सीएए-एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ बिहार विधानसभा से तत्काल प्रस्ताव पारित करने की मांग पर 25 फरवरी 2020 को भाकपा(माले) व इंसाफ मंच के बैनर से ऐतिहासिक बिहार विधानसभा मार्च आयोजित हुआ. मार्च में भाग लेने के लिए राज्य के कोने-कोने से हजारों-हजार की तादाद में आम लोग पटना पहुंचे. प्रदर्शनकारियों के जत्थे देर शाम से ही ट्रेनों व बसों से पटना पहुंचने लगे थे. बिहार के दलित-गरीबों, मजदूर-किसानों, अकलियत समुदाय के लोगों, महिलाओं, छात्र-नौजवानों और आम नागरिकों जो नागरिकता, संविधान और आरक्षण बचाने की मांग पर पिछले ढाई महीनों से चल रहे देशव्यापी अभियान के दौरान गोलबंद हुए थे, इस विधानसभा मार्च में शामिल हुए. इस मार्च में मुस्लिम समुदाय के महिलाओं व पुरूषों ने भी व्यापक रूप से हिस्सा लिया. लेकिन, खास बात यह है कि इसमें बहुसंख्यक समुदाय के दलित-गरीबों-खेत मजदूरों व गरीब किसानों की जबर्दस्त रूप से व उत्साहपूर्ण भागीदारी रही. दिल्ली के शाहीनबाग की तर्ज पर राज्य के दरभंगा के लालबाग व किलाघाट, भोजपुर के गड़हनी, अबरपुल (आरा) व पीरो, पटना के लालबाग, समनपुरा, हारूननगर, खलीलपुरा व नौसा, मुजफ्फरपुर के औराईं, माड़ीपुर व चांदपुरा, समस्तीपुर के ताजपुर व बेगूसराय के बलिया आदि समेत बिहार के दर्जनों शहरों व कस्बों में पिछले कई दिनों से चल रहे अनिश्चितकालीन धरनों में शामिल महिलाओं-पुरूषों की एकजुट आवाज ने गर्दनीबाग पहुंचकर वह बुलंदी हासिल कर ली कि राज्य की जदयू-भाजपा सरकार को भी पीछे हटना पड़ा और बिहार विधानसभा से एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना पड़ा. देश में पहली बार किसी एनडीए शासित राज्य की विधानसभा को ऐसा प्रस्ताव पारित करने को बाध्य कर देने की वजह से भी इस विधानसभा मार्च ने ऐतिहासिक महत्व हासिल कर लिया.
विधानसभा मार्च की पूर्व वेला में बिहार में मौसम ने भी अचानक अपना रूख बदल लिया. 14 फरवरी की रात से ही राज्य के विभिन्न हिस्सों, खासकर उत्तर बिहार के कई जिलों में चक्रवाती अंधड़-पानी व ओलावृष्टि हुई. यहां तक कि विधानसभा मार्च निकालने के लिए निर्धारित समय दोपहर 11 बजे से राजधानी पटना में बादलों की भारी गरज के साथ बारिश की तेज बौछार भी शुरू हो गई. लेकिन, राजधानी पटना के गर्दनीबाग तक पहुंचने का संकल्प ठान चुके आंदोलनकारियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. वे बारिश में भींगते हुए भी ‘नीतीश कुमार होश में आओ, एनपीआर पर रोक लगाओ’ के जोरदार नारे बुलंद करते हुए डटे रहे. घंटे भर बाद ही जब बारिश थमी तो लाल व तिरंगे झंडों और सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ हजारों तख्तियों को लहराते और ‘नीतीश कुमार होश में आओ, एनपीआर पर रोक लगाओ’ का नारा लगाते लोगों का हुजूम अनिसाबाद चौराहा, चितकोहरा, गर्दनीबाग में फिर से उमड़ पड़ा.
