मोदी सरकार ने आनन-फानन में नया व्हीकल कानून बनाकर ट्रैफिक टैक्स को बेतहाशा बढ़ा दिया और आनन-फानन में ही उसे लागू भी कर दिया. सच कहिए तो ऐसा लगता है कि जनता पर यह ’आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक’ है! न तो कानून लागू करने वाली एजेंसी, पुलिस महकमा को और न ही आम अवाम को यह मालूम है कि यह कानून है क्या? उसमें क्या प्रावधान हैं? भारी टैक्स बढ़ोतरी और आनन-फानन में उसे अंजाम दिए जाने के पीछे सरकार के क्या तर्क हैं? इन सब चीजों की आम अवाम को जानकारी देने को सरकार अपनी जिम्मेदारी व फर्ज को नहीं समझती है. उसने यकायक टैक्स में कई गुना बढ़ोतरी करके आम अवाम में हड़कंप मचा दिया, उन्हें तबाह कर दिया! इधर पुलिस को जनता को तंग-तबाह करने व मनमाना लूटमार करने की खुली छूट मिल गई. जरा गौर कीजिए, यह एक कानूनी डाकाजनी और लूटमारी नहीं तो और क्या है?
दरअसल सरकारें व सत्ताधारी वर्ग जनता की लूटमार करते हैं तो उसे कानून का जामा पहनाकर ही करते हैं और इसीलिए उसे लूटमार या डाकाजनी नहीं कहा जाता है. इसके लिए अलग कानूनी शब्दावलियां होती हैं. मसलन, अभी जो यह लूटमारी हो रही है उसका नाम ट्रैफिक टैक्स वसूली है! एक और शब्दाबली आप सुनते होंगे ’एनपीए’. यह क्या है? सच कहिए तो यह खुलेआम बैंक डकैती है और विकास के नाम पर सरकार की मदद से इसे अंजाम दिया जाता है! इसी के चलते बैंक अभी भारी संकट में फंसे हुए हैं. इस एनपीए की कांग्रेसी हुकूमत में जितनी स्पीड थी, मौजूदा हुकूमत में उसकी स्पीड उससे बहुत अधिक रही है.
बहरहाल, मौजूदा ट्रैफिक टैक्स की बात पर ही आया जाए. तो सरकार की शायद ऐसी सोच रही है कि टैक्स रेट अधिक बढ़ा देने से टैक्स चुकाने वाले भयभीत होकर जल्दी टैक्स चुका देंगे. इसका मतलब तो यह हुआ कि टैक्स की वसूली न होने की वजह टैक्स रेट का कम होना है! यह सोच बिल्कुल जनविरोधी है. इसके पीछे कुछ दूसरा ही मतलब लगता है.
जनता द्वारा चुकाए गए टैक्स यदि सचमुच में जनहित में खर्च किए जाएं तो बेशक टैक्स वसूली सहज हो जाएगी, मगर अक्सर ऐसा होता नहीं है. जरा देखिए, अभी टैक्स में तो भारी बढ़ोतरी कर दी गई, पर सड़क, सुरक्षित यातायात की हालत कितना बदहाल है! एक मिसाल के तौर पर जरा रेलवे को लीजिए. रेलवे में हर तरह के टैक्स बढ़ा दिया गया है मगर सुविधा! नदारद, वही ढाक के तीन पात! अब स्वाभाविक सवाल उठता है इस टैक्स की रकम कहां चली जाती है? यह किसके हित साधती है? देखने से तो ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारों की यह नीति रही है और है – जनता को लूटो और कारपोरेटों, धनाढ्यों के हित में खर्च करो.
ट्रैफिक टैक्स में इस भारी बढ़ोतरी की कड़ी मौजूदा आर्थिक मंदी से भी जुड़ती है जिसके समाधान में सरकार दिशाहीन है. उसने रिजर्ब बैंक के रिजर्व से भारी भरकम रकम झपट ली है. उससे मंदी का समाधान होने नहीं जा रहा है. लिहाजा, सरकार जनता पर तरह-तरह के टैक्स लाद कर और रकम निचोड़ने की कोशिश में है. यह ट्रैफिक टैक्स उन्हीं में से एक है. जिस तरह से इसे अंजाम दिया गया उससे तो यही जाहिर होता है.
