हमारी कोशिश है कि प्रगतिशील और क्रांतिकारी संगठन और पार्टियां पितृसत्ता, जेंडर आधारित उत्पीड़न और हर तरह के उत्पीड़न से संघर्ष करने और उन्हें खत्म करने की सामूहिक जिम्मेदारी लें. इसके लिए जरूरी है कि संगठन के भीतर जेंडर और अन्य तरह के उत्पीड़न और हिंसा के लिए सामूहिक जवाबदेही के सिद्धांतों और प्रक्रियाओं को मजबूत करें. हमारे समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक आचरण और सोच हमारे साथियों और संगठन के भीतर भी जड़ जमा लेते हैं. इन सीखे हुए आचरणों और सोचने के तरीकों को बदलने की सचेत कोशिशों की जरूरत है.
जेंडर उत्पीड़न और भेदभाव महिलाओं के खिलाफ होता है, बच्चों के खिलाफ होता है जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं, और समलैंगिक और ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ भी हो सकता है. ऐसा उत्पीड़न कौन करता है? करने वाले ज्यादातर पुरुष हैं, पर इस में महिलाएं भी शामिल हो सकती हैं.
उत्पीड़न में क्या क्या शामिल है?
- यौन उत्पीड़न, यौन हिंसा, और बलात्कार;
- घरेलू हिंसा – जो कि शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हो सकता है;
- बलात्कार की संस्कृति – यानी यौन उत्पीड़न और हिंसा के लिए बहाने बनाने की या इसके लिए महिलाओं को ही दोषी ठहराने की संस्कृति को बढ़ावा देना;
- महिलाओं को उनके काम के बजाय उनके निजी जीवन, प्रेम प्रसंगों, कपड़े, चाल-चलन, ‘चरित्र’ आदि की पितृसत्तात्मक व्याख्या के आधार पर मापना;
- लड़कियों और महिलाओं पर नैतिक पहरेदारी करना और उनके निजी जीवन में हस्तक्षेप करने की कोशिश करना इत्यादि;
- पुरुषों को और पुरुषों के काम को ज्यादा बढ़ावा देना;
- महिलाओं को नेतृत्व के पदों से और कार्यक्रमों में प्रमुखता के स्थानों से वंचित रखना;
- महिला विरोधी सोच, गालियों, चुटकुलों, पूर्वाग्रहों आदि को बढ़ावा देना इत्यादि.
जेंडर उत्पीड़न को बनाए रखने के कई हथियार हैं जिन्हें पहचानना जरूरी है
पहला है ऐसे उत्पीड़न के अस्तित्व से ही इनकार करना. ऐसे इंकार को हम कैसे पहचानें?
- उत्पीड़न की घटनाओं पर चुप रहना या उन्हें नजरअंदाज करना;
- यौन उत्पीड़न के या जेंडर उत्पीड़न के सवालों को निजी हरकतें मानना और इसके लिए सामूहिक जिम्मेदारी और समाधान की जरूरत से इनकार करना;
- यह कहना कि कम्युनिस्ट आंदोलन में तो महिला विरोधी संस्कृति या बलात्कार की संस्कृति हो ही नहीं सकता;
- इन सवालों को उठाने वालों को बुर्जुआ, नारीवादी, पागल, आंदोलन को बांटने वाली आदि कहना.
दूसरा है जेंडर उत्पीड़न को हल्का करना और इसकी गंभीरता को मानने से बचना
- जेंडर उत्पीड़न की घटनाओं को गलतफहमी कह कर टाल देना;
- यौन उत्पीडन को प्यार का तरीका कहकर टाल देना;
- घरेलू हिंसा को आपसी झगड़ा कह कर टाल देना या यह कह कर मजाक उड़ाना कि घरेलू झगड़ों में हाथ डालना बड़ा खतरनाक होता है, महिला खुद ही अपने पति का साथ देकर आपके खिलाफ हो जाएगी;
- यौन उत्पीड़न को छोटी सी भूल-चूक बताना, दोषी साथी के बजाय दारू पीने की आदत को, या अंडरग्राउंड जीवन की कठिनाइयों को जिम्मेदार ठहराना;
- दारू पीने, शादी ना होने, पत्नी से दूर रहने आदि को यौन उत्पीड़न या हिंसा का बहाना बताना;
- जेंडर उत्पीड़न के खिलाफ जब भी ठोस काम करने की बारी आती है तो यह कहना कि यह असली और ज्यादा जरूरी काम से समय चुरा रहा है;
- इस उम्मीद में इंतजार करना कि या तो समस्या चली जाएगी या जो लोग इन सवालों को उठा रहे हैं या उसकी वजह हैं, वे खुद चले जाएंगे;
- ऐसे सवालों को जानबूझकर कमजोर तरीके से डील करना.
