विगत 9 जनवरी 2020 को आजमगढ़ में वरिष्ठ वामपंथी नेता का. इंद्रसेन सिंह का निधन हो गया. 12 जनवरी को शहर के कुंवर सिंह उद्यान में उनकी श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गयी. श्रद्धांजलि सभा को सबोंधित करते हुए भाकपा(माले) नेता का. जयप्रकाश नारायण ने कहा कि मार्क्सवाद में गहरी आस्था, सामाजिक विकृतियों और कुरीतियों की निर्मम आलोचना और वर्ग शत्रुओं के प्रति गहरी नफरत उनके व्यक्तित्व के तीन प्रमुख पहलू थे. वे 1956 में भाकपा के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बने. बाद में माकपा में आये और नक्सलबाड़ी आन्दोलन के बाद भाकपा(माले) में शामिल हो गए. वे अंत तक क्रांतिकारी कम्युनिस्ट राजनीति से जुड़े रहे तथा अपने परिवार और समाज से लगातार विरोध और अलगाव सहने के बावजूद वे कभी कमजोर नहीं पड़े. वे हमेशा जनयुद्ध का सपना देखते थे और जमीनी स्तर पर उतरकर कार्य करने में यकीन रखते थे. उनका होना भर एक भरोसा और ताकत देता था. उनका जाना समग्र रूप से वामपंथी आन्दोलन की क्षति है. उनके संघर्ष और सपने को मंजिल तक पहुंचाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
जिला कोआपरेटिव बैंक के पूर्व चेयरमैन एडवोकेट अरुण सिंह ने कहा कि इन्द्रसेन सिंह मजबूत विचारों वाले थे और उनके भीतर आत्मप्रदर्शन का भाव कभी नहीं रहा. 1967-68 के हिन्दी आन्दोलन में वे अगुआ थे. आज जबकि पूरा देश फासिस्ट हमले की जद में है, इन्द्रसेन सिंह जैसे मजबूत विचारों वाले वामपंथी नेता का न होना एक बड़ा नुकसान है.
इन्जीनियर सुखदेव प्रधान ने कहा कि 1965 के खाद्यान्न आन्दोलन में हम उनसे मिले. उनके साथ जेल भी गये. वे हमेशा जन आन्दोलनों के अगुआ और संरक्षक के बतौर रहे. जन-आन्दोलनों की सबसे मजबूत कड़ी वही होते थे और उनके होने से एक ताकत का अहसास होता था. अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति शिक्षक-कर्मचारी कल्याण परिषद के जिला अध्यक्ष राम दवर मास्टर ने कहा कि गरीबों व असहायों के लिए वे हमेशा खड़े रहने थे. अत्याचार और उत्पीड़न का प्रतिकार करने में भी वे आगे रहते थे.
इस अवसर पर वरिष्ठ समाजवादी चिंतक विजय बहादुर राय, का. ओमप्रकाश सिंह, एडवोकेट अशोक राय, एडवोकेट अनिल राय, डाॅ बाबर अशफाक खान, डा. रविन्द्रनाथ राय, विनोद सिंह, विजय देवव्रत, दुर्गा सिंह आदि ने भी उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की.