करीब 12 बजे भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य, वरिष्ठ नेता का. स्वदेश भट्टाचार्य, भाकपा(माले) राज्य सचिव का. कुणाल, खेग्रामस के महासचिव का. धीरेन्द्र झा व सम्मानित अध्यक्ष का. रामेश्वर प्रसाद, ऐपवा महासचिव का. मीना तिवारी, राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे व सचिव शशि यादव, इंसाफ मंच के नेताओं का. नईमुद्दीन अंसारी, कयामुद्दीन अंसारी व आफताब आलम, इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल आदि नेताओं के नेतृत्व में चितकोहरा चौराहे से विशाल जुलूस निकला. यह जुलूस जब गर्दनीबाग धरनास्थल पहुंचा तो वहां तिल भर जगह नहीं बची थी. मुख्य सड़क पर वाहनों की आवाजाही तो कब की रोक देनी पड़ी थी. अब पैदल चलना भी मुश्किल हो गया. गर्दनीबाग धरनास्थल से लेकर नये बने रेलवे ओवरब्रिज तक सड़क के दोनों ही तरफ लाल व तिरंगे झंडों के साथ जनसमुद्र लहराने लगा. इसी बीच खबर मिली की बिहार विधानसभा में भाकपा(माले) विधायकों ने इस सवाल पर जो कार्यस्थगन प्रस्ताव दिया था वह न केवल मंजूर करना पड़ा है बल्कि उस पर बहस के दौरान समूचा विपक्ष एकजुट हो चुका है और भाजपा के विधायकों के उद्दंडतापूर्ण हस्तक्षेप की वजह से सदन को कुछ देर के लिए स्थगित होना पड़ा है. भाकपा(माले) विधायक दल नेता का. महबूब आलम व विधायकों का. सुदामा प्रसाद और सत्येदव राम भी इसी बीच प्रदर्शनस्थल पहुंचे. फिर, का. धीरेन्द्र झा अध्यक्षता में जनसभा शुरू हुई.
सभा को संबोधित करते हुए महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि आज के मार्च में शामिल बीसियों की हजार लोग नीतीश कुमार को साफ-साफ शब्दों में यह बताने आये हैं कि वे उनके भ्रमजाल को अच्छे से समझते हैं और उसमें फंसने वाले नहीं हैं. नीतीश जी कह रहे हैं कि बिहार में अभी एनआरसी लागू नहीं होगा. वे कहने आए हैं कि एनआरसी कभी भी लागू क्यों होगा? एनआरसी की भयावहता को हम सबने असम में देखा है. 19 लाख लोग नागरिकताविहीन हो गए हैं. बिहार के 56 हजार मजदूरों की भी नागरिकता इस वजह से चली गई कि बिहार सरकार ने उनका साथ नहीं दिया. यह एनआरसी भाजपा का एजेंडा है और हम इसे पूरी तरह से खारिज करने की मांग करते हैं.
सीएए के बारे में कहा जा रहा है कि यह नागरिकता देने का कानून है. तो फिर इसमें धार्मिक भेदभाव क्यों किया गया? शरणार्थियों को नागरिकता मिले, इसमें किसी को क्या दिक्कत होगी. लेकिन सरकार अपने नागरिकों को शरणार्थी क्यों बना रही है? एनआरसी व एनपीआर के जरिए नागरिकों को संदेहास्पद बताकर शरणार्थी बनाया जाएगा और फिर उन्हें डिटेंशन कैंप में भेजा जाएगा. यह केवल अल्पसख्यकों पर ही नहीं बल्कि तमाम गरीबों पर हमला है. हमें उम्मीद है कि इस साजिश को बिहार की जनता नाकाम करेगी.
का. दीपंकर ने कहा कि मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड और जमीन के कागजात नागरिकता का प्रमाण हैं लेकिन वे इसे नहीं मान रहे हैं. जो लोग नागरिकता से वंचित हो जायेंगे वे मतदान, नौकरी, आरक्षण व राशन समेत तमाम नागरिक अधिकारों से वंचित हो जाएंगे. उन्होंने नागरिकता से वंचित लोगों के लिए देश के हर शहर में डिटेंशन कैंप बनाने का काम शुरू कर दिया है. दोबारा मोदी सरकार बनने पर हुए राष्ट्रपति के अभिभाषण व भाजपा के चुनावी संकल्प पत्र में एनसीआर को लाूग करने की बात है. अब जब पूरे देश में विरोध की लहर उठ खड़ी हुई है तो प्रधानमंत्री मोदी कह रहे हैं कि अभी तो एनआरसी लागू करने की कोई बात भी नहीं है. उन्हें लगता है कि अभी तो लोग जगे हुए हैं. जब लोग सो जाएंगे तो हम हम एनआरसी लागू कर देंगे. हम उन्हें यह बता देना चाहते हैं कि हम इस देश में एनआरसी न केवल अभी, बल्कि कभी भी लागू नहीं होने देंगे.
