आज हम बड़ी चुनौतियों के बीच हैं. कोरोना महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों से पूरा देश, खासकर, मेहनतकश समुदाय कराह रहा है. इससे निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दर्शाए गए रुख ने चीजों को और कठिन बना दिया है.
वुहान की स्थिति देखते हुए मध्य दिसंबर में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया को खतरे की चेतावनी दे दी थी. 30 जनवरी को उसने वैश्विक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की और जब 114 देशों में बीमारी फैल गई तो 11 मार्च को इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया. वैश्विक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा के रोज ही 30 जनवरी को देश में कोरोना का पहला केस मिला था. लेकिन मोदी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. अपने ही देश के केरल राज्य से भी उसने नहीं सीखा जिसने 30 जनवरी को कोरोना का पहला मरीज मिलने से काफी पहले 16 जनवरी से ही तैयारी शुरू कर दी थी. उल्टे भाजपा ने विपक्ष की चेतावनी का मजाक उड़ाया. कोरोना से निपटने की व्यापक और समय रहते तैयारी करने की बजाए मोदी सरकार ट्रंप की आरती उतारने, दिल्ली में दंगे आयोजित करने और मध्य प्रदेश का तख्ता पलट करने आदि में मशगूल थी.
कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए लाॅक डाउन बहुत जरूरी कदम है. लेकिन मोदी सरकार ने न तो दुनिया के लाॅक डाउन संबंधी अनुभव से सीखा और न ही अपने ही देश के केरल राज्य से. लाॅक डाउन से निपटने के लिए केन्द्र सरकार ने पूरे देश के लिए 15 हजार करोड़ रू की राशि आवंटित की जबकि केरल ने अपने राज्य के लिए 20 हजार करोड़ की राशि आवंटित की. मोदी ने किसी पार्टी से भी राय नहीं ली. आगे-पीछे सोचे बिना और बगैर व्यापक व समग्र योजना के मनमाने ढंग से लाॅक डाउन लागू कर दिया गया. इससे पूरे देश में बदहवासी व अराजकता का माहौल बन गया. लाखों-लाख लोग महानगरों से अपने गांवों की ओर चल पड़े. यह प्रक्रिया अभी भी जारी है.
मोदी सरकार द्वारा इस तरह लिए गए गैरजिम्मदाराना, अविवेकपूर्ण व सनक भरे फैसले से लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है. रोज कमाने-खाने वाला मेहनतकश हिस्सा भुखमरी का शिकार है. न तो कोरोना के व्यापक जांच की व्यवस्था है और न ही चिकित्सा कर्मियों के लिए जरूरी संसाधनों की. लेकिन दूसरी ओर भाजपा खेमे में जबरदस्त उत्साह है और उसके सामंती-सांप्रदायिक-अपराधी आधार की आक्रामकता में बढ़ोत्तरी हुई है.
चौतरफा मंदी, बेरोजगारी, बैंकों के डूबने और नागरिकता आंदोलन से चौतरफा घिरी भाजपा कोरोना महामारी का इस्तेमाल न सिर्फ अपने सांप्रदायिक एजेंडा को आगे बढ़ाने में कर रही है, बल्कि विपक्ष की भूमिका को सीमित करने और लोकतंत्र के दायरे को और भी संकुचित करने में कर रही है. पहले तो कोरोना के प्रसार के लिए चीन के खिलाफ भरपूर कुप्रचार चलाया गया. चीन के बहाने वामपंथ को निशाना बनाया गया. बाद में दिल्ली में तबलीगी जमात के धार्मिक आयोजन को सामने रखकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ पूरे देश में सांप्रदायिक माहौल बनाया गया. कुप्रचार अभी भी चल रहा है और जगह-जगह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ लोगों को भड़काया जा रहा है. कई जगह से उनके सामाजिक बहिष्कार व उन पर हमले की भी खबर मिल रही है. माॅब लिंचिंग का माहौल बना दिया गया है. इसी दौरान हिन्दू और सिख समुदाय के भी बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन हुए. वैष्णोदेवी की यात्रा जारी रखी गई और शिरडी के सांई बाबा के यहां बड़े आयोजन हुए. ऐसे सभी कार्यक्रमों पर रोक लगाने की जरूरत थी. लेकिन जान-बूझकर मुस्लिम समुदाय को टारगेट किया गया. बहुत चतुराई और बेशर्मी के साथ भाजपा कोरोना महामारी का इस्तेमाल अपने सांप्रदायिक राजनीतिक हित में कर रही है और महामारी से लडने की तैयारी में बरती गई आपराधिक लापरवाही को छिपा रही है.
