वर्ष - 29
अंक - 7
07-02-2020
[यह लेख रवि भूषण ने 2 अक्टूबर 2019 को गांधी जयंती के अवसर पर लिखा था, मगर 30 जनवरी 2020 को गांधीजी की शहादत की वार्षिकी के अवसर पर भी प्रासंगिक व पठनीय है. – सं.]

गांधी की डेढ़ सौ वीं वर्षगांठ के अवसर पर गांधी और उनके हत्यारे नाथूराम विनायक गोडसे (19 मई 1910-15 नवंबर 1949) पर विचार इसलिए आवश्यक है कि गोडसे के प्रशंसकों, समर्थकों और पुजारियों की संख्या बढ़ रही है. 1980 के दशक के अंत से हिंदुत्ववादी विचारधारा के फैलाव और विकास के साथ-साथ केवल सावरकर की ही नहीं, गोडसे भक्तों की संख्या में भी वृद्धि हुई है.

गांधी की हत्या, 30 जनवरी 1948, के अगले दिन नागार्जुन ने ‘तर्पण’ कविता लिखी थी. गोडसे को सिरफिरा और पागल भी कहा जा रहा था. नागार्जुन ने उस समय यह लिखा: ‘जिस बर्बर ने / कत्ल किया तुम्हारा / खून पिता / वह नहीं मराठा हिंदू है / वह नहीं मूर्ख या पागल है / वह प्रहरी है स्थिर स्वार्थों का / वह जागरूक / वह सावधन / वह मानवता का महाशत्रु / वह हिरणकशिपु / वह अहिरावण / वह दशकंधर / वह सहस्त्रबाहु / वह मनुष्यत्व के पूर्णचंद्र का सर्वग्रासी महाराहु’. इतना ही नहीं ‘जो कहते हैं उसको पागल / वह झोंक रहे हैं धूल हमारी आंखों में / वह नहीं चाहते परम क्षुब्ध जनता घर से बाहर निकले / हो जाएं ध्वस्त / इन संप्रदायवादी दैत्यों के विकट खोह.’ गांधी की हत्या के बाद गोडसे को दिल्ली के तुगलक रोड थाने ले जाया गया था जहां उसने अपनी डाॅक्टरी जांच कराने को कहा था कि बाद में सरकार उसे कहीं पागल न घोषित कर दे.

अब, जब गोडसे से जुड़े तमाम तथ्य और कागजात उपलब्ध हैं, तो उनकी प्रशंसा क्यों की जाती है ? गोडसे का सम्मान एक विचारधारा का, निश्चित रूप से ‘हिंदुत्ववादी’ विचारधारा का, सम्मान है. उसके सम्मान में 19 नवंबर 1993 (बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद) दादर, मुंबई के पाटिल माकृति मंदिर में एक बैठक हुई थी जिसमें उसके आह्वान ‘अखंड भारत’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ संबंधी विचार पढ़े गए थे. संस्कृत में पढ़ी गई पंक्तियां श्रोताओं ने दोहराई थीं, मानो वे कोई शपथ ले रहे हैं. उस समय दिए गए भाषणों में गांधी के प्रति घृणा थी और गोडसे की प्रशंसा थी. वहां नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे उपस्थित थे. उस सभा में गांधी हत्या दिवस को उत्सव दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई. गांधी की हत्या को ‘वध’ कहा गया और नाथूराम गोडसे को ‘नेशनल हीरो’ घोषित किया गया.

इसके पहले, 16 मई 1991 को शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने नाथूराम की प्रशंसा की थी और यह कहा था कि गोडसे ने देश को दूसरे विभाजन से बचा लिया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघ चालक (11 मार्च 1994–मार्च 2000) प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया ने गोडसे को ‘अखंड भारत’ के दर्शन से प्रेरित मानकर उसके इरादे को अच्छा और तरीके को गलत कहा था. गोडसे की प्रशंसा का अर्थ गांधी की निंदा है. गोडसे का सम्मान गांधी का अपमान है. जहां तक गांधी के सम्मान का प्रश्न है, वह एक व्यक्ति का सम्मान मात्रा न होकर उस विचार दर्शन और विचारधारा का सम्मान है जिसे हम गांधी दर्शन और गांधी विचारधारा या गांधीवाद के रूप में जानते और स्वीकारते है.

