भाकपा(माले) विधायक दल के नेता महबूब आलम, विधायक सुदामा प्रसाद और गया जिला सचिव निरंजन कुमार ने 12 जुलाई को गया मेडिकल अस्पताल पहुंचकर जापानी बुखार के लक्षण से ग्रसित बच्चों व उनके परिजनों से मुलाकात की थी.
मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से करीब 300 से अधिक बच्चों की मौत के बाद अब गया में जापानी बुखार से बच्चे मर रहे हैं और इसके साथ-साथ डेंगू व चिकनगुनिया ने भी अपना असर दिखलाना शुरू कर दिया है. ये सारी बीमारियां भयानक गंदगी, मच्छरों के काटने व कुपोषण के कारण से हो रही हैं. मुजफ्फरपुर हादसे के बाद भी सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में सुधार का कोई उपाय नहीं किया. मंगल पांडेय जैसे नकारा स्वास्थ्य मंत्री अब तक अपने पद पर बने हुए हैं. बिहार सरकार आम लोगों की जिंदगी से खेल रही है.
गया व झारखंड के सीमावर्ती चतरा व पलामू जिले में बारिश के मौसम में जापानी बुखार का खतरा रहता है, जिसकी चपेट में 0-12 साल के बच्चे आते हैं. लेकिन इस पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. गया मेडिकल अस्पताल के अधीक्षक ने माले जांच टीम को बताया कि 11 जुलाई तक अस्पताल में कुल 33 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें अब तक 8 बच्चों की मौत हो चुकी है. कईयों की स्थिति अच्छी नहीं है. अस्पताल में आईसीयू की संख्या 30 है, जबकि यह मेडिकल अस्पताल गया, जहानाबााद, नवादा, औरंगाबाद, अरवल समेत झारखंड के चतरा व पलामू का भी भारी बोझ ढोता है. आम तौर पर मेडिकल अस्पतालों में आईसीयू की कमी रहती है. यदि सरकार ने मुजफ्फरपुर की घटना से कोई भी सबक लिया होता और आईसीयू व प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्रों पर इलाज का प्रबंध किया होता, तो इन मौतों को रोका जा सकता था. महज 30 इमरजेंसी बेड के साथ बच्चों का इलाज कैसे संभव है? यहां ब्लड सैंपल की जांच का कोई साधन नहीं है, प्रतिदिन पटना के राजेन्द्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट को ब्लड का सैंपल भेजा जा रहा है.
गया में बच्चों की मृत्यु दर 25 प्रतिशत के लगभग है, उसमें किसी भी प्रकार की कमी नहीं आई है.