पालघर जिले (महाराष्ट्र) के आदिवासी किसान हाइवे परियोजना और बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की खातिर अपनी जमीन-हड़प के खिलाफ आंदोलन की योजना बना रहे हैं. इन किसानों को 1818 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से अत्यंत तुच्छ मुआवजा देने की बात कही जा रही है, जो उस इलाके में जमीन की बाजार-कीमतों से काफी कम है. बुलेट ट्रेन और हाइवे परियोजनाओं के लिए उन्हें भूमि अधिग्रहण और बेदखली की नोटिस भेजी गई है, लेकिन मुट्ठी भर लोगों को छोड कर शेष तमाम आदिवासियों को वनाधिकार अधिनियम के तहत जमीन व जंगल पर उनके कानूनी अधिकारों से हमेशा वंचित रखा गया है.
वामपंथी संगठनों और गैर-सरकारी गु्रपों (एनजीओ) ने इस अंचल में संघर्ष को धारदार बनाने के लिए संयुक्त आदिवासी संघर्ष समिति का गठन किया है.
भाकपा(माले) ने बोइसर में आदिवासी प्रतिनिधियों की एक बैठक आयोजित की और प्रभावित तमाम गांवों में अभियान चलाने का फैसला लिया जिसका समापन एक कन्वेंशन के रूप में होगा. भाकपा(माले) बगल के वलसाद जिले में भी अभियान चला रही है जहां के किसान इन्हीं परिस्थितियों में आंदोलन कर रहे हैं. 22 जुलाई को वालसाड के कपराडा प्रखंड में जमीन-हड़प के खिलाफ रैली करने की योजना बनाई गई है.
काॅरपोरेट परस्त सरकारी नीतियों के चलते जहां जमीन, पर्यावरण और आजीविका पर गहरा संकट उत्पन्न हो रहा है, वहीं यह सरकार स्थानीय उद्योगपतियों को उन मेहनतकश मजदूरों का शोषण करने का हर मौका मुहैया कर रही है जो कृषि संकट की वजह से अपने गांवों से पलायित होकर शहरी मजदूरों की श्रेणी में लगातार शामिल हो रहे हैं. पालघर के लाविनो कपूर गारमेंट कारखाने में मजदूर विगत छह महीने से अपनी छंटनी के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. यहां के 250 श्रमिक लगातार धरना व अन्य प्रतिवादों के जरिए काम पर वापस लिए जाने की मांग उठा रहे हैं, लेकिन कोई भी निर्वाचित स्थानीय जन-प्रतिनिधि उनके संकट के समाधान के लिए सामने नहीं आया है – यहां तक कि पहले एनसीपी और अब भाजपा से संबद्ध उनकी पूर्व की यूनियन नेताओं ने भी उनके साथ गद्दारी की है.