कामरेड सुखदेव के निधन की खबर पाकर मैं गंभीर मर्माहत हूं. अभी कुछ ही दिनों पहले उनसे लोकयुद्ध को लेकर बात हुई थी. मैं सोच भी नहीं सकता था कि पचास वर्ष पुराना उनका साथ इतनी जल्दी टूट जायेगा.
कामरेड सुखदेव मेरे सबसे पुराने और घनिष्ठ साथी थे. उनसे मेरा परिचय 1970 में हुआ था जब मैं आसनसोल लोकल कमेटी में था और वे जेकेनगर एल्यूमीनियम फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे। उनका मूल नाम रथीन्द्र नाथ चक्रवर्ती था और वह मुर्शिदाबाद के रहने वाले थे. आसनसोल-रानीगंज क्षेत्र में 1971-72 के दौरान मजदूरों-कर्मचारियों एवं युवाओं के बीच भूमिगत संगठन निर्माण के दौरान हमलोग एक्सपोज हो गये थे. पार्टी का निर्देश था कि शहरी क्षेत्र में काम कर रहे एक्सपोज कामरेड गांव चले जायें. बर्नपुर में कार्यरत बहुतेरे मजदूर पार्टी साथी बिहार से थे. उनकेे माध्यम से हम छह-सात कामरेड 1973 की शुरुआत में बिहार के बेगूसराय व मुंगेर जिलों में आये. यहीं से कामरेड रथीन का नाम सुखदेव हो गया और यही उनका असली नाम बन गया.
इस इलाके में उन दिनों पार्टी के कामकाज का खास विस्तार नहीं था और भूमिहीनों की स्थिति इतनी खराब थी कि साल में दो-तीन महीने फाकाकशी की नौबत आ जाती थी. स्वाभाविक है कि उनके टोलों में रहने वाले पार्टी संगठक को भी उनका सहभागी बनना होता था. इन तमाम कठिन स्थितियों का सामना करते हुए कामरेड सुखदेव ने दलित भूमिहीन किसानों के बीच जगह बनाई और संगठन निर्माण करने का काम किया. इस पूरे दौर में कामरेड सुखदेव के साथ मेरा सघन सम्पर्क बना रहा. उन दिनों चल रहे वैचारिक विभ्रम और विभाजनों के बीच भी वे हमेशा कामरेड चारु मजूमदार की क्रांतिकारी लाइन और पार्टी के साथ अविचल बने रहे.
इसके बाद 1976 में पटना चले आने के बाद उनसे एक-दो साल संपर्क नहीं रहा पर 1978 में मेरे झारखंड चले जाने के बाद उन्होंने पटना की जिम्मेदारी संभाली तब से फिर मुलाकात होने लगी और वह जारी रही. उसके बाद का इतिहास साथी जानते हैं. उन्होंने विभिन्न जिम्मेदारियां लीं और निभाई और किसी से पीछे नहीं हटे.
उनका कष्टसाध्य, सादगी भरा, सरल और कर्मठ तथा आत्मत्याग से भरपूर जनसेवा में कुर्बान जीवन हमेशा हमें प्रेरणा देता रहेगा. लोकयुद्ध को तुम्हारा योगदान हमेशा याद रहेगा और तुम्हारी कमी खलती रहेगी.
- बीबी पांडेय