अब यह करीब-करीब तय है कि 14 अप्रैल के बाद भी लाॅक डाउन अपने पूर्ववर्ती रूप में कम से कम दो हफ्ता जारी रहेगा या अनेक तरह के प्रतिबंधों के साथ जारी रहेगा. भाजपा इसका इस्तेमाल विरोधी पार्टियों के खिलाफ कर रही है. कोरोना के नाम पर तमाम गैर एनडीए राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियों को जान-बूझकर ठप्प कर दिया गया है. महाआपदा के इस दौर में तमाम विपक्षी पार्टियों, जनसंगठनों, सामाजिक संगठनों की बड़ी भूमिका हो सकती है. लेकिन इसकी इजाजत नहीं दी जा रही है. पूरी संभावना है कि महामारी लंबे समय तक जारी रहेगी और संक्रमण को कंट्रोल करना बहुत ही मुश्किल होगा. आने वाले विधान सभा चुनाव तक अगर तक यही स्थिति बनी रही और विपक्षी पार्टियों की गतिविधि ठप्प रही, तो विपक्ष द्वारा भाजपा को कारगर चुनौती देना कठिन होगा. इमरजेंसी का माहौल बनाए रखना भाजपा की जरूरत है. इस तरह भाजपा देश में लोकतांत्रिक अधिकारों और उसके दायरे को संकुचित करना चाहती है. यह उसके फासीवादी एजेंडा से मेल खाता है.
देश की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था और कोरोना से मुकाबला की सरकार की लचर तैयारी जगजाहिर है. कोरोना के 80-90 प्रतिशत मरीज यूं ही ठीक हो जाते हैं और 10-20 प्रतिशत को ही अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. संक्रमित लोगों के 2 प्रतिशत की मौत हो सकती है. 80-90 प्रतिशत लोग बच जरूर जाएंगे, लेकिन उनसे ढेर सारे लोगों में बीमारी फैल सकती है.
कम जांच होने की वजह से मरीजों की सही संख्या का पता नहीं चल पा रहा है. इस वजह से संक्रमण को फैलने से रोकना भी असंभव जैसा हो जाएगा. कोरोना पीड़ितों के प्रति सहानुभूति की बजाय उन्हें सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ रहा है. छुआछूत नए रूप में जारी हो गया है. सरकार न सिर्फ क्वारेंटाइन वाले व्यक्ति के हाथ पर मुहर मार रही है, बल्कि उनके दरवाजे पर इश्तहार साट दिया जा रहा है. सामाजिक घृणा व बहिष्कार से बचने के लिए अनेक लोग बीमारी छिपाना चाहेंगे और यहां तक कि उनकी मौत भी रहस्य बनी रह जाएगी. पटना एम्स का उदाहरण सामने है. मरीज की मौत के बाद पता चला कि उसकी मौत कोरोना के कारण हुई है. चूंकि मरीज एम्स में भर्ती था, इसीलिए पता लगाना संभव भी हो सका, अन्यथा मौत का कारण रहस्य ही बना रह जाता. स्वाइन फ्लू आज भी हमारे देश में महामारी है और लोग मर भी रहे हैं. लेकिन अब इसकी कोई चर्चा नहीं होती.
बहरहाल, कम जांच के कारण संक्रमित लोगों का आंकड़ा बहुत छोटा है. ग्रामीण इलाके में स्वास्थ्य सेवा की और भी बुरी स्थिति के कारण मौत की रिपोर्टिंग भी कम होना तय है. इस स्थिति को भी भाजपा अपनी उपलब्धि गिना सकती है. गोदी मीडिया कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मोदी को विश्व लीडर के रूप में आज से ही प्रचारित करने भी लगा है.
