कई हिस्सों में मोमबत्ती व दीये जलाकर मृतकों को श्रद्धांजलि देकर दिवस का समापन हुआ.

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झारखंड के रांची, गिरिडीह, रामगढ़, हजारीबाग, जमशेदपुर, लातेहार, देवघर, कोडरमा, धनबाद स्थित पार्टी कार्यालयों व अपने घरों में नेताओं ने काली पट्टी और तख्तियां लेकर विरोध किया. राज्य सचिव जनार्दन प्रसाद, पोलित ब्यूरो सदस्य मनोज भक्त, विधायक विनोद सिंह, ऐक्टू नेता शुभेंदु सेन, ऐपवा नेत्री गीता मंडल, मोहन दत्ता, भुवनेश्वर केवट समेत पार्टी व जनसंगठनों के सभी वरिष्ठ नेताओं ने शोक व धिक्कार दिवस का पालन किया

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उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के काम के घंटे आठ से बढ़ा कर 12 घंटे करने के फैसले का विरोध करते हुए यह दिवस मनाया गया. लखनऊ स्थित राज्य कार्यालय समेत सैकड़ों स्थानों पर शोक व विरोध का प्रदर्शन हुआ. पोलित ब्यूरो सदस्य रामजी राय, राज्य सचिव सुधाकर यादव, मनीष शर्मा, मो. सलीम, कृष्णा अधिकारी, ईश्वरी कुशवाहा, अनिल पासवान, रमेश सिंह सेंगर, राधेश्याम मौर्य, डा. कमल उसरी, मीना सिंह समेत तमाम नेता इसमें शामिल रहे.

राजस्थान में भाकपा(माले) राज्य सचिव महेन्द्र चौधरी, ऐक्टू के राज्य अध्यक्ष शंकरलाल चौधरी व राज्य सचिव सौरभ नरुका, ऐपवा राज्य सचिव सुधा चौधरी समेत भाकपा(माले) नेता चंद्रदेव ओला, गौतम मोरीला और शंकर लाल मीणा, ऐपवा नेत्री हिना कौसर, आइसा नेत्री नीलू परिहार, बुद्धिजीवियों - प्रो. आरएन व्यास व एलआर पटेल और मानव अधिकार कार्यकर्ता रिंकू परिहार, रुखसाना व रिहाना के नेतृत्व में शोक व धिक्कार दिवस मनाया गया.

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असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व पुदुच्चेरी समेत देश के कोने-कोने में यह दिवस मनाया गया. इन राज्यों के पार्टी व जनसंगठनों के नेताओं ने इसकी अगआई की. ट्वीटर, फेसबुक, वाट्सऐप समेत सोशल मिडीया के हर स्पेस में कार्यक्रमों की तस्वीरों, नारों, पोस्टरों व विडीयो समेत मृतक मजदूरों के प्रति शोक संदेशों का तांता लगा रहा. मजदूरों, किसानों, छात्र-युवाओं, महिलाओं व आम नागरिकों ने इसमें सक्रिय भागीदारी करते हुए शोक व विरोध दर्शाया.

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