प्रगतिशील आलोचक, कवि, व्यंग्यकार, संगठक और वामपंथी नेता का. खगेंद्र ठाकुर का विगत 13 जनवरी 2020 को निधन हो गया. उसी दिन उन्हें एम्स, पटना में भर्ती कराया गया था. वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली.
गोड्डा जिले के एक गांव में 9 सितंबर 1937 को जन्मे का. खगेंद्र ठाकुर छात्र जीवन में ही मार्क्सवाद व अन्य प्रगतिशील विचारों के संपर्क में आए. 1960 में उन्हें सुल्तानगंज के एक काॅलेज में प्राध्यापक की नौकरी मिली. 1967 में भागलपुर शिक्षक संघ के महासचिव बनाए गए और शिक्षक आंदोलनों के दौरान कई बार जेल भी गए. 1965 में भाकपा का सदस्य बनने के बाद वे एक साथ अध्यापन, शिक्षक आंदोलन, साहित्य और राजनीति के मोर्चे पर सक्रिय हो गए. 1968 में उनका पहला कविता संग्रह ‘धार एक व्याकुल’ प्रकाशित हुआ. पिछले पांच दशक में उनकी लगभग दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविता, आलोचना-समीक्षा, वैचारिक विमर्श, इतिहास आदि समेत विभिन्न विधाओं की कृतियां शामिल हैं.
का. खगेंद्र ठाकुर 1973 से 1994 तक बिहार प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव रहे. 1994 से 1999 तक प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेवारी में रहे. प्रलेस की पत्रिका ‘उत्तरशती’ का उन्होंने 1981 से 1985 तक संपादन किया. निधन के समय वे प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंडल के सदस्य थे. उन्होंने 1991 में शिक्षक के पद से इस्तीफा देकर राजनीति व लेखन कर्म को प्रमुखता दी. वे भाकर्पा के झारखंड राज्य कार्यकारिणी, राज्य परिषद व राष्ट्रीय परिषद के भी वे लंबे समय तक सदस्य रहे. वे झारखंड में भाकपा के सहायक सचिव भी रहे. दो वर्षों तक उन्होंने भाकपा के मुखपत्र ‘जनशक्ति’ का संपादन किया और उसमें कई लोकप्रिय स्तंभ भी लिखे.
का. खगेन्द्र ठाकुर प्रगतिशील संस्कृतिकर्म और रचनाशीलता के प्रति बेहद प्रतिबद्ध थे. पिछले पचास साल से अधिक समय से प्रगतिशील-वामपंथी आंदोलन में सक्रिय रहे का. खगेन्द्र ठाकुर का निधन साहित्य व राजनीति की प्रगतिशील-जनवादी धारा के लिए अपूरणीय क्षति है. प्रगतिशील साहित्यिक आंदोलन में उनकी भूमिका को हमेशा याद किया जाएगा.
कामरेड खगेन्द्र ठाकुर को लाल सलाम!