आरएसएस के अंग्रेजी पत्र ‘आर्गनाइजर’ ने 11 जनवरी 1970 के अपने संपादकीय में विभाजन के बाद के गांधी के अनशन को नेहरू के पाकिस्तान समर्थक ‘स्टैंड’ से जोड़ा और गोडसे को जनता के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत किया. इस पत्र के अनुसार गांधी की हत्या ‘जनता के क्रोध की अभिव्यक्ति थी’.

दीनदयाल उपाध्याय ने 1961 में ही यह कहा था कि गांधीजी के प्रति सभी आदरों के बाद हमें उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहना बंद कर देना चाहिए. अगर हम ‘राष्ट्रवाद’ के पुराने आधार को समझते हैं तो यह स्पष्ट होगा कि यह और कुछ नहीं ‘हिंदुइज्म’ है. दीनदयाल उपाध्याय के कथन के 18 वर्ष बाद लालकृष्ण आडवाणी ने गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहने से इनकार किया था. (टाइम्स ऑफ इंडिया, 17 अक्टूबर 1989 का संपादकीय).

गांधी को लेकर संघ परिवार की नीतियां और उसके दृष्टिकोण में सतही रूप से एक भिन्नता दिखाई देती है, पर वस्तुस्थिति इससे भिन्न है. सुषमा स्वराज ने 17 अक्टूबर 1997 को यह कहा था कि महात्मा गांधी पर कांग्रेस पार्टी का एकाधिकार नहीं है. प्रश्न पार्टी विशेष का नहीं, दर्शन और विचारधारा का है. गांधी दर्शन और विचारधारा हिंदुत्ववादियों के दर्शन और उसकी विचारधारा से सर्वथा भिन्न और विपरीत है. 1920 में लंदन के इंडिया हाउस में जब गांधी और सावरकर पहली बार मिले थे, तो सावरकर ने उनके निरामिष होने की यह कहकर आलोचना की थी कि बिना सामिष हुए अंग्रेजों से कैसे लड़ा जा सकता है. सावरकर हिंसा के समर्थक थे और गांधी अहिंसा के.

आरएसएस का जन्म और गठन 27 सितंबर 1925 को हुआ था. एक वर्ष के भीतर मई 1926 में आरएसएस में प्रतिदिन शाखा आरंभ की गई. हेडगेवार ने अपने स्वयंसेवकों को अखड़ा में शामिल होने को प्रोत्साहित किया. अखड़ा, अर्थात व्यायामशाला. 1920 के दशक के मध्य में नागपुर जिले में इसकी संख्या 230 से बढ़कर 570 हो गई थी. कानपुर अखड़ा ने ‘युद्ध कला’ की पढ़ाई आरंभ की थी जो गांधी की अहिंसा के ‘ट्रैजेक्ट्री’ की विरोधी संस्था का एक उपयुक्त फाॅर्म था. (जाॅन जैवोस की पुस्तक ‘द इमरजैंस ऑफ हिन्दू नेशनलिज्म इन इंडिया’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, दिल्ली 2000). दक्षिणपंथी हिंदुत्व एक्टिविस्ट कोएनराॅड एल्स्ट की पुस्तक ‘गांधी एंड गोडसे’ 21वीं सदी में प्रकाशित हुई.

नाथूराम गोडसे का छात्र जीवन से ही आरएसएस से संबंध था. मई 1932 में आर्य समाज आंदोलन ने कराची में एक अखिल भारतीय हिंदू युवा कांफ्रेंस आयोजित किया था और हेडगेवार को आमंत्रित किया था. उस समय हेडगेवार के साथ नाथूराम गोडसे उपस्थित था. सावरकर की रानगिरि जेल से मुक्ति के बाद गोडसे का उनके घर पर शाम के समय लगभग हमेशा जाना होता था. जुलाई 1938 में गोडसे ने सावरकर को अपने पत्र में लिखा था कि पूरे हिंदुस्तान में हिंदुओं को एक करने वाली संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है जहां एकमात्र नेता डाॅक्टर हेडगेवार हैं जो आप के समकक्ष हैं.

