31 जनवरी 2020 को पटना के भारतीय नृत्य कला मंदिर के मुक्ताकाश मंच में भाकपाद्धमाले) व इंसाफ मंच की ओर से सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ बिहार विधान सभा से प्रस्ताव पारित करवाने की मांग पर एक बड़ा जन सम्मेलन आयोजित किया गया. जन सम्मेलन में बोलते हुए माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि अपने नागरिकों को अवैध मानने वाली सरकार ही अवैध है, और सबसे पहले उसे अपनी गद्दी छोड़नी चाहिए. ये काले कानून न केवल अल्पसंख्यकों के खिलाफ हैं बल्कि गरीबों, मजदूरों, किसानों व देश की व्यापक जनता के खिलाफ हैं. अब समय आ गया है कि सीएए-एनआरसी-एनपीआर के जाल और बेरोजगारी-आर्थिक मंदी-संसाधनों के निजीकरण के खिलाफ हमें व्यापक लड़ाई छेड़ देनी है. देश के गांव-कस्बों को शाहीन बाग बना देना है और भाजपा-आरएसएस के झूठ का पर्दाफाश करना है.
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि एनआरसी के बदनाम होने के बाद एनपीआर की चर्चा हो रही है. लेकिन हम किसी मुगालते में नहीं हैं. दरअसल असम के अनुभव के बाद सरकार अब नया खेल खेल रही है. सब लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाने की बजाय अब वह एनपीआर में कुछ लोगों को चिन्हित करेगी और उसे ‘डाउटफुल सिटिजन’ (संदिग्ध नागरिक) की सूची में डालेगी. जाहिर सी बात है कि इसकी मार और किसी पर नहीं बल्कि दलितों-गरीबों, मजदूर-किसानों, अल्पसंख्यकों और भाजपा के राजनीतिक विरोधियों पर पड़ेगी. नीतीश जी एनपीआर पर झूठ बोल रहे हैं. यदि उन्हें उससे आपत्ति थी तो फिर इसको लागू करने का नोटिफिकेशन क्यों जारी किया? हम केरल व अन्य राज्यों की तर्ज पर बिहार विधान सभा से सीएए-एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव पास करने की मांग करते हैं. उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि 25 फरवरी को हजारों की संख्या में पटना पहुंचकर इसके लिए सरकार को मजबूर कर दीजिए.
उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा-आरएसएस के लोग यह प्रचारित कर रहे हैं कि यह आंदोलन तो मुसलमानों का है, यह आंदेालन तो शहरों का है. वे यह भी झूठ फैला रहे हैं कि हिन्दुओं को डरने की क्या जरूरत है? लेकिन अकेले असम में बिहार के 56 हजार प्रवासी मजदूरों की नागरिकता खत्म कर दी गई. यदि पूरे देश में यह लागू हुआ तो करोड़ों लोग नागरिकताविहीन हो जाएंगे. और असम का अनुभव बताता है कि इसकी जद में क्या हिंदू, क्या मुसलमान, सब के सब आएंगे. तो फिर यह कानून नागरिकता देने वाला कानून कैसे हुआ? यह गणित अमित शाह को समझाना होगा. भूगोल भी समझाना होगा कि बंगाल, बिहार, झारखंड, यूपी इन तमाम राज्यों के गरीबों का जीवन संकट में पड़ जाएगा, नागरिकता खोने वाले लोग कैसे साबित करेंगे कि वे देश के बाहर से आए हैं.
माले महासचिव के संबोधन के पूर्व माले व इंसाफ मंच तथा पटना शहर के कई जाने-माने बुद्धिजीवियों ने भी जनएकता सम्मेलन को संबोधित किया. सामाजिक कार्यकर्ता अरशद अजमल ने अपने संबोधन में कहा कि भाकपा(माले) से बिहार की जनता को यही उम्मीद है. इन काले कानूनों के खिलाफ व्यापक एकता का निर्माण आज हम सबकी आवश्यकता है. गांव से लेकर शहर तक सभी वर्ग, धर्म व जाति के लोगों को मिलकर यह लड़ाई लड़नी होगी; तभी हम देश, अपनी नागरिकता व संविधान बचा सकते हैं.
उनके अलावा जनएकता सम्मेलन को पीयूसीएल के सरफराज ने भी संबोधित किया. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि यह एक लंबी लड़ाई है, लेकिन इसे लड़ना है और जीतना है. सम्मेलन को संबोधित करने वालों में ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा, इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल, आइसा के राष्ट्रीय महासचिव संदीप सौरभ, आइसा के राज्य अध्यक्ष मोख्तार, इंसाफ मंच के कयामुद्दीन अंसारी, माले की केंद्रीय कमेटी के सदस्य राजू यादव, विधायक सुदामा प्रसाद, इंसाफ मंच के आफताब आलम, समनपुरा सत्याग्रह के प्रतिनिधि हारुन साहब, हारुन नगर (फुलवारीशरीफ) के शहनवाज कैसर, खगौल सत्याग्रह के फरहत जहां व आदम परवेज आदि ने संबोधित किया.
इस मौके पर कोरस के लोगों ने नागरिकता कानून के खिलाफ बने नाटक का मंचन किया. हिरावल के कलाकारों ने फैज अहमद ‘फैज’ की नज्म प्रस्तुत की.
जनसम्मेलन में नागरिकता संशोधन कानून व एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ जगह-जगह पोस्टर लगाए गए थे और शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई थी. सम्मेलन में माले राज्य सचिव कुणाल, पोलितब्यूरो स्वेदश भट्टाचार्य, कार्तिक पाल, राजाराम सिंह, सरोज चौबे, शशि यादव, रामेश्वर प्रसाद आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन इंसाफ मंच के सूरज कुमार सिंह ने किया.
– कुमार परवेज