मोदी द्वारा आहूत जनता कर्फ्यू के रोज ताली-थाली बजाने और 5 अप्रैल के दीप जलाने के आह्वान को मिले व्यापक समर्थन के पीछे अनेक कारण हैं. कोरोना के भय से उत्पन्न बदहवासी, अनिश्चितता और लाॅक डाउन की ऊब से क्षणिक राहत भी इसकी सफलता के पीछे के बड़े कारण रहे हैं. अनेक लोग अलगाव में पड़ने के डर से भी इसमें शामिल हो गए. जो भी हो, मोदी के आह्वान को मिले व्यापक समर्थन से भाजपाइयों को ऐसा लगा जैसे पूरे देश को मोदी के इशारे पर कठपुतली की तरह नचाया जा सकता है. उन्हें लग रहा है कि मोदी का जादू एक बार फिर देश पर छा गया है. 22 मार्च और 5 अप्रैल को भाजपाइयों द्वारा मनाए गए जश्न का यही कारण है. देश में तार्किक व वैज्ञानिक सोच बढ़ाने की बजाए उसे अंधविश्वास में धकेला जा रहा है. अन्धविश्वास व मूर्खता पर आधारित इलाज भी प्रचारित किए जा रहे हैं. यह उनके हिन्दू राष्ट्र की संघी योजना का हिस्सा है.
लाॅक डाउन के बीच ही गरीबों, महिलाओं, अल्पसंख्यक समुदाय और पार्टी के सक्रिय कर्मियों व कार्यकर्ताओं पर अनेक जिलों में हमले हुए हैं. हत्या, बलात्कार व लूटपाट की कई घटनाएं सामने आई हैं. पुलिस का नंगा साथ उन्हें मिल रहा है. गरीबों की ताकत उनकी एकता व उनके एकजुट प्रतिरोध में ही निहित होता है. लाॅक डाउन के कारण इसमें बड़ी बाधा पहुंच रही है.
भुखमरी, बेरोजगारी और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के खिलाफ देश में बड़ा विक्षोभ पनप रहा है. सामाजिक अशांति के मुहाने पर देश खड़ा है. इसके प्राथमिक लक्षण दिखने भी लगे हैं. क्वारेंटाइन सेन्टर की कुव्यवस्था और अमानवीय स्थिति के खिलाफ हाल ही में गुजरात के सूरत में पावर लूम के हजारों मजदूरों ने आगजनी और पत्थरबाजी की है. इसी तरह दिल्ली के कश्मीरी गेट इलाके के तीन शेल्टर होम में मजदूरों ने आग लगा दी है. सूचना मिल रही है कि उत्तर प्रदेश के भदोही में लाॅक डाउन के कारण भूख से परेशान एक दिहाड़ी मजदूर मां ने अपने 5 बच्चों को नदी में फेंककर खुद आत्महत्या की कोशिश की है. सरकार ने एक समर्थ नागरिक को याचक बना डाला है!
बहरहाल, हमें भाजपा की सम्पूर्ण साजिश को समझना होगा, पूरी कतार और जनता को भी इसे समझाना होगा और हर हाल में इसे नाकाम करना होगा. भूख और अन्य जनसमस्याओं पर पहल करनी होगी. हमें सामंती-सांप्रदायिक -अपराधी ताकतों के बढ़ते हमले के खिलाफ जनता को प्रतिरोध में उतारना भी होगा. इसी बीच जरखा (पालीगंज, पटना ग्रामीण) में प्रखंड कमिटी सदस्य के घर पर संघी गुंडों द्वारा हमले का कड़ा प्रतिवाद किया गया है. जहानाबाद के दयाली बिगहा में और गोपालगंज के भोरे में पुलिस दमन का प्रतिवाद किया गया है. हम लाॅक डाउन के समर्थन में है, लेकिन इसका कोई फायदा उठाकर जनता पर हमला व दमन करे तो जरूर विरोध करेंगे. हमें सरकार के खिलाफ पनप रहे विक्षोभ पर भी नजर रखने और उसे सही दिशा देने की जरूरत है.