गोडसे का आरएसएस से संबंध 30 के दशक के आरंभिक वर्षों से था. सात्यकी गोडसे ने ‘इकोनाॅमिक टाइम्स’ को दिए अपने एक इंटरव्यू में यह कहा था ‘नाथूराम जब सांगली में थे तब उन्होंने 1932 में आरएसएस ज्वाइन किया था. वह जब तक जिंदा रहे तब तक संघ के बौद्धिक कार्यवाह बने रहे. उन्होंने न तो कभी संगठन छोड़ा था और न कभी उन्हें निकाला गया था. 1940 के दशक में आरएसएस में गोपनीयता थी जिससे यह पता नहीं लग सकता कि उस समय संघ का सदस्य कौन था. नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने अरविंद राजगोपाल को दिए एक इंटरव्यू में यह कहा था कि वे सभी भाई आरएसएस में थे – नाथूराम, दत्तात्रेय, वे स्वयं और गोविंद. हम आरएसएस में सयाने हुए अपने घरों से अध्कि. (फ्रंटलाइन, 28 जनवरी 1994).

गांधी की हत्या के बाद आरएसएस ने गोडसे की सदस्यता से इनकार किया. सावरकर के हिंदू महासभा के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र के बाद (1944) गोडसे ने ‘हिंदू राष्ट्र’ पत्र का प्रकाशन आरंभ किया था जिसके ‘मास्ट हेड’ पर सावरकर का चित्रा था. इसे सावरकर पैम्फलेट भी कहा गया था.

1937 में प्रांतीय सरकारों के गठन और 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ के समय सावरकर ने ‘हिंदुओं के सैन्यीकरण’ के ‘आइडिया’ का आरंभ किया और ब्रिटिश सेना में देश के युवाओं को शामिल होने की अनुशंसा की. गोलवलकर ने जब आरएसएस की सैन्य शाखा को बंद करने का आदेश दिया था और जब अन्य हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा सैन्यीकरण की अनेक योजनाओं को सहयोग देने से इनकार किया गया तब गोडसे ने इसका कड़ा विरोध किया था. गांधी की हत्या के बाद 1 फरवरी 1948 को गोलवलकर हिंदू महासभा के नेताओं के साथ गिरफ्तार किए गए थे और 4 फरवरी 1948 को भारत सरकार ने आरएसएस को प्रतिबंधित किया था. दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि समय से गोलवलकर को गिरफ्तार किया गया होता, तो गांधी की हत्या नहीं होती.

31 जनवरी 1948 को हिंदू अखबार की एक रिपोर्ट के अनुसार भीड़ ने गोडसे को पीटा था. वह थोड़ा घायल भी हुआ था. 27 मई 1948 से गांधी की हत्या का ट्रायल आरंभ हुआ और 10 फरवरी 1949 को समाप्त हुआ. अब गोडसे का 8 नवंबर 1948 का अंतिम वक्तव्य (अभियुक्त क्रमांक 1 का वक्तव्य) उपलब्ध है. नाथूराम गोडसे के भाई और सह अभियुक्त गोपाल गोडसे की पुस्तक ‘गांधी वध क्यों?’ में जो तर्क और कारण प्रस्तुत किए गए हैं उनकी काफी आलोचना हो चुकी है. अपने वक्तव्य में गोडसे ने कहा है: ‘वीर सावरकर और गांधी जी ने जो लिखा है या बोला है उसे मैंने गंभीरता से पढ़ा है. पिछले 30 सालों के दौरान इन दोनों ने भारतीय लोगों के विचार और कार्य पर जितना असर डाला है उतना किसी और चीज ने नहीं. ... मेरा पहला दायित्व हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए है.... 32 सालों तक विचारों में उत्तेजना भरने वाले गांधी ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा, तो मैं इस नतीजे पर पहुंच गया कि गांधी के अस्तित्व को तुरंत खत्म करना होगा.’

