अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर लंदन में औरतों के खिलाफ हिंसा के विरोध में ‘मिलियन वुमेन राइज मार्च 2020’ आयोजित किया गया, जिसमें हजारों महिलाओं ने हिस्सेदारी की. इस मार्च में शामिल महिलाएं जोशीले ढंग से मोदी शासन के भेदभाव-मूलक और फासीवादी ‘सीएए’ जैसे कदमों के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन चुके महिलाओं के शाहीन बाग धरने और देश भर में इसी किस्म के अन्य शाहीन बागों के लिए एकजुटता जाहिर कर रही थीं. इन कदमों – ‘सीएए’, एनआरसी और एनपीआर – को आम तौर पर नृजातीय सफाया और जनसंहार की ओर बढ़ता कदम समझा जा रहा है जो नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हिंदू वर्चस्ववादी भाजपा सरकार द्वारा बढ़ावा दिए जा रहे धुर हिंदूवादी राज्य की भविष्य-दृष्टि का ही प्रतिनिधित्व करता है.
प्रदर्शन में शाहीन बाग जत्थे ने दिल्ली के इस महिला धरने के प्रतीकात्मक स्वरूप के बारे में विस्तार से बताया जो 14 दिसंबर 2019 से ही चल रहा है और जिसने देश भर में अन्य सैकड़ों शाहीन बागों को प्रेरित किया है. ये प्रतिवाद स्थल सुरक्षा व रचनात्मकता के स्थल बन गए हैं जहां महिलएं उस भविष्य का एक नजरिया पेश कर रही हैं जिसमें तमाम किस्म के उत्पीड़नों को चुनौती दी जा सकेगी. इन नागरिकता कानूनों से सबसे ज्यादा तो मुस्लिम महिलाएं ही प्रभावित होंगी और इसीलिए वे ही प्रतिरोध के अग्रिम मोर्चे पर डटी हुई हैं.
इस साल फरवरी के अंत में दिल्ली जनसंहार की भयावह हिंसा के दौरान 53 लोगों, मुख्यतः मुस्लिम लोगों की, जान गई है और सैकड़ों लोग जख्मी हुए हैं और हजारों लोगों ने अपने घरों को जलते तथा अपनी संपत्ति को नष्ट होते देखा है. बहरहाल, तमाम धमकियों के बावजूद शाहीन बाग मजबूती से डटा रहा. उत्तर पूर्वी दिल्ली के जफराबाद जैसे कुछ धरना-स्थलों पर धुर दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी भीड़ और दिल्ली पुलिस के भयावह हमलों के चलते वहां मौजूद महिलाओं को थोड़े समय के लिए उन जगहों को छोड़ना पड़ा था, लेकिन अब वे फिर से वहां आ जुटी हैं – पहले से भी ज्यादा मजबूती के साथ – और वे क्रूर राज्य दमन व फसीवादी हिंसा को धता बताते हुए अपना शांतिपूर्ण प्रतिवाद जारी रखे हुई हैं.
दमन और पितृसत्तात्मक हिंसा झेलने वाली तुर्क, दक्षिण अमेरिकी और दुनिया भर की अन्य नारीवादियों के साथ मार्च करते हए यह शाहीन बाग जत्था नारे लगा रहा था – ‘शाहीन बाग हम तुम्हारे साथ हैं, तुम फसिस्टों के सामने नहीं झुकोगे’, ‘मोदी, शाह तुम छिप नहीं सकते, तुमलोग जनसंहार कर रहे हो’ और ‘शाहीन बाग जारी रहेगा, जबतक तुम सीएए को रद्द नहीं कर देते’. यह जत्था शाहीन बाग में बनाए गए बैनर और कलाकृति लिए हुए था.
ट्रैफलगर चौक पर इस रैली को संबोधित करते हुए साउथ एशिया साॅलिडैरिटी ग्रुप की अमृत विल्सन ने कहा: “यह वैश्विक एजेंडा है जो मोदी को ट्रंप, नेतान्याहू और बोरिस जाॅनसन से जोड़ता है. कश्मीर, म्यांमार और भारत की तकलीफें अमेरिका और इंग्लैंड से जुड़ी हुई हैं. भारत में यह फासीवाद सवर्ण हिंदू वर्चस्ववाद का रूप ग्रहण कर लेता है. भारत सरकार मांग कर रही है कि लोग पीढ़ियों पहले के दस्तावेजों के साथ अपनी नागरिकता प्रमाणित करें. अगर आप मुस्लिम हैं और आपके पास इस किस्म के दस्तावेज नहीं हैं तो आपको डिटेंशन कैंप में डाल दिया जाएगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपका परिवार हमेशा से इस देश में रहता रहा है. बड़े-बड़े डिटेंशन केंद्र पहले ही बनाये जा चुके हैं और उनमें बंद किए गए कई लोगों की मौत भी हो चुकी है. नए नागरिकता कानून के केंद्र में धर्म को रखा गया है – पहली बार. इस देश (इंग्लैंड) में हम विंड्रुश के बारे में जानते हैं, याल्र्स वुड के बारे में जानते हैं, ये सब फासीवाद के लक्षण हैं. भारत में हम इसकी अगली भयावह अवस्था को देख सकते हैं. जैसा कि हिटलर के जर्मनी में हुआ था, दसियों लाख लोगों को नागरिकता से वंचित करने के बाद जनसंहार की संभावना है. लेकिन इस अंधकारपूर्ण समय में प्रतिरोध के आश्चर्यजनक प्रेरणादायी फूल भी खिल रहे हैं. जिन मुस्लिम महिलाओं को निष्क्रिय बताया जा रहा था, वे महिलएं ही अब हजारों की तादाद में बाहर निकल कर प्रतिरोध कर रही हैं, वे अब इन हत्यारे कानूनों के प्रतिवाद में लगातार अनेकानेक धरना चला रही हैं”.