22 अप्रैल हमारी पार्टी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का स्थापना दिवस है. इस साल हमारी पार्टी 51 साल पूरे कर रही है. साथ ही कामरेड लेनिन के जन्म के 150 साल भी पूरे हो रहे हैं. लेकिन आज जो समय है, यह बहुत ही कठिन दौर है. हम एक महामारी से जूझ रहे हैं और लाॅकडाउन भी चल रहा है. इस महामारी और लाॅकडाउन के कठिन दौर में आप सभी के लिये हमारे मन में शुभकामनाएं हैं. आप स्वस्थ रहें और इस पूरे लाॅकडाउन के दौर में भी आगे बढ़ते रहें, कोरोना को पीछे छोड़ते हुए.
इस दौर में हमारी पार्टी संकल्प ले रही हैै. हम पांच संकल्प ले रहे हैं, जो इस दौर के सबसे कठिन सवाल हैं उन सवालों के आधार पर. सबसे पहला सवाल यह है कि हमारे देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा भूखा है. एफसीआई के गोदाम भरे पड़े हैं लेकिन जनता की थाली खाली है. लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच रहे हैं. इसीलिये हमारा पहला संकल्प है – “भूख मिटाओ, कोरोना भगाओ”. भूखा भारत कोरोना से नहीं लड़ सकता.
इस पूरे दौर में हमारी एकता बहुत जरूरी है. एक होकर हमें लड़ना है इस महामारी के खिलाफ. लेकिन इसी दौर में हम देख रहे हैं कि जनता के बीच फूट डालने के लिये, लोगों को आपस में बांटने के लिये, नफरत फैलाने के लिये संघ परिवार के लोग पूरा लगे हुए है. इस समय हमारे लिये आपस में शारीरिक दूरी बनाये रखना जरूरी है, लेकिन इस फीजिकल डिस्टेंसिंग (शारीरिक दूरी) के साथ-साथ हमें सामाजिक एकजुटता चाहिये, एकता चाहिये. और इस एकता व एकजुटता की जगह हम देख रहे हैं कि पफिर से अस्पृश्यता, छुआछूत का खतरा इस देश में मंडराते जा रहा है. यह जो नया छुआछूत दिख रहा है, यह सिर्फ दलितों के खिलाफ नहीं है. डाॅक्टरों के साथ, नर्सों के साथ, पारा मेडिकल स्टाफ के साथ, सैनिटेशन (सफाई) कर्मचारियों के साथ – तमाम फ्रंटलाइन वर्कर्स, जो इस समय लोगों की जान बचा रहे हैं, उनके साथ छुआछूत आज सारे देश में फैल रहा है.
अतः हम देख रहे हैं कि कोरोनावायरस के साथ साथ एक साम्प्रदायिक वायरस भी फैलाया जा रहा है. इसमें पूरी की पूरी मुस्लिम बिरादरी का, पूरे समाज का आज सामाजिक रूप से बहिष्कार किया जा रहा है, आर्थिक रूप से बहिष्कार किया जा रहा है. हमें यह साम्प्रदायिकता का वायरस बिल्कुल मंजूर नहीं है, यह छुआछूत का माॅडल बिल्कुल मंजूर नहीं है. इस छुआछूत और साम्प्रदायिकता को परास्त करके ही हम कोरोना से लड़ेंगे और आगे बढ़ेंगे.
आज इस दौर में जो लाॅकडाउन चल रहा है, उस लाॅकडाउन का मतलब कोई लाइसेंस नहीं है सामंती ताकतों के लिये, अपराधियों के लिये गुंडों के लिये, इस राज्य मशीनरी के लिये, संविधान को खत्म करने के लिये, हमारी आवाज को खामोश करने के लिये, हमारे अधिकारों को छीनने के लिये हमने कोई लाइसेंस सरकार को नहीं दे रखा. और इसीलिये, लाॅकडाउन चले, पर इस लाॅकडाउन के दौर में भी हमारी आजादी, हमारी आवाज बिल्कुल सुरक्षित रहनी चाहिये. इस आजादी और आवाज के साथ कोई छेड़छाड़ हम किसी तरह से बर्दाश्त नहीं करेंगे. अपनी आवाज, अपनी आजादी को सुरक्षित रखते हुए ही हम इस लाॅकडाउन से निपटेंगे, कोरोना महामारी से निपटेंगे.
आज दुनिया के सामने एक बहुत बड़ा संकट आ गया है. जो पूंजीवाद आज दुनिया में छाया हुआ है, उस पूंजीवाद के जो सबसे बड़े और मजबूत गढ़ हैं – अमरीका और यूरोप – उन तमाम बड़े देशों में आज सबसे ज्यादा संकट है. जहां सबसे ज्यादा पूंजीवाद का विकास था, आज वहीं सबसे ज्यादा कोरोना का तांडव दिख रहा है. और इसीलिये हम सबको इस दौर में सोचना है कि क्या ये जो पूंजीवादी माॅडल है, जो पूंजीवादी स्वास्थ्य नीति है, इसके आधार पर हम आगे टिक पायेंगे, जिंदा रह पायेंगे? इस दुनिया को बिल्कुल एक नई नीति चाहिये, एक नई व्यवस्था चाहिये, और वह नई व्यवस्था, वह नई नीति समाजवाद की ही होनी चाहिये, जहां मेहनतकशों का, और मेहनतकशों के साथ-साथ पर्यावरण का भी पूरा खयाल रखा जाए. मेहनतकशों और पर्यावरण को केन्द्र में रखकर ही हम नीति बनायें, न कि मुनाफा लूटने के लिये, न इस पूरी दुनिया पर कब्जा जमाने के लिये, बल्कि इस दुनिया में सभी लोगों के लिये जगह हो, सबको अधिकार मिले, सबकी बराबरी हो. एक ऐसी दुनिया बनाने के लिये हम लेनिन के सपनों को फिर से याद करेंगे.
समाजवाद के लिये आज तक दुनिया में जो भी संघर्ष हुए हैं, हमारी पार्टी के नेतृत्व में, हमारे देश में कम्युनिस्टों ने जो लड़ाइयां लड़ी हैं, तमाम लोगों ने जो लड़ाइयां लड़ी हैं, उन शहीदों के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने का संकल्प ही हम लेंगे इस 22 अप्रैल को. आप सभी लोगों से फिर एक बार हमारी गुजारिश है कि आप लोग मिलकर इस कोरोना से लड़ें, इस पूरे लाॅकडाउन के दौर से गुजरें, और इस देश को तथा अपनी जनता को आगे बढ़ाने के लिये कदम बढ़ाएंबहुत बहुत शुक्रिया.