10 सितंबर 2019 को भाकपा-माले विधायक सुदामा प्रसाद, बिहार राज्य ऑटो रिक्शा (टेम्पु) चालक संघ (एक्टू से संबद्ध के महासचिव मुर्तजा अली तथा उपाध्यक्ष नवीन मिश्रा के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने बिहार के परिवहन मंत्री से मुलाकात कर अपने 10 सूत्री मांगों का ज्ञापन उन्हें सौंपा. प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि नया मोटर वाहन अधिनियम ऑटो चालकों व अन्य वाहन चालकों के लिए आतंक का पर्याप्त बन गया है. इसकी आड़ में ऑटो चालकों से अवैध वसूली की जा रही है. मंत्री ने इस मामले में एक उच्चस्तरीय कमिटी बनाकर उनकी मांगों पर विचार करने व त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया.
नेताओं ने बताया कि सरकार ने ऑटो-रिक्शा चालकों से 15 साल का रोड टैक्स व 5 साल के परमिट का पैसा वसूला है. अब प्रदूषण बढ़ने का तर्क देकर कह रही है कि सभी डीजल वाहनों के परमिट रद्द कर दिए जाएंगे और सीएनजी सेवा चलाई जाएगी. यदि सरकार सचमुच सीएनजी वाहनों को चलाना चाहती है तो उसे चालकों को नया सीएनजी वाहन खरीदने के लिए न्यूनतम 50 प्रतिशत सब्सिडी देने की व्यवस्था करनी चाहिए. अब नए कानून के तहत प्रदूषण के वे सारे सर्टिफिकेट रद्द कर दिए जाएंगे जो सरकार के परिवहन विभाग द्वारा ही स्थापित प्रदूषण जांच केन्द्रों द्वारा दिए गए थे. नया सर्टिफिकेट बनवाने में जो अतिरिक्त पैसे खर्च होंगे, सरकार क्या उसकी भरपाई करेगी?
ज्ञापन में पहले जारी किए गए सभी लाइसेंस व शहरी क्षेत्र परमिट का नवीनीकरण करने, सीएनजी वाहन खरीदने के लिए ऑटो चालकों को 50 प्रतिशत सब्सिडी देने की गारंटी करने, पुराने प्रदूषण सर्टिफिकेट की मान्यता बरकरार रखने, सभी कागजात के रहने पर ऑटो जब्त नहीं करने, ऑन स्पाॅट फाइन भरने की व्यवस्था बनाने, ऑटो रिक्शा के लिए यात्री को चढ़ाने व उतारने का स्थान नियत कर सुविधायुक्त ऑटो स्टैंड बनाने, चौक-चौराहों पर प्री पेड ऑटो बुकिंग काउंटर की स्थापना करने तथा मोटर अधिनियम 2019 को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डालने की मांगें शामिल थीं.
मोटर वाहन ऐक्ट की आड़ में बेतहाशा फाइन वसूली के खिलाफ 7 सितम्बर 2019 को भाकपा(माले), माकपा, माकपा के कार्यकत्ताओं ने प्रतिवाद रैली निकालकर कड़ा विरोध जताया. गडकरी टैक्स वापस लो, ट्रैफिक टेररिज्म पर रोक लगाओ, फाइन या लूट, रघुवर सरकार जवाब दो के नारे के साथ वामदलों के कार्यकर्त्ताओं ने रैली निकाल कर अल्बर्ट एक्का चौक पर विरोध प्रदर्शन किया. रैली का नेतृत्व माले के जिला सचिव भुवनेश्वर केवट, भाकपा के जिला सचिव अजय सिंह और माकपा के जिला सचिव सुखनाथ लोहरा ने किया.
वाम दलों के नेताओं ने कहा कि न्यू मोटर वेहिकल ऐक्ट की आड़ में सरकार वसूली अभियान चला रही है. ऐक्ट में संशोधन कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है. मोटर वेहिकल ऐक्ट पूरी तरह से बड़ी कम्पनियों के फायदे के लिए बनाया गया है. यह पूरी तरह से ट्रैफिक टेररिज्म है. इसे अविलम्ब वापस लिया जाना चाहिए. कार्यक्रम में भीम साहू, विरेन्द्र श्रीवास्तव और मोहम्मद सलीम (भाकपा-माले), शुभा मेहता, पावेल कुमार और मनोज ठाकुर (भाकपा) और विणा लिण्डा, ईस्माइल लुगून और सुरेन्द्र गोप (माकपा) सहित वामदलों के कई कार्यकर्त्ता शामिल थे.