वर्ष - 28
अंक - 30
13-07-2019

महंगाई को बढ़ाने वाला बजट में पहले से महंगे पेट्रोल-डीजल पर 1 रुपया प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी और 1 रुपया प्रति लीटर सेस बढ़ाया गया है. इससे माल ढुलाई व यात्री किराये पर असर पड़ेगा और आम आदमी की रोजमर्रा के उपभोग की वस्तुओं सहित हर ओर महंगाई बढ़ेगी। इसके साथ ही सोने के आयात सहित कुछ अन्य धातुओं पर भी एक्साइज ड्यूटी 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाई गई है. आयातित किताबों और मुद्रण सामग्री पर भी 5 प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी लगाई है. बजट से लगभग हर क्षेत्र में महंगाई बढ़ेगी.

मध्य वर्ग के लिए निराशाजनक

बजट में देश के मध्य वर्ग को कोई रियायत नहीं दी गई है। नौकरीपेशा तबका इस बात की उम्मीद कर रहा था कि 5 लाख तक की आय पर उसे पूर्ण टैक्स माफी मिलेगी. अभी अगर पांच लाख से आपकी आमदनी कुछ भी बढ़ी तो फिर 2.5 लाख से ऊपर की राशि पर पूरा टैक्स देना होता है. पर सरकार ने इसमें कोई बदलाव नहीं किया। रियल इस्टेट के कारोबार को कुछ गति देने के उद्देश्य से 45 लाख तक के आवास ऋण में जरूर टैक्स छूट को 2 लाख से 3.5 लाख किया गया है.

सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ाने वाला

सरकार ने बजट में एअर इंडिया सहित अन्य कंपनियों में विनिवेश की दीर्घकालिक योजना की घोषणा की है. रेलवे में 50 हजार करोड़ के विनिवेश की घोषणा की है. बीमा क्षेत्र की कंपनियों में भी 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की घोषणा की है. इस तरह यह बजट सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को और भी तेज गति देने वाला है. एक देश - एक पावर ग्रिड, और पानी व गैस के लिए भी एक अलग ग्रिड बनाने की मोदी सरकार की घोषणा बिजली, पानी और गैस पर भविष्य में पूरी तरह से कारपोरेट कंपनियों के नियंत्रण के लिए रास्ता खोलने के अलावा और कुछ नहीं है.

बेरोजगारी और असमानता को बढ़ाने वाला

बजट श्रम कानूनों में बदलाव लाने की बात करता है. ताकि उससे मजदूरों की संगठित होने और पूंजीपतियों से मोलभाव की उनकी ताकत को कम किया जा सके. बजट में नए रोजगार सृजन के बारे में एक शब्द भी नहीं है। न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोत्तरी, ग्रामीण रोजगार के लिए मनरेगा के बजट में बढ़ोत्तरी और सामाजिक सुरक्षा के सवाल पर बजट में कुछ नहीं है. यह बजट बेरोजगारी, असमानता को बढ़ाने वाला है और मजदूरों, असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए पूर्णतः निराशाजनक है.

किसानों के साथ धोखा

बजट में आत्महत्या को मजबूर और सूखे से परेशान किसानों के लिए कुछ भी नहीं है. खेती के कारपोरेटीकरण और 85 प्रतिशत बीज बाजार पर बहुराष्ट्रीय निगमों का कब्जा हो जाने बाद बजट में मोदी सरकार का 0 प्रतिशत लागत खेती का नारा एक हास्यास्पद जुमले के सिवाय कुछ नहीं है. किसानों के 10 हजार उत्पादक समूहों का गठन करने की मोदी सरकार की घोषणा भी किसानों के साथ मात्र छलावा है. जब देश का किसान कर्ज मुक्ति, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर फसलों का मूल्य और सूखे से निपटने के ठोस उपायों की आशा सरकार से कर रहा था, ऐसे में सरकार ने किसानों को और निराश ही किया है. सरकार का 1592 विकास खंडों में जल शक्ति अभियान और 2022 तक हर घर में जल जीवन के तहत स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने की घोषणा भी कोरी लफ्फाजी ही है.

मध्यम दर्जे के उद्योगों और व्यवसाय को हतोत्साहित कर कारपोरेट व विदेशी पूंजी के दखल को बढ़ाने वाला

बजट में देश में ज्यादा रोजगार सृजन करने वाले मध्यम उद्योगों और बड़े व्यवसाय को टैक्स में भारी बढ़ोतरी कर हतोत्साहित किया गया है. अब 2.5 से 5 करोड़ तक की आय पर 3 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स और 5 करोड़ से अधिक आय पर 7 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स लगाया गया है. इससे इन मध्यम उद्योगों से वसूले जाने वाले टैक्स की मात्र 22 प्रतिशत तक पहुंच गई है. जबकि मोदी सरकार कारपोरेट टैक्स में हर साल छूट देते उसे 30 प्रतिशत से पूरी तरह 25 प्रतिशत पर ले आई है. इससे कारपोरेट पूंजी द्वारा इन्हें निगलने का रास्ता ही साफ होेगा.

बैकिंग क्षेत्र की कमी को छुपाने वाला

एक तरफ सरकार बैंकों के एनपीए में भारी कमी आने की बात कर रही है. बजट के अनुसार 6 सरकारी बैंक कर्ज से भी उबर गए हैं. इस बजट में भी बैंकों से लेनदेन पर और टैक्स बढ़ाया गया है. फिर भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपए देने का बजट में किया गया प्रावधान उक्त रिपोर्टों की असलियत को उजागर कर दे रहा है. दरअसल इसके जरिये सरकार कारपोरेट कंपनियों द्वारा हड़पी गई बैंकों की पूंजी का जनता के टैक्स से चुपचाप भुगतान कर रही है. और एनपीए को नए कर्ज में बदलने के बैंकों एवं कारपोरेट कम्पनियों के खेल को छुपा रही है.

आर्थिक सर्वे की असलियत को ढकता बजट

मोदी सरकार का वर्तमान बजट पूर्व के आर्थिक सर्वे द्वारा, और मोदी सरकार की पहली पारी में आर्थिक सलाहकार रहे अरविन्द सुब्रमह्मण्यन द्वारा, देश की अर्थव्यवस्था के बारे में किए गए खुलासे को ढकने की चालाकी भरी कोशिश है. मोदी सरकार की पहली पारी के समय के आर्थिक सर्वे बताते हैं कि देश में विदेशी निवेश, रोजगार और उत्पादन लगातार घट रहा है. पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमह्मण्यन ने बताया था कि मोदी सरकार के द्वारा जारी देश की जीडीपी वृद्धि के आंकड़े वास्तविकता से 2. 5 प्रतिशत ज्यादा हैं. उनके अनुसार सरकार द्वारा जारी 7 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि वास्तव में 4.5 प्रतिशत ही है. मोदी सरकार की दूसरी पारी के नए आर्थिक सलाहकार के. सुब्रमह्मण्यन का बजट पूर्व आर्थिक सर्वे पर दिया गया वक्तव्य और मोदी सरकार द्वारा बजट में देश के कुल जीडीपी को 260 लाख करोड़ बताना तथा पांच साल में इसे 500 लाख करोड़ तक पहुंचाने की घोषणा भी देशवासियों को धोखे में रखना ही है.