26 फरवरी को जंतर मंतर पर ‘दिल्ली चाहे अमन और शांति’ कार्यक्रम के लिए दिल्ली में सभी वामपंथी पार्टियों तथा अन्य तमाम सामाजिक व नागरिक संगठन एकत्रित हुए. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्रों और बुद्धिजीवियों ने भी हिस्सा लिया. कार्यक्रम में उत्तर पूर्वी दिल्ली में सत्ता प्रायोजित सुनियोजित दंगों को लेकर भारी चिंता जाहिर की गई. कार्यक्रम का संचालन कविता कृष्णन (ऐपवा), ए.आर. सिन्धू (सीटू) और एन्नी राजा (एनएफआईडब्लू) ने किया.
कार्यक्रम में शामिल लोगों का कहना था कि भाजपा द्वारा दंगा कराने की योजना तो दिल्ली के चुनाव में भी दिखलाई पड़ी थी जब इनके केंद्रीय राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर, सांसद प्रवेश वर्मा व अन्य भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा अन्य नेताओं ने भारी जहर उगला था. दिल्ली में प्रायोजित यह दंगा उसी का नतीजा भी है. भाजपा के नेता कपिल मिश्रा जब दिल्ली के आला पुलिस अफसर की मौजूदगी में पूर्वी दिल्ली में सीएए, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में चल रहे शांतिपूर्ण धरनों को खत्म करने की जोरदार धमकी दे रहा था, अगर उसी समय गिरफ्तार कर लिया जाता तो दिल्ली जलने से बच सकती थी.
भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि दिल्ली में पिछले तीन दिनों से जो हिंसा चल रही है उसके माॅडल और पैटर्न को हम जानते हैं. यह हमने पहले 1984 में दिल्ली में देखा और फिर 2002 में गुजरात में. वे कह रहे हैं कि दंगे उकसाए गए हैं. दिल्ली में जेएनयू, जामिया के आंदोलन से लेकर एनआरसी, एनपीए और नागरिकता कानून के खिलाफ जो आंदोलन चल रहा है, वह आज देशव्यापी जन आंदोलन में तब्दील हो गया है. दिल्ली आज देश की राजधानी ही नहीं, जन आंदोलनों की राजधानी भी बन गयी है. इसीलिए दिल्ली में यह दंगा संगठित किया गया है. हमें इन हमलों से आंदोलनों की राजधानी दिल्ली को बचाना है. इन साजिशों को रोकने के लिए हम सब को सामने आना होगा. उन्होंने कहा कि हमारे पास सत्ता की ताकत नहीं है लेकिन हमारे पास संगठन व संकल्प की ताकत है. हमें पीड़ितों के बीच जाकर उनकी मदद करनी होगी. पूरी दिल्ली में जहां-जहां हो सके नागरिकों की स्थानीय सद्भावना समितियां बनाकर बाकी दिल्ली को भी इन दंगों से बचाना होगा. हमें दिल्ली के दंगों के लिये जिम्मेदार कपिल मिश्रा जैसे नेताओं को अविलंब जेल भेजने की लड़ाई लड़नी होगी.
भाकपा(माले) महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि यह हिंसा भाजपा द्वारा दिल्ली के चुनाव के जनादेश को उलटने का प्रयास है. उन्होंने कहा कि हिंसा को फैलने से रोकने तथा समाज में पैदा की जा रही साम्प्रदायिक सड़ांध का प्रतिकार करने के लिये भाकपा(माले) एवं उसका युवा संगठन एवं ट्रेड यूनियन अपनी पूरी ताकत लगाकर प्रयास करेंगे. उन्होंने बताया कि भाकपा(माले) के कई साथियों ने जो दंगा प्रभावित क्षेत्रों में है, नागरिक समितियों के जरिये इन दंगों को रोकने में अपनी भूमिका निभाई हैं.
सीपीआई(एम) के महासचिव सीताराम येचुरी दिलली के दंगाग्रस्त इलाकों में सेना की तैनाती की मांग रखी. सीपीआई के महासचिव डी. राजा ने नफरत भड़काने वाले भाजपा के नेताओं को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए हिंसा पर नियंत्रण कायम करने में नाकामी के लिये केन्द्र सरकार को दोषी ठहराया.
सभा को कई सामाजिक संगठनों, खासकर उन संस्थाओं के सदस्यों ने भी संबोधित किया, जो इन दंगों के बीच रेस्क्यू के काम में लगे थे. कारवां-ए-मोहब्बत के नवशरण ने मेडिकल टीमों, वकीलों, दस्तावेजीकरण की टीमों को सुनिश्चित करने के लिये तथा हिंसा-पीड़ितों का बचाव करने तथा उनको राहत पहुंचाने के लिये नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं द्वारा समूची रात भर चलाये गये प्रयासों के बारे में बताया. वृन्दा ग्रोवर ने कहा कि 1984 में और अब 2020 में दिल्ली पुलिस ने यह साबित कर दिया है कि वह नाकारा नहीं है – उनको ऊपर से आदेश मिले थे कि मुसलमानों को निशाना बनाकर हिंसा करने वाली गिरोहबंद भीड़ की मदद करें. शशिकांत सेन्थिल, जिन्होंने सरकार की साम्प्रदायिक नीतियों के खिलाफ प्रतिवाद में आईएएस से इस्तीफा दे दिया है, राहत प्रयासों में मदद करने के लिये बंगलौर से दिल्ली अये और उन्होंने धरने में मौजूद जनसमूह को सम्बोधित किया. सीपीआई(एम) की वृंदा करात ने अस्पतालों में जाकर घायलों से मिलने के अपने अनुभव को बताया. सैयदा हमीद, गौहर रजा ने अपनी कविताएं सुनाईं, जबकि संगवारी ने शांति, सद्भाव और न्याय का आह्वान करते हुए गीतों की प्रस्तुति की. सैयदा हमीद, गौहर रजा ने अपनी कविताएं सुनाईं, जबकि संगवारी ने शांति, सद्भाव और न्याय का आह्वान करते हुए गीतों की प्रस्तुति की.
धरने में उपस्थित जनसमूह ने कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर एवं तमाम नफरत भड़काने वाले नेताओं की गिरफ्तारी तथा अमित शाह एवं दिल्ली पुलिस प्रमुख से इस्तीफे की मांग की और किसी भी किस्म की हिंसा को तत्काल रोकने, हिंसा पीड़ितों के पुनर्वास तथा मुआवजे की मांग की. वहां यह संकल्प भी लिया गया कि समूची दिल्ली में, अपने-अपने मुहल्लों में, कार्यस्थलों में शांति और सद्भाव कायम करने का पूरा प्रयास किया जायेगा और इस बात को सुनिश्चित किया जायेगा कि अल्पसंख्यक मुसलमान खुद को सुरक्षित महसूस करें और दिल्ली में 1984 तथा 2002 (गुजरात) जैसे दंगे को दुहराने न दिया जाये.