नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) व एनआरसी के विरुद्ध 19 व 20 दिसंबर को लखनऊ, बनारस, कानपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ आदि समेत उत्तर प्रदेश के कई शहरों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. जामिया मिल्लिया से लेकर अलीगढ़, बनारस व लखनऊ विश्वविद्यालयों के छात्र व युवा बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे और पुलिसिया दमन का मुकाबला किया. इन प्रदर्शनों पर पुलिस द्वारा चलाई गई लाठी-गोली से लगभग डेढ़ दर्जन प्रदर्शनकारी मारे गए. आधिकारिक तौर पर यूपी पुलिस के मुखिया ने कहीं भी ‘पुलिस द्वारा एक भी बुलेट नहीं चलाने’ की बात कही, लेकिन इन प्रदर्शनों के बाद उपलब्ध हुए वीडियो से उनका झूठ पकड़ा गया. बिजनौर, जहां दो प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है, के पुलिस अधीक्षक ने स्वीकार किया कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी.
सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को योगी सरकार ने जेल में डाल दिया है और उन पर संगीन धाराएं लगा दी हैं. इनमें छात्र, राजनीतिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता, सिविल सोसाइटी (नागरिक समाज) के लोग, संस्कृतिकर्मी, महिलाएं व अल्पसंख्यक समुदाय के लोग शामिल हैं. राजधानी लखनऊ में रिहाई मंच के अध्यक्ष व अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब, पूर्व पुलिस आईजी व समाजसेवी एसआर दारापुरी, रंगमंच से जुड़े दीपक कबीर, सहायक प्रोफेसर रोबिन वर्मा, फिल्म व मीडिया से जुड़ीं सदफ जफर समेत कइयों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. इनमें से कुछेक की पुलिस द्वारा पिटाई भी की गई है. मैग्सेसे पुरस्कार विजेता व प्रसिद्ध गांधीवादी संदीप पांडेय को लखनऊ में उनके घर पर एक दिन पहले से ही नजरबंद कर दिया गया. इनके अलावा ‘द हिंदू’ अखबार के लखनऊ संवाददाता उमर रशीद को भी, जो संयोगवश अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं, पुलिस द्वारा उठा लिया गया. पुलिस हिरासत में उनके साथ बदसलूकी की गई और उसके बाद ही रिहा किया गया. अरूंधती धुरू, मीरा संघमित्रा, माधवी कुकरेजा आदि सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी हजरतगंज पुलिस थाने में घंटों बंद रखा गया.
बनारस में शांतिपूर्ण प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे भाकपा(माले) केंद्रीय कमिटी के सदस्य का. मनीष शर्मा और आइसा कार्यकर्ताओं राजेश, विवेक, विक्रम और आशुतोष समेत अन्य वाम दलों व संगठनों के करीब छह दर्जन लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. वहां जेल भेजे गए लोगों में ब्लू पैंथर्स के नेता डाॅ सुशील गौतम और एसटी-एससी फोरम के कई अन्य नेता शामिल हैं. एकता शेखर को भी, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और शांतिपूर्ण प्रतिवाद में भाग ले रही थी और 14 महीने की एक बच्ची की मां हैं तथा उनके पति रवि शेखर को भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया है. इलाहाबाद में इनौस और आइसा के दो नेताओं को भी 19 दिसंबर की सुबह ही गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन शाम को उन्हें छोड़ दिया गया. कानपुर, मुजफ्फरनगर और मेरठ में भी भारी पुलिस दमन हुआ है. गिरफ्तार लोगों की न्यायिक प्रक्रिया से रिहाई में भी पुलिस अड़ंगे लगा रही है और न्यायालय में दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा रही है. यही नहीं, खुद मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी ने प्रदर्शनकारियों से बदला लेने की बात कही है. प्रशासन ने जगह-जगह आंदोलन में भाग लेने वालों की सूची बनाने, धर-पकड व छापे मारने की कार्रवाई शुरू कर दी है. आंदोलनकारियों की तस्वीरों का पोस्टर बनाकर चौक-चौराहों पर लगाने और उनकी सूचना देने वाले को नगद इनाम देने की घोषणा की जा रही है. गिरफ्तार लोगों के नाम-पते से घरवालों को नोटिस भेजी जा रही है कि वे इस बात का जवाब संबंधित एडीएम की कोर्ट में आकर दें कि क्यों न उनसे सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई वसूली जाये और उनकी कुर्की-जब्ती की जाये. योगी प्रशासन प्रदर्शनकारियों पर रासुका लगाने और प्रदर्शनों में भाग लेने वाले कई संगठनों व व्यक्तियों के आतंकवादी कनेक्शन दिखाने की कवायद में भी मुस्तैदी से जुट गया है. लखनऊ समेत कई जिलों में इंटरनेट छह-छह दिनों तक बंद रहा और धारा 144 तो प्रदेश भर में जारी है.
विभिन्न लोकतांत्रिक समूहों में योगी सरकार के इस दमन नीति की जमकर निंदा हो रही है. बीएचयू के दर्जनों अध्यापकों ने हस्ताक्षरयुक्त अपील जारी कर इसकी भर्त्सना की. भाकपा, माकपा, भाकपा(माले) व अन्य वाम दलों के नेताओं ने पिछले दिनों बनारस में एक संयुक्त बैठक आयोजित कर इस दमन के विरोध में और प्रदर्शनकारियों की रिहाई के लिए आगामी 30 दिसंबर को राज्यव्यापी प्रतिवाद की घोषणा की है. भाकपा(माले) की एक राज्यस्तरीय टीम, जिसमें राज्य स्थायी समिति सदस्य रमेश सेंगर, राज्य कमेटी सदस्य राधेश्याम मौर्य व अन्य कामरेड शामिल हैं, पुलिस हिंसा व दमन पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए कानपुर पहुंची है.