वर्ष - 29
अंक - 7
07-02-2020

संसद में आए एक प्रश्न के जवाब में हाल ही में गृह मंत्री ने बयान दिया है कि अखिल भारतीय स्तर पर एनआरसी की कोई योजना नहीं चल रही है. यह बयान नवंबर 2019 में संसद में दिए गए उनके वक्तव्य का विरोधी है, जब उन्होंने कहा था कि “असम में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर एनआरसी किया गया. एनआरसी पूरे देश में लाया जाएगा, उस समय असम में यह फिर से किया जाएगा, किसी भी धर्म के लोगों को चिंता नहीं करनी चाहिए.”नागरिकता संशोधन कानून और एनआरआइसी-एनपीआर के खिलाफ देशव्यापी उभार के सम्मुख अब सरकार सीएए के बचाव में हताशोन्मत्त होकर संसद और आम अवाम को गुमराह कर रही है कि सीएए का एनआरआइसी और एनपीआर से कोई संबंध नहीं है.

दिसंबर 2019 के अंत में केंद्रीय मंत्रीमंडल ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अद्यतन बनाने के लिए 3,941.35 करोड़ रुपये स्वीकृत किए. एनपीआर-एनआरआइसी-सीएए के समूचे पैकेज में यह एनपीआर सबसे ज्यादा खतरनाक कदम है, क्योंकि इसमें सरकार को किसी भी भारतीय पर ‘संदिग्ध’ नागरिक का ठप्पा लगा कर उसके मताधिकार को छीन लेने की इजाजत मिल जाएगी. असम में, ‘संदिग्ध’ मतदाताओं को डिटेंशन कैंपों में सड़ने भेज दिया गया है.

वाजपेई सरकार ने 2003 में ‘नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए, 2003) पारित कर एनपीआर और एनआरआइसी लागू किया था. सीएए-2003 के नियम 4 के उप-नियम (4) में कहा गया है कि एनआरआइसी तैयार करने के पहले एक कदम के बतौर “जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की वेरिफिकेशन प्रक्रिया के दौरान” किसी तहसीलदार अथवा ‘उप-जिला या तालुक रजिस्ट्रार’ को यह अधिकार होगा कि वह किसी व्यक्ति या परिवार को ‘संदिग्ध’ नागरिक घोषित कर सकता है और इसके लिए उसे कोई कारण या आधार बताने की जरूरत नहीं होगी.

इससे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का दरवाजा खुल जाएगा. और, उससे सरकार को मौका मिल जाएगा कि वह वोटर लिस्ट में शासक पार्टी के अनुकूल कांट-छांट कर सके और विरोधी वोटरों को इस सूची से निकाल बाहर कर सके. सर्वोपरि, इससे सरकार को समूची आबादी को नियंत्रित करने और उसे डराने-धमकाने की इजाजत मिल जाएगी: यूनियन बनाना चाहने वाले किसी श्रमिक को अथवा अपने अधिकार के लिए लड़ने वाले किसी नागरिक को उन्हें ‘संदिग्ध’ नागरिक घोषित करने की धमकी देकर खामोश किया जा सकता है.

एनआरसी को तभी रोका जा सकता है, अगर संसद 2003 के ‘संशोधन’ में मौजूद एनपीआर और एनआरआइसी के प्रावधानों को और ‘नागरिकता कानून’ के नियमों को हटा दे; और अगर एनपीआर की चलाई जा रही प्रक्रिया को फौरन रोक दिया जाए और एनपीआर के तहत इकट्ठा किए गए तमाम आंकड़ों को नष्ट कर दिया जाए.

सरकार ने संसद को यह कहकर भी गुमराह किया है कि “एनआरसी से बाहर रह जाने वालों के लिए ही” असम में कोई डिटेंशन केंद्र नहीं बनाया जा रहा है. सच तो यह है कि गृह मंत्रालय ने असम के गोलपाड़ा में एक नए डिटेंशन केंद्र के निर्माण के लिए 47 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है; जबकि उस राज्य में 6 डिटेंशन केंद्र पहले से ही मौजूद हैं जहां 30 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. इन पुराने डिटेंशन केंद्रों में विदेशी ट्रिब्यूनल ऐक्ट के तहत ‘डी-मतदाता’ (संदिग्ध मतदाता) रहते हैं. जो लोग एनआरसी से बाहर रह जाएंगे, उन्हें भी विदेशी ट्रिब्यूनलों के सम्मुख पेश होना पड़ेगा. अगर ये ट्रिब्यूनल उन्हें नागरिक होने की मान्यता नहीं देंगे तो उन्हें भी गोलपाड़ा में निर्माणाधीन केंद्र समेत इन डिटेंशन केंद्रों में भेज दिया जाएगा.

सरकार एक नया शब्द – ‘होल्डिंग सेंटर’ – का इस्तेमाल कर संसद और जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रही है. अब जो भी शब्द कहा जाए, ये केंद्र बुनियादी तौर पर कंसेंट्रेशन कैंप ही हैं जहां उन लोगों को अनिश्चित काल के लिए किसी सुनवाई के बगैर कैद रखा जाएगा जिनके खिलाफ कोई आरोप या अभियोग नहीं है.

भाकपा(माले) जोर देकर मांग करती है कि सरकार एनपीआर और एनआरआइसी चलाने की अपनी सारी योजना रोक दे तथा अन्य निर्माणाधीन डिटेंशन कैंपों समेत अभी मौजूद तमाम डिटेंशन केंद्रों को बंद कर दे. एनपीआर, एनआरआइसी और डिटेंशन केंद्रों – जो भारतीयों को उनके मताधिकार और मानवाधिकारों से वंचित कर देंगे – पर करदाताओं के लाखों करोड़ रुपये खर्च करने के बजाय सरकार को वह राशि बेहतर स्कूल प्रणाली, उच्च शिक्षा तथा हर भारतीय के लिए स्वास्थ्य सुविधा व रोजगार सुनिश्चित करने पर खर्च करना चाहिए.