तीसरा है पीड़ित को ही दोष देना यानी पीड़ित और उसका साथ देने वालों पर ही दोष मढ़ना
- यौन उत्पीड़न या हिंसा की बातों को उठाने वाली महिलाओं और लोगों पर बुर्जुआ, मध्यवर्गीय, नारीवादी, चालू, लिंच माॅब, आदि कहना;
- यौन उत्पीड़न के लिए लड़कियों और महिलाओं के पहनावे, चाल चलन इत्यादि को जिम्मेदार ठहराना;
- यौन उत्पीड़न के लिए बहाने खोजना, जैसे – ‘वो शहरी लड़की थी और ग्रामीण परिवेश के लड़के का उसके साथ ऐसा करना स्वाभाविक था’, ‘लड़की ने ही कुछ गलत किया होगा, उसको बढ़ावा दिया होगा’ वगैरह;
- यह कहना कि ‘लड़की को देखकर नहीं लगता कि उसके साथ बलात्कार हुआ होगा, वह तो मुस्कुरा रही है’ इत्यादि;
- ‘वो चिल्लाई क्यों नहीं, उसने और उसने जोर से ना क्यों नहीं बोला, अगर वह लड़ी होती तब तो उसे चोट आया होता’ आदि कहना;
- आरोपी को ही पीड़ित बताना – यानी यौन उत्पीड़न या घरेलू हिंसा करने वालों को ‘अच्छे लोग’, ‘हमारे काम के लिए आरोप लगाने वाली से ज्यादा जरूरी’ बताना. या यह कहना कि हम उसे जानते हैं, वह ऐसा कर ही नहीं सकते. या यह कहना कि उन्होंने पार्टी में काम करने के लिए अपना पारिवारिक जीवन त्याग दिया है और इसलिए उनके द्वारा यौन हिंसा को माफ किया जाना चाहिए;
- जब आरोपी उत्पीड़ित समुदाय का हो तब आरोप लगाने वालों के बारे में यह कहना कि वे तो सांप्रदायिक भेदभाव, दलित विरोधी भेदभाव आदि कर रहे हैं.
चौथा है दोषी के बचाव में माहौल संगठित करना, यानि असली दुश्मनों से लड़ने के लिए लोगों को संगठित करने के तरीकों का जेंडर उत्पीड़न के सवालों को उठाने वालों के खिलाफ ही इस्तेमाल करना.
- पीड़ित या उसके साथ देने वालों के बारे में अफवाह फैलाना, पितृसत्तात्मक गपशप करना, उन्हें पागल कहना, उन्हें पार्टी विरोधी कहना इत्यादि;
- पीड़ित के खिलाफ किसी न किसी बहाने कार्रवाई करना या आरोप लगाना;
- अपनी ही जवाबदेही से बचने के लिए दूसरों पर आरोप लगाना;
- जांच करने या न्याय के लिए काम करने वाले साथियों या संस्थाओं, जैसे कन्ट्रोल कमीशन, का मजाक उड़ाना, उसके सम्मान, मान्यता या महिमा को कमजोर करना, इसे बेकार और रिटायर्ड लोगों के लिए शरण की जगह बताना, इत्यादि.
जवाबदेही
हमारे जैसे संगठन में जेंडर उत्पीड़न के मामलों में जवाबदेही सबसे बड़ी चीज है – दोषी की अपनी जवाबदेही और संगठन की भी जवाबदेही. पर जवाबदेही से बचने के कई तरीके हैं जिन्हें पहचानना और जिनके प्रति सतर्क रहना जरूरी है.
