कामरेड रामपदारथ का निधन 15 जून 2019 की रात उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में उनके घर पर हो गया. वह लगभग 85 साल के थे.
कामरेड रामपदारथ का जन्म जिले की तहसील रानीगंज के दलित भूमिहीन मजदूर परिवार में हुआ था. उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत सीपीआई से की. भाकपा में रहते हुए उन्होंने सामंती उत्पीड़न के खिलाफ गरीबों की आवाज को बुलंद किया. उहोंने क्रांतिकारी सामाजिक सुधार आंदोलनों में भी जनता को गोलबंद किया. 1972 में दलित महिलाओं से बलात नाड़ा करवाने (महिलाओं का प्रसव कराने) व डांगर उठाने (मृतक पशुओं को उठाने) की जातिगत कुप्रथा के बिरुद्ध सफल आंदोलन चलाया. यह एक प्रकार का बेगार प्रथा थी, जिसमें इन दोनों कार्यों को करने पर श्रम का कोई मूल्य भुगतान नहीं किया जाता था. घरों में प्रसव कराने वाली महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार का घटनाएं होती थी. पशुओं को उठाने के एवज में चमड़े के सामान मुफ्त में, मसलन कृषि कार्य के सामान – कुएं से पानी निकलने के पात्र (मोट, चरस या पुर), हल व जुए को बांधने के लिए चमड़े का पट्टा, जूते-चप्पल आदि, मुफ्त में देने पड़ते थे. इस कुप्रथा के खिलाफ उन्होंने पट्टी तहसील में दलितों की सामाजिक हड़ताल आयोजित की और दलितों द्वारा इस कार्य को करने पर सामाजिक बहिष्कार का आंदोलन चलाया. दलितों के इस आंदोलन व जागरण से पूरे इलाके की सामंती शक्तियां गोलबंद हो गईं और उन्होंने दलितों पर गांव-गांव में हमला बोल दिया – ‘चमार सुधारो’ अभियान चलाया. इन हमलों के विरुद्ध का. रामपदारथ के नेतृत्व में रानीगंज थाने का घेराव किया गया. पुलिस और स्थानीय सामंतों ने थाने पर ही रामपदारथ पर हमला बोल दिया और उन्हें लाठियों से पीट कर अधमरा कर दिया. इस घटना के खिलाफ उनके नेतृत्व में जिला मुख्यालय पर हजारों की संख्या में धरना प्रदर्शन किया गया. धरने पर जातिवादी मानसिकता के वकीलों ने हमला किया लेकिन जवाब में जनता की लाठियां वकीलों पर भारी पड़ी. अंतत: आंदोलन