वर्ष - 29
अंक - 16
11-04-2020

ऐक्टू 12 घंटे के कार्य दिवस के प्रस्ताव की सख्त भर्त्सना करता है और इस प्रस्ताव को वापस लेने की मांग करता है

कोविड-19 द्वारा पैदा किये गए व्यापक आर्थिक संकट का बोझ मजदूरो के कंधों पर डालने की मोदी सरकार कर रही है तैयारी

हमें मालूम हुआ है कि वरिष्ठ नौकरशाहों के एक अधिकार-संपन्न समूह ने कोरोना वायरस लाॅकडाउन के मद्देनजर जारी आर्थिक संकट से पार पाने के लिये काम के घंटों को बढ़ाकर 12 घंटे के कार्य दिवस का प्रस्ताव दिया है. इस प्रस्ताव को फैक्टरी ऐक्ट 1948 में संशोधन कर अंजाम दिया जाएगा.

यह प्रस्ताव मोदी नीत भाजपा सरकार के इरादों को साफ कर देता है कि वह कोविड-19 द्वारा पैदा किये गए व्यापक आर्थिक संकट का बोझ मजदूरों, दबे-कुचलों और गरीबों के कंधों पर डाल देना चाहती है, जो तबके पहले से ही देश में चल रही कोविड-पूर्व आर्थिक मंदी की रिकाॅर्डतोड़ बेरोजगारी और वेतन एवं सामाजिक सुरक्षा कटौती की मार को झेल रहे हैं. और अब, ये कामगार कोविड-19 आपदा के चलते देश में हुए लाॅकडाउन से सबसे अधिक पीड़ित हैं.

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मोदी सरकार जो काॅरपोरेट घरानों के चरम मुनाफों के खातिर तमाम श्रम कानूनों को खत्म कर चार श्रम कोड बनाने की ताबड़तोड़ कोशिशों में लगी हुई है, अब कोरोना संकट का पफायदा उठाकर पिछले दरवाजे से काॅरपोरेट-परस्त, मजदूर-विरोधी श्रम कानून संशोधनों और कोडों को लागू करने की फिराक में है. ‘पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियां’ (ओएसएचडब्लू) कोड पर बिल, जो काम के घंटों को बढ़ाने का प्रावधान करता है, ट्रेड यूनियनों और अन्य सामाजिक संगठनों के सख्त विरोध के चलते फिलहाल विचाराधीन है.

बिना योजना के लागू किये गए लाॅकडाउन से पैदा हुई आर्थिक तबाही के चलते 40 करोड़ से भी अधिक मजदूर, कोरोना से अधिक, गरीबी और भूख की मार झेल रहे हैं. सरकार के निर्देशों के बावजूद, आईटी और आईटी से जुड़ी सेवाओं समेत, बहुत सी कंपनियां मौजूदा आपदा का फायदा उठाकर अवैध ढंग से मजदूरों को काम से निकाल रही हैं. देश भर में इस लाॅकडाउन के दौर में मनमर्जी से छंटनी, रोजी-रोटी का खात्मा, मजदूरी देने से मनाही अंधाधुंध ढंग से जारी है. मजदूरों की यह स्थिति हो गई है कि वे कोरोना से मरेंगे या फिर गरीबी और भूख से.

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग देश में सबसे बड़े नियोक्ता हैं. लेकिन, इन उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों को लाॅकडाउन के समय की मजदूरी नहीं मिली है. यहां तक कि महामारी और लाॅकडाउन की आड़ में, कमाए जा चुके वेतन से भी मजदूरों को वंचित किया जा रहा है. इन उद्योगों की एसोसियशन लाॅकडाउन के चलते हो रहे घाटे के लिये सरकार से राहत की मांग कर रही है, लेकिन इसे मजदूरी से वंचित करने के लिये सही नहीं ठहरया जा सकता है. इन उद्योगों को अपने कर्मचारियों को तत्काल वेतन देना होगा, हालांकि इन उद्योगों के समूह की सरकार से मांग के प्रति हम सहानुभूति रखते हैं. प्रवासी मजदूरों के छोटे से हिस्से को भोजन उपलब्ध भर करा देने के बहाने इन्हें मजदूरी से वंचित रखना अन्यायपूर्ण है क्योंकि मजदूरी के बिना इनके परिवार चल नहीं सकते.

ऐक्टू मजदूरों को उनके अधिकारों से वंचित करने के हर प्रस्ताव की सख्त भर्त्सना करता है और केंद्र सरकार से मांग करता हैः वह 12 घंटे के कार्यदिवस के प्रस्ताव को खारिज करे! वह मनरेगा समेत तमाम मजदूरों की लाॅकडाउन के दौर की मजदूरी सुनिश्चित करे, छंटनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे! ऐक्टू मांग करता है कि प्रवासी मजदूरों के आश्रय, भोजन और मजदूरी समेत तमाम समस्याओं के हल के लिये केंद्रीय ट्रेड यूनियनों को शामिल कर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाए!

राजीव डिमरी
महासचिव, ऐक्टू