- ऐसी लड़की या महिला को उत्पीड़ित करना जिसके बारे में दोषी को लगता है कि वह किसी को बता नहीं पाएगी या खुद को ही उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार समझेंगी, जैसे काफी कम उम्र की लड़की, गरीब परिवार का बच्चा या लड़की, संगठन में नई-नई आई हुई लड़कियां या महिलाएं;
- पीड़ित को धमकी देकर चुप करवाना, जैसे बदनामी की धमकी, माता पिता को बताने की धमकी आदि;
- यह कहना कि ‘इतनी जरा-सी चीज को उत्पीड़न कहते हैं, यह हमको पता ही नहीं था’, ‘मेरा उत्पीड़न का इरादा नहीं था’, ‘दोबारा नहीं होगा’, ‘मैं तो महिलाओं की बहुत इज्जत करता हूं, मैं तो नारीवादी हूं, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं’ वगैरह;
- पीड़ित के बारे में शक पैदा करना – ‘उसने मुझे उत्तेजित किया’, ‘उसने ना नहीं कहा इसलिए मुझे लगा कि वह सहमत है’, ‘उससे तो मुझे अब भी दोस्ती है, अगर ऐसा हुआ होता तो उसने मुझसे दोस्ती तोड़ दी होती’ आदि;
- यह कहना कि ‘मैंने तो एक बार चूम कर या छूकर कोशिश ही तो किया, इसमें गलत क्या है’
- बच्चों के साथ यौन हिंसा के मामलों में यह कहना कि ‘मैं तो इसके पिता समान हूं, वह तो मेरी बेटी है, वह तो मेरी बहन है, उसने गलत समझा होगा’ इत्यादि;
- खुद को ही पीड़ित बताना, आरोप को अपने खिलाफ साजिश बताना या जातिवाद, सांप्रदायिकता, वर्ग दुश्मनी, निजी दुश्मनी, गुटबाजी आदि से प्रेरित बताना;
- माफी मांगना – और उसके बाद कहना कि मैंने तो माफी मांग ली, गलती मान ली, इसके बाद भी यह मामला खत्म क्यों नहीं हो रहा?
जवाबदेही स्वीकार करने के लिए पहला कदम है गलती मानना और माफी मांगना. पर माफी मांगने के ऐसे भी तरीके हैं जिससे जवाबदेही से साफ बचा जा सके. इन्हें भी पहचानना जरूरी है.
माफी कैसे न मांगें
- ‘मैंने तो कोई गलती की ही नहीं, पर अगर उस महिला को कोई ठेस पहुंची है तो मैं माफी मांगने को तैयार हूं’
- ‘पार्टी अगर चाहती है तो मैं माफी मांग लूंगा, सजा भी स्वीकार कर लूंगा, पर मैंने कोई गलती की नहीं है’
- रोना, आंसू बहाना, बेचारगी जताना – गलती मानकर अफसोस महसूस करते हुए नहीं, बल्कि लोगों में अपने प्रति संवेदना पैदा करने के लिए और जवाबदेही से बचने के लिए;
- आम तरीके से गलत आदतों को मानना और अपने आचरण को सुधारने की बात कहना पर अपने ऊपर लगे खास आरोप को स्वीकारने से बचना, ताकि अपनी ठोस गलती के लिए ठोस जवाबदेही ना लेना पड़े;
यौन उत्पीडन और जेंडर उत्पीड़न के लिए माफी मांगने का सही तरीका क्या है?
- एक अच्छी माफी स्पेसिफिक होती है – यानी वह ठोस जुर्म को कबूल करता है. ‘अगर आप की संवेदनाओं को ठेस पहुंचा/ अगर आपको खराब लगा’, ‘मेरा इरादा नहीं था पर अगर आपने उसे ऐसा समझा तो’ और किसी भी तरह के अगर-मगर के बिना अपनी गलती/अपने ऊपर लगे आरोप को ठोस शब्दों में स्वीकार करना चाहिए.
- माफी में अपनी गलती से पीड़ित को पहुंची चोट और पीड़ा की विस्तृत समझदारी झलकनी चाहिए.
- उस चोट और पीड़ा के लिए दोषी की अपनी निजी जिम्मेदारी का एहसास झलकना चाहिए – बिना किसी ना नुकुर या अगर-मगर के.
- दोषियों का अफसोस झलकना चाहिए.
- दोषी को माफी में विस्तार से बताना चाहिए कि वह कौन-कौन सी आदतें या हरकते हैं जिन्हें उन्होंने आगे से रोकने का वादा किया है.
