मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी संसद सत्र 10 फरवरी को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए खुद को मुबारकबाद देने के ‘प्रस्ताव’ को पारित करने के साथ समाप्त हो गया. इसके पहले यूपी की योगी सरकार ने 5 फरवरी को वहां के विधानसभा में मंदिर निर्माण के लिए खुद को और मोदी को मुबारकबाद देते हुए इसी तरह के ‘प्रस्ताव’ पारित किया था. निश्चित तौर पर योगी आदित्यनाथ सिर्फ अयोध्या का श्रेय लेने से संतुष्ट नहीं हैं, बल्कि न्यायपालिका के समर्थन से उनकी सरकार अब काशी और मथुरा को नया रणभूमि बनाने पर जोर दे रही है. योगी ने महाभारत से तुलना करते कहा कि कृष्ण ने पांडवों के लिए पांच गांव मांगे थे, जबकि वह तो सिर्फ तीन जगहों की मांग कर रहे थे! सिर्फ तीन जगहों के नाम पर यह राज्य के जरिये जनता को दी गई धमकी है कि वे हर विवादित धार्मिक जगह के बारे में संघ-भाजपा के दावों को स्वीकार कर लें या फिर महाभारत के युद्घ जैसे नरसंहार का खतरा उठाएं. इन पारित ‘प्रस्तावों’ और उनकी बयानबाजी को निश्चित तौर पर हालिया घटी घटनाओं को हरी झंडी देने से जोड़कर देखा जाना चाहिए. उत्तराखंड विधानसभा ने सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून के नाम पर एक बेहद कठोर, प्रतिगामी और भेदभावकारी कानून पारित किया है. भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने अगले लोकसभा चुनाव से पहले जनता से भेदभाव करने वाला नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू करने का ऐलान किया है. इसके साथ ही कानून और अदालत के जरिये लगाए प्रतिबंध और और सुरक्षा के लिए दिए गए निर्देशों की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए भाजपा शासित राज्यों और दिल्ली में गृह मंत्रालय के जरिये नियंत्रित पुलिस द्वारा मुस्लिम घरों और दुकानों, मस्जिदों और मदरसों को निशाना बनाना और बुलडोजर से जमींदोज करना जारी है. यहां तक कि अवैध तरीके से सदियों पुरानी धरोहर स्मारक को भी जमींदोज कर दिया गया है. विध्वंस के इस अभियान ने उत्तराखंड के हलद्वानी में जनता के गुस्से को भड़का दिया और अब इसके बहाने सरकार ने आतंक और दमन का अंधाधुंध अभियान छेड़ दिया है. यूपी के बरेली में ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा की अनुमति देने वाले वाराणसी कोर्ट के आदेश के खिलाफ ‘जेल भरो’ आवाहन के जवाब में पुलिस की मनमानी के बाद वहां भी तनाव फैल गया. पश्चिम बंगाल का संदेशखाली टीएमसी के स्थानीय नेताओं द्वारा ग्रामीण महिलाओं के बड़े पैमाने पर यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर चर्चा में है और भाजपा इसे टीएमसी समर्थित प्रभावशाली मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू महिलाओं के यौन शोषण के मामले के बतौर पेश कर पूरी तरह से सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रही है. केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने मीडिया में बेहद भड़काऊ बयान देते हुए इसे पश्चिम बंगाल में हिंदू नरसंहार करार दिया है. इशारा बिलकुल ही साफ है - अब जबकि मोदी के नाम की तथाकथित ‘गारंटी’ लगातार कमजोर पड़ती जा रही है तो भाजपा अपनी सबसे परखी और भरोसेमंद चुनावी रणनीति के बतौर देश को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और हिंसा के एक और दौर में धकेलने के लिए बेताब है.
