वर्ष - 28
अंक - 30
13-07-2019

10 जुलाई 2019 भोजपुर जिले के अंगरा गांव (पीरो प्रखंड) में भूमि दखल आंदोलन चलाया गया. हाईकोर्ट ने वर्ष 2008-09 में ही भोजपुर जिलाधिकारी को चार माह के अंदर अंगरा गांव, मौजा अनावाद, बिहार सरकार की जमीन खाता-319, खेसरा-192, कुल रकबा 4 एकड 53 डि. भूमि पर 98 भूमिहीन दलित-महादलित परिवारों के नाम तीन-तीन डि. जमीन बंदोबस्त कर बसाने का आदेश दिया था. दलित-महादलित परिवार सरकारी कार्यालयों का चक्कर लताते रहे लेकिन जमीन उनकी नहीं हुई.

सामंती ताकतें चाहती थीं कि गरीबों को पर्चा न मिले. अधिकारियों ने भी हर तरह के हथकंडे अपनाए. हाईकोर्ट की आंख में भी धूल झोंकते हुए उन्होंने बिहार सरकार की इस अनाबाद जमीन को सर्वसाधारण की अनाबाद जमीन की श्रेणी में डाल दिया. गरीबों को इसे गलत साबित करने में ही कई साल लग गए. इस बीच गरीबों को बासगीत जमीन देने की भी कई सरकारी योजनायें आईं. अनुमंडल पदाधिकारी ने भी अपने जांच आदेश में इस जमीन पर गरीबों को पर्चा देने का आदेश दिया. लेकिन वही ‘ढाक के तीन पात’ वाली कहावत चरितार्थ होती रही.

भाकपा(माले) ने जब 10 जुलाई को दलितों-महादलितों को भूमि पर कब्जा दिलाने की घोषणा तो सामंती ताकतें बौखला उठीं. वे इसे रोकने की तैयारी करने लगीं. 9 जुलाई को प्रशासन को एक मौका और देने की की मांग करते हुए पीरो के अंचलाधिकारी, अनुमंडलाधिकारी, पुलिस उपाधीक्षक व थानेदार ने माले नेताओं को वार्त्ता के लिए बुलाया. यह मामले को टालने की आखिरी चाल थी. लेकिन, जनता के आगे उनकी एक न चली. अगले दिन भाकपा(माले) के नेतृत्व में जब सभी 98 दलित-महादलित परिवारों ने झोपड़ी डालकर इस जमीन पर अपना कब्जा कायम किया. सामंती ताकतें भी सामने आईं लेकिन उनको खदेड़ भगाया गया.

इस भूमि दखल कार्यक्रम से जहां एक ओर व्यापक गरीब जनता के बीच भाकपा(माले) की संघर्षशील छवि और मजबूत हुई है, गरीबों में नया उत्साह आया है, वहीं भाजपा-जदयू सरकार का गरीब बिरोधी चेहरा बेनकाब हुआ है. गांव के गैरमजरूआ सरकारी भूमि, आहर, पोखर व अन्य तरह की जमीन पर कब्जा जमाये दबंगों व सामंती ताकतों को जमीन छीन जाने का भय सताने लगा है.