गोडसे की विचारधारा आरएसएस की विचारधारा थी. वह सावरकर और गोलवलकर की विचारधारा थी. उसने गांधी की अहिंसा नीति पर प्रहार किया. उसके अनुसार अहिंसा अर्थात नपुंसकत्व देश को नष्ट कर देगी. उसने स्वीकार किया कि 28 फरवरी 1935 को सावरकर के नाम उसने जो पत्र लिखा था, उसमें व्यक्त विचार आज भी 1948 में उसके विचार हैं. अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने 2003 में कापफी विरोध के बाद भी संसद में सावरकर का चित्र गांधी के सम्मुख लगवाया. गोडसे को कमल हासन ने ‘आजाद भारत का पहला आतंकी’ कहा और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने उसे ‘सच्चा देशभक्त’ बताया. भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने भी गोडसे को ‘देशभक्त’ कहा था. गांधी हत्या के ‘ट्रायल’ में सावरकर ने गोडसे को अस्वीकृत किया था और गोडसे ने सावरकर की लिप्तता नहीं मानी थी. सावरकर का मशहूर नारा था ‘राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुत्व का सैनिकीकारण’.

गांधी की हत्या की पांच कोशिशें हुई थीं – 1934 में हिंदुत्व के गढ़ पुणे में, 1944 में पुणे के नजदीक पंचगनी और वर्ध के सेवाग्राम में, 1946 में मुंबई से पुणे जाने वाली ट्रेन में और अंत में दिल्ली में और वह भी प्रार्थना सभा में – 30 जनवरी 1948 को, जहां नाथूराम गोडसे ने अपनी सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल से गांधी पर 3 गोलियां दाग कर उनकी हत्या कर दी. उस समय गांधी बिड़ला भवन में शाम की प्रार्थना सभा से उठ रहे थे. 8 नवंबर 1949 को गोडसे को मृत्युदंड दिया गया और 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में उसे फांसी दी गई. गोडसे को लेकर संघ परिवार और भाजपा में कोई भ्रम नहीं है. गांधी का विचार गोडसे को मंजूर नहीं था. उनकी हत्या की गई. संघ की विचारधारा और गांधी की विचारधारा दो छोरों पर है – एक दूसरे के सर्वथा विपरीत. ‘हिंदू राष्ट्र’ का हीरो सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर और गोडसे बनेंगे. प्रज्ञा ठाकुर बाद में मुकरी, पर उन्होंने कहा था: ‘नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, देशभक्त हैं और देशभक्त रहेंगे’. मध्य प्रदेश की भाजपा विधायक उषा ठाकुर ने गोडसे को राष्ट्रवादी बताया. अब गोडसे की मूर्ति लग रही है. उसके नाम पर गोडसे चौक भी बन रहा है. गोडसे का जन्मदिन मनाया जा रहा है. भारतीय जनमानस में गोडसे को बैठाया जा रहा है. गोडसे भक्तों की संख्या बढ़ रही है. गोडसे के हिंदुत्व और गांधी के हिंदू दर्शन में विरोध है.

गांधी की डेढ़ सौवीं वर्षगांठ पर यह तय करना होगा कि ‘न्यू इंडिया’ में हमारे लिए कौन प्रमुख है – गांधी या गोडसे? गांधी का नाम-जाप एक छल है. गांधी की हत्या के तुरंत बाद नागार्जुन ने ‘तर्पण’ और ‘शपथ’ कविता लिखी थी. ‘शपथ’ कविता में उन्होंने कहा – ‘हृदय नहीं परिवर्तित होगा ! क्रूर, कुटिलमती चाणक्यों का / नहीं-नहीं, कभी नहीं.../ दुबक गए हैं आज, किंतु कल फिर निकलेंगे / कहां नहीं है कोटर इनका ! कहां न इनका जाल बिछा है...! / संप्रदायवादी दैत्यों के विकट खोह / जब तक खंडहर न बनेंगे / तब तक मैं इनके खिलाफ लिखता जाऊंगा ! लौह-लेखनी कभी विराम न लेगी.’