ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव, महासचिव मीना तिवारी और राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने विगत 15 अप्रैल को देश के प्रधानमंत्री को पत्र देकर लाॅकडाउन में पूरे देश में महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा पर रोक लगाने और पीएनपीडीटी एक्ट को कमजोर करने अर्थात भू्रण निर्धारण परीक्षण पर लगी रोक को जून तक हटा लेने संबंधी फैसले को तत्काल वापस लेने की मांग की. पत्र में कहा गया है कि कोरोना महामारी को रोकने के लिए 3 मई तक लाॅकडाउन बढ़ाने की घोषणा की गई. लेकिन न तो प्रधानमंत्री के भाषण और न ही बाद में जारी की गई गाइडलाइन में 21 दिनों के लाॅकडाउन में महिलाओं को हुई परेशानियों को ध्यान में रख कर उसके समाधान के लिए उठाए जानेवाले उचित कदमों का कोई जिक्र किया गया है. 20 अप्रैल से कुछ सीमित आर्थिक गतिविधि शुरू करने की बात है लेकिन इस गाइडलाइन में भी महिलाओं की अनदेखी की गई है.
विगत 25 दिनों में महिलाओं की भयावह जीवन स्थिति की कई घटनाओं – बिहार के जहानाबाद में इलाज और एम्बुलेंस के अभाव में एक मां बेबस होकर अपने बच्चे को मरते हुए देखती रही. बिहार के ही गया जिले में पंजाब से लौटी और क्वारेंनटाईन वार्ड में भर्ती एक टीबी मरीज महिला का बलात्कार और उसकी मृत्यु (जांच में कोरोना निगेटिव पाई गई), ‘कोरोना योद्धा’ महिलाओं पर हमले की देश भर से आती खबरों का हवाला देते हुए कहा है कि महामारी से बचाव और महिलाओं व बच्चों का अत्याचार व भूखमरी से बचाव एक दूसरे का विरोधी नहीं है.
ऐपवा ने जून महीने तक के लिए पीएनपीडीटी एक्ट के प्रावधानों (भ्रूण निर्धारण परीक्षण पर लगी रोक) को हटा देने के निर्णय (जिसके लिए लाॅकडाउन के दौर में अल्ट्रासाउंड कराने वाली महिलाओं, डाक्टरों, अस्पतालों, प्राइवेट क्लिनिकों का समय बचाने जैसा हास्यास्पद तर्क दिया गया है) पर ऐतराज जताते हुए इसे अविलंब वापस लेने, स्वास्थ्य मंत्रालय को पीएनपीडीटी एक्ट के प्रावधानों को कड़ाई से लागू रखने तथा हर जिला प्रशासन इस पर विशेष निगरानी करने का निर्देश देने की मांग की है. साथ ही, घरेलू हिंसा से बचाव व राहत के लिए व्यवस्था कायम करने, हर जिले में दिन-रात काम करनेवाली हाॅटलाइन बनाने और मदद चाहने वाली महिलाओं तक पहुंचने के लिए विशेष टीमें गठित करने और जरूरत हो तो महिला संगठनों के प्रतिनिधियों की मदद भी लेने की मांग भी की है.
14 अप्रैल को दिए गए प्रधानमंत्री ने वक्तव्य जिसमें देश में अन्न और दवा की कमी नहीं होने की बात की गई है पर सवाल खड़े करते हुए ऐपवा ने सवाल उठाया है कि तब भी लोग भूख से क्यों मर रहे हैं? आधा अप्रैल बीत जाने के बाद भी यहां तक कि आंगनबाड़ी केन्द्रों को पोषाहार क्यों नहीं मिला है और बिहार जैसे कुछ राज्यों में में सरकार ने आहार के बदले लाभुकों के खाते में राशि देने और इसके लिए उनका खाता नं, मोबाइल नंबर, आधार नंबर जमा करने का तुगलकी फरमान कैसे जारी कर दिया है जबकि भोजन और पोषाहार की तत्काल जरूरत है. अन्न के बदले सरकारी दर पर राशि मिलेगी और बाजार से इन्हें मंहगा खरीदना पड़ेगा. ऐपवा ने तत्काल पोषाहार का वितरण करने और लाॅकडाउन को देखते हुए दोगुना पोषाहार देने की मांग की है.
ऐपवा ने कहा है कि इस बुरी स्थिति में लेागों से सहायता दिलवाने के बजाय सरकार को भी अपना कर्तव्य निभाते हुए गोदामों में अनाज को सड़ाने के बदले हर गरीब बस्ती में अगले तीन महीने तक के लिए सरकारी सामुदायिक भोजनालय शुरू करना चाहिए. लाॅकडाउन के दौर में महिलाओं और बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकारी राशन दुकानों से सैनेटरी पैड और बच्चों के लिए दूध मुफ्त देने का इंतजाम किया जाना चाहिए.
ऐपवा ने कहा कि सरकार ‘कोरोना योद्धाओं’ को सम्मानित करने की बात करती है लेकिन आशा, रसोइया और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को सरकार मास्क तक उपलब्ध नहीं करवा रही है. आंगनबाड़ी कर्मियों को कोरोना बचाव के काम में लगा दिया गया है लेकिन उन्हें बीमा से बाहर रखा गया है. आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सफाई कर्मियों को 3 महीने के वेतन के समतुल्य अतिरिक्त राशि या दस हजार रुपए सम्मान राशि के रूप में देने, आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स का स्वास्थ्य बीमा कराने तथा अन्य योद्धाओं -डाक्टर्स, नर्सेज, पुलिसकर्मियों आदि को उनके पद के अनुसार सम्मान राशि प्रदान करने की मांग की गई है. ऐपवा ने देश में साम्प्रदायिक विभाजनकारी ताकतों और लूटतंत्र पर रोक लगाने की मांग भी की है.