- पीड़ित और संगठन को पहुंची चोट के लिए वे कैसे क्षतिपूर्ति करेंगे, यह भी बताना चाहिए.
पीड़ित की मदद हमें कैसे करनी चाहिए?
- उसे याद दिलाना चाहिए कि उस घटना के लिए वह खुद जिम्मेदार बिल्कुल भी नहीं है. बल्कि दोषी की जिम्मेदारी, पितृसत्तात्मक व्यवस्था की भूमिका और संगठन की जवाबदेही के बारे में बताना चाहिए.
- उनकी अपनी सुरक्षा और सदमे से उबरने के लिए उन्हें क्या जरूरत है, उसे तलाशने में उनकी मदद करनी चाहिए. यहां याद रखें कि ‘घटना छोटी है’ इसलिए इसमें सदमा महसूस नहीं होना चाहिए, ऐसा कभी नहीं मानना या कहना चाहिए.
- जवाबदेही और क्षतिपूर्ति की उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए उनकी क्या-क्या जरूरत है, यह उनसे पूछा जाना चाहिए.
- दोषी को जवाबदेह ठहराने की प्रक्रिया में क्या पीड़ित कोई भूमिका चाहती है? अगर हां, तो कैसी भूमिका और कितनी भूमिका?
- पीड़ित को महसूस कराया जाना चाहिए कि घटना के बाद लिए जाने वाले निर्णय के ऊपर उसका कुछ नियंत्रण है. जैसे, क्या वह पुलिस के पास जाना चाहती है, या संगठन के भीतर ही कार्रवाई चाहती है, या दोनों ही चाहती है?
- पीड़ित को न्याय की प्रक्रिया के बारे में समय-समय पर अपडेट और जानकारी दी जानी चाहिए. उनकी शिकायत के बाद लंबे समय तक चुप्पी उनकी परेशानी और पीड़ा को बढ़ा देगा.
- दोषी की जवाबदेही के साथ-साथ संबंधित जन संगठन या पार्टी कमेटी को भी जरूरत पड़ने पर अपनी गलतियों को ठोस तरीके से स्वीकार करना चाहिए, ठोस गलतियों के लिए माफी मांगनी चाहिए और आगे से ऐसी गलतियां न हों, उसके लिए ठोस रास्ता बताना चाहिए. गलतियों में शिकायत को नजरअंदाज करना, शिकायत को सुनकर अनसुना कर देना, घटना की जानकारी होते हुए भी इस बहाने कुछ न करना कि पीड़ित ने तो शिकायत की ही नहीं, शिकायत पर कार्रवाई करने में अत्यधिक देरी करना, आदि शामिल हैं.
दोषी अगर हमारा साथी हो तो उन्हें जवाबदेही स्वीकार करने में हम क्या मदद कर सकते हैं?
- उन्हें पूरी जवाबदेही लेने के लिए प्रेरित करें. उनसे कहें कि बिना शर्त गलती मानो, चाहे इसकी जो भी सजा हो, जो भी नतीजा हो, उसे पूरी तरह से स्वीकार करो, चाहे वह संगठन के भीतर सजा हो चाहे पुलिस द्वारा कार्रवाई या जेल ही क्यों न हो.
- पूरे घटनाक्रम में खुद को पीड़ित समझने के बजाय, अपने द्वारा पीड़ित महिला पर और संगठन पर अपने करतूतों का असर समझने और स्वीकार करने में मदद करें.
- यह समझाइए कि दोषी होते हुए जवाबदेही से बचना, पीड़ित की पीड़ा को और संगठन को हो रहे नुकसान को बढ़ा देता है.
- उनसे कहिए कि हम आपको जवाबदेही स्वीकार करने में मदद करेंगे, न कि जवाबदेही को कम करने या उससे बचने में.
- दोषी साथी को सुधरने और उत्पीड़न / भेदभाव के चरित्र को समझने और अपना प्रगतिशील रूपांतरण करने में मदद करें.
- जहां संगठन/कमेटी की तरफ से गलती हो, वहां भी रूपांतरण की दिशा में ठोस कदम तय होने चाहिए, जैसे सामूहिक जिम्मेदारी को बिना लाग-लपेट और बहानेबाजी के स्वीकार करना, और जेंडर और पितृसत्ता के बारे में नेताओं और सभी सदस्यों को संवेदनशील और शिक्षित करने की समयबद्ध कोशिश करना.