चुनाव में आए बहुमत से अंधी हो चुकी भाजपा ने सरकार बनते ही सीएए बिल लाया और कुछ दलों के सहयोग से उसे राज्य सभा से भी पारित करवाने व राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून बन गया. हमारा संविधान कहता है कि जाति, धर्म व भाषा के आधार पर हम नागरिकों के साथ कोई भेदभाव नहीं करते. लेकिन भाजपा ने नागरिकता के मामले में धर्म को घुसा दिया है. वे कह रहे हैं कि हिन्दुओं इससे कोई खतरा नहीं. वे अब भी झूठ बोल रहे हैं. हम सब अच्छी तरह से जान लें कि एनआरसी, एनपीआर और सीएए अलग-अलग नहीं हैं. सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. वे दलित-पिछड़ों को मिले आरक्षण पर भी निशाना साधे हुए हैं और आगे चलकर उसे भी छीन लेंगे.
इसलिए जबसे यह सीएए कानून आया है पूरे देश में इसके खिलाफ आंदोलन शुरू है. दिल्ली के शाहीनबाग से जब यह आंदोलन शुरू हुआ और देखते-देखते पूरे देश में फैल गया. भाजपा-संघ के जरिए शाहीनबाग को बदनाम करने नाकाम कोशिशें भी खूब हुईं. नतीजा यह निकला कि पूरे देश में सैकड़ों शाहीनबाग बन गए. हिटलर के चेले और गांधी के हत्यारों को यह पता चल गया कि पहली बार उनका असली हिन्दुस्तान से पाला पड़ा है. वे समझ चुके हैं कि वे अगर जालियांवाला बाग की तर्ज पर हमें कुचलना चाहेंगे तो हम शाहीनबाग की तरह से उसका जवाब देंगे.
माले महासचिव ने कहा कि अभी-अभी खबर आई है कि बिहार विधानसभा ने यहां एनआरसी लागू नहीं करने और एनपीआर को 2020 की जगह 2010 के मुताबिक लागू करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. हमें एनपीआर कत्तई मंजूर नहीं, वह 2010 का हो या 2020 का हो और हम एनआरसी को भी देश के किसी भी कोने में लागू नहीं होने देंगे. यह हमारे आंदोलन की एक आंशिक जीत है. लेकिन यह काफी नहीं है. यह आंदोलन जब और आगे बढ़ेगा तो सीएए और एनपीआर को भी वापस लेना होगा. इस आदोलन को और तेज करते जाना है और जो लोग अभी भी भाजपा के द्वारा फैलाए जा रहे झूठ के असर में हैं, उन्हें जगाने का काम जारी रखना है.
भाकपा(माले) महासचिव ने कहा कि यूपी को दहशतगर्दी के हवाले कर देने के बाद भाजपा-संघ गिरोह अब राजधानी दिल्ली को हिंसा की आग में झोंकने और शांतिपूर्ण आंदोलनों को खून में डूबो देने की साजिशें रच रहा है. 24 फरवरी को दिल्ली में हुई वीभत्स घटना, जिसमें अब तक चार लोगों की हत्या की खबरें हैं, बेहद निंदनीय है. हम भाजपा नेता कपिल मिश्रा की तत्काल गिरफ्तारी की मांग करते हैं और संकल्प लेते हैं कि भाजपा-संघ गिरोह द्वारा शाहीनबाग व अन्य शांतिपूर्ण आंदोलनों को खून में डूबा देने की इस साजिश को हम चलने नहीं देंगे.
का. दीपंकर भट्टाचार्य ने नीतीश सरकार की जल-जीवन-हरियाली योजना को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि जिसतरह से नीतीश सरकार का शराबबंदी अभियान हजारों गरीबों को जेल में सताने का बहाना साबित हुआ, यह अभियान भी गरीबों को उजाड़ने का और बेघर करने भर के लिए है जिसे बिहार के गरीब इसे कत्तई मंजूर नहीं करेंगे.
भाकपा(माले) पोलित ब्यूरो सदस्य व अखिल भारतीय खेग्रामस के महासचिव का. धीरेन्द्र झा की अध्यक्षता में आयोजित जनसभा को ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव का. मीना तिवारी, भाकपा(माले) विधायक दल के नेता का. महबूब आलम, विधायक का. सुदामा प्रसाद और इंसाफ मंच के नेता आफताब आलम ने भी संबोधित किया. वक्ताओं ने कहा कि 2010 के आधर पर भी एनपीआर हो समस्या हल नहीं होगी. इसमें भी स्थानीय अधिकारी को किसी भी नागरिक को ‘डाउटफुल’ कहने का अधिकार प्राप्त है. कोई भी व्यक्ति किसी भी नागरिक पर सवाल खड़ा कर सकता है और इसमें भारी भ्रष्टाचार भी होगा. जाहिर है कि दलित-गरीब व अकलियत समुदाय के ही लोग व्यापक पैमाने पर इसके निशाने पर आयेंगे. दूसरी ओर, बिहार में एनपीआर लागू करने का नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है. हम इसे तत्काल वापस लेने की मांग करते हैं.
विधानसभा मार्च से कई प्रस्ताव भी लिए गए. पहले प्रस्ताव में पंचायती राज संस्थाओं व ग्राम सभाओं से सीएए-एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव लेने हेतु अभियान चलाने तथा सीएए-एनपीआर-एनआरसी के खिलाफ संघर्ष जारी रखने,का संकल्प लिया गया. इसके साथ ही एनपीआर और एनआरसी की संपूर्ण प्रक्रिया को खारिज करते हुए बिहार विधानसभा से प्रस्ताव पारित करने, केन्द्र-राज्य सरकारों से दिल्ली में जारी दहशतगर्दी पर रोक लगाने, भाजपा नेता कपिल मिश्रा को गिरफ्तार करने, जल-जीवन-हरियाली योजना के नाम पर गरीबों को उजाड़ने की नोटिस वापस लेने, प्रोन्नति में आरक्षण की गारंटी करने तथा दलित-पिछड़ा आरक्षण पर जारी हमले के मद्देनजर इसकी रक्षा हेतु बिहार विधानसभा से तत्काल प्रस्ताव पारित करने, शांतिपूर्ण आंदोलनों पर हमला करने वालों को दंडित करने, आदि मांगें उठाई गईं. सभा की शुरूआत भोजपुर के जनगायक का. निर्मोही द्वारा स्वरचित गीत के गायन तथा जोशीले नारों के साथ विधानसभा मार्च का समापन हुआ.
खराब मौसम के बावजूद बीसियों हजार लोग पटना पहुंचे, कहा –
एनपीआर रोको नीतीश कुमार!
राज्य के कोने-कोने से पहुंचे प्रदर्शनकारी.
चितकोहरा गोलबंर से गर्दनीबाग तक निकला मार्च,
बुलंद हुई देश के शाहीनबागों की आवाज
विधानसभा में भाकपा(माले) विधायकों के कार्यस्थगन पर नीतीश सरकार ने घुटने टेके,
पारित हुआ प्रस्ताव – नहीं लागू होगा एनआरसी, एनपीआर में होगा सुधार
भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर ने कहा –
लड़ाई जारी रहेगी जब तक वापस नहीं होगा सीएए, एनआरसी और एनपीआर
पंचायती संस्थाओं ग्राम सभाओं से सीएए, एनआरसी, एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने का आह्वान
सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री महोदय,
बिहार
सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ आज दिनांक 25 फरवरी 2020 को आयोजित विधानसभा मार्च में बिहार के कोनेे-कोने से आए हजारों-हजार दलित-गरीब, मजदूर, किसान, छात्र, नौजवान, महिलाएं, अकलियत समुदाय के लोग और न्यायप्रिय नागरिक आपसे मांग करते हैं –