रांची जिले के पांचपरगना क्षेत्र के जुझारू किसान नेता का. खुदीराम मुंडा के शहादत दिवस पर विगत 17 अगस्त को राहे के गोमदा चैक पर उनकी मूर्ति का लोकार्पण हुआ और संकल्प सभा आयोजित की गई. कार्यक्रम की शुरूआत का. खुदीराम मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दो मिनट के मौन श्रद्धांजलि देने के साथ हुई. भारी बारिश, धान रोपनी और मनसा पूजा का अवसर होने के बावजूद कार्यक्रम में भारी संख्या में जन भागीदारी हुई. दर्जनों पार्टी कार्यकर्ताओं और सैकड़ों आम लोगों ने इसमें उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया.
का. खुदीराम मुंडा की प्रतिमा का अनावरण भाकपा(माले) के राज्य सचिव कॉ० जर्नादन प्रसाद ने किया. इस अवसर पर जिला सचिव भुवनेश्वर केवट, राज्य कमिटी सदस्य का. गौतम गुण्डा, पांचपरगना क्षेत्र के पार्टी प्रभारी का. जगमोहन महतो, माकपा नेतो का. सफुल महतो, राहे के पार्टी सचिव का. दिलीप मांझी, का. दामोदर प्रजापति, का. खुदीराम मुंडा की पत्नी का. बसंती देवी, लखिमनी मुण्डा, भीष्म महतो, अमलकांत महतो, सिमैला देवी, रामेश्वर मुंडा, राजकिशोर लोहरा आदि नेता-कार्यकर्ता भी मौजूद रहे.
वक्ताओं ने कहा कि का. खुदीराम मुंडा जैसे नेताओं की बदौलत ही आज इलाके में लाल झंडा लहरा रहा है. मोदी-रघुबर सरकार के राज में चाहे जितनी साजिशें रची जाए, इस क्षेत्र व देश की जनता लाल झंडे की इस लाली को न केवल बरकरार रखेगी बल्कि अपनी ताकत, मेहनत व संघर्ष के बलबूते इसे और भी गाढ़ा करती जायेगी.
लंबे समय तक बीमार से जूझते हुए बर्ष 2012 में का. खुदीराम मुंडा ने मृत्यु का वरण किया. पिछले दिनों इस इलाके में पार्टी के एक प्रमुख आदिवासी नेता ने पार्टी छोड़ दी. इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में ही का. खुदी राम मुंडा की प्रतिमा गोमदा चौक (राहे) में स्थापित की गई.
का. खुदीराम मुंडा एक जुझारू किसान नेता थे. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का सफर माकपा के साथ शुरू किया था. कुछेक शुरूआती वर्ष गुजारने के बाद वे आगे चलकर भाकपा(माले) में शामिल हो गए. उन्होंने भूमि मुक्ति, जमींदारी शोषण और सूदखोरी प्रथा के खिलाफ अनेक लडाईयां लड़ीं, कई-कई फर्जी मुकदमों में फंसाये गए, अनेकों बार जेल गए और पुलिसिया यातना के शिकार बनाये गए. बर्ष 1989 में जेल के अंदर ही पार्टी नेताओं से उनका संपर्क हुआ था. का. परमेश्वर सिंह मुंडा की शहादत से उन्हें नई प्रेरणा मिली और जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने भाकपा(माले) में शामिल होने का निर्णय लिया. अपार कष्टमय जीवन जीते हुए भी पार्टी और क्रांति की चिंता ही इनके लिए सर्वाेपरि रही. इसकी बदौलत ही वे पांचपरगना में आदिवासियों के सर्वप्रिय नेता बने.
का. खुदीराम मुंडा आदिवासियों के प्यारे नेता थे. वे अपने इलाके के पाहन भी थे लेकिन हमेशा ही पूजा-पाठ और अंधविश्वास के खिलाफ खड़े रहे. उन्होंने आदिवासियों के हितों से कोई समझौता नहीं किया. वे आदिवासी नेताओं की उस परंपरा के सच्चे अनुयायी थे जहां न तो मृत्यु का भय होता है और न ही पद, प्रतिष्ठा और पैसे की चाह होती हैं. उन्होंने आदिवासी समाज में खुद को एक सच्चे कम्युनिस्ट नेता के बतौर स्थापित किया. समाज, देश और पार्टी के हित को हमेशा सर्वोपरि रखा. 2005 में पुलिस उनको पकड़ने गई. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार भीइ कर लिया. लेकिन जनता ने भारी प्रतिरोध किया और अंततः उन्हें छुड़ाकर ही दम लिया. पांचपरगना के राहे में घटित यह घटना वर्षों तक लोगों की याद में बनी रही.
उन्होंने पांचपरगना के किसान आंदोलन का प्रत्यक्ष नेतृत्व किया. उन्होंने जमींदारों, भू-माफिया ताकतों और सत्ता के हर दमन और हमले का डटकर मुकाबला किया. वे एक मेहनती किसान थे लेकिन, साहित्य, संस्कृति, दर्शन व राजनीति से संबंधित पुस्तकों का नियमित अध्ययन करता, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम में हमेशा गहरी रूचि लेता, दलालों, भ्रष्टाचारियों व भूमि चोरों से सख्त नफरत करता और अपनी आधी जिंदगी इलाके के गांवों में गरीबों व किसानों के बीच संगठन और एकता बनाने में गुजार दी. का. खुदीराम मुंडा आदिवासी समाज में भारी चलन के बावजूद कभी शराब नहीं पीते थे, बल्कि महिलाओं को शराब विरोधी अभियान के लिए प्रेरित किया करते थे.
का. खुदीराम मुडा ने एक नये राज-समाज के निर्माण के लिए आजीवन संघर्ष किया. उनमें व्यक्तिगत राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा कभी नहीं रही. आम आदिवासी नेता जब कपड़ों की तरह पार्टी बदलते रहे तब भी वे कम्युनिस्ट उसूलों व विचारों पर निष्कंप खड़े रहे. वे सिद्धो, कान्हो, बिरसा और भगत सिंह को अपना आदर्श मानते थे और उनके सपनों का भारत बनाने के संघर्ष के अगुआ थे.