विपक्ष पर लगातार हमला करना भाजपा की चुनावी रणनीति का एक दूसरा खास हिस्सा है. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा की बिहार और झारखंड में सत्ता हासिल करने की बेताबी को पूरी सफलता नहीं मिल पाई है. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद भी कांग्रेस, भाकपा-माले और राजद द्वारा समर्थित जेएमएम अपनी सरकार बनाए रखने में सफल रही है और अनुभवी जेएमएम नेता चंपई सोरेन नए मुख्यमंत्री बने हैं. बिहार में नीतीश कुमार की फिर से राजनीतिक कलाबाजी के बावजूद भाजपा को विधानसभा में बहुमत साबित करने में बेहद कठिनाइयों और जोड़तोड़ का सामना करना पड़ा. तीन राजद विधायकों को एनडीए खेमे में जाने और नीतीश सरकार का समर्थन को मजबूर करने के लिए बड़े पैमाने पर राजनीतिक साजिश, प्रशासनिक बेईमानी और पुलिस हस्तक्षेप की जरूरत पड़ी.
मोदी सरकार ने ईडी, सीबीआई और आईटी विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों को हथियार बनाने के बाद, अब भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न को भी राजनीतिक सौदेबाजी का एक जरिया बना दिया है. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का उपयोग नीतीश कुमार की कलाबाजी को आसान करने और सामाजिक न्याय से की गई गद्दारी पर पर्दा डालने के लिए किया गया है. इसी तरह, पूर्व प्रधान मंत्री और कद्दावर किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने का इस्तेमाल उनके पोते और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ समझौते पर मुहर लगाने के लिए किया गया है. भाजपा और कांग्रेस के पारंपरिक समर्थकों को संतुष्ट करने के लिए आडवाणी और नरसिम्हा राव को भी इस सम्मान के लिए चुना गया है. एक तरफ कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन को भी भारत रत्न के सम्मान से नवाजा जाता है, जो खेती में कुल लागतों के ऊपर 50 प्रतिशत मार्जिन जोड़कर किसानों को लाभकारी समर्थन मूल्य देने की सिफारिश के लिए ज्यादा जाने जाते हैं, पर दूसरी तरफ अपनी मांगों को लेकर दिल्ली आ रहे किसानों को रोकने के लिए भाजपा सरकार हरसंभव दमन कर रही है और उनके रास्ते मे बाधा डाल रही है. संसद सत्र का मुख्य घोषित उद्देश्य निश्चित तौर से अंतरिम बजट के साथ लोकसभा चुनावों के बाद का पूरा बजट था. अंतरिम बजट ने सामाजिक कल्याण और सार्वजनिक सेवा व्यय में कटौती और अमीरों को इनाम देने और गरीबों को लूटने की नीति को मजबूत किया है. वित्त मंत्री ने मौजूदा आर्थिक बदहाली से जनता का ध्यान भटकाने के लिए 2014 में ही सत्ता से बाहर हो गयी यूपीए सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन पर एक तथाकथित ‘श्वेत पत्र’ प्रस्तुत किया. जब जनता मौजूदा बदहाली के लिए मोदी सरकार से जवाब मांग रही है तो इस ‘श्वेत पत्र’ या फिर 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने जैसे खोखले दावों का उद्देश्य जनता को भटकाना है.
भारत की जनता इन झूठे दावों और खोखले वादों से बहुत ऊब चुकी है. आसमान छूती मंहगाई, घटती आय और खत्म होती नौकरियां ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जिसका सामना आर्थिक कठिनाइयों को झेल रहे ज्यादातर भारतीय कर रहे हैं. यह देखना आश्वस्त करने वाला है कि जनता मोदी सरकार के फरेबी प्रचार अभियान, लगातार बढ़ती हुई नफरत फैलाने वाली बातों और विपक्ष के कुछ नेताओं और पार्टियों द्वारा किए गए राजनीतिक दगाबाजी को खारिज करते हुए अपनी मांगों पर अड़ी हुई है. आइये, हम किसान संगठनों और ट्रेड यूनियनों द्वारा 16 फरवरी को औद्योगिक और ग्रामीण हड़ताल के संयुक्त आह्नान, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सुरक्षित नौकरियों के लिए युवा भारत की बढ़ती लामबंदी, पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए सरकारी कर्मचारियों द्वारा जारी आंदोलन, जाति जनगणना के साथ प्रभावी और विस्तारित आरक्षण नीति की मांग जैसे मुद्दों को रफ्तार देते हुए जनता के बीच जाएं और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए इसे जनता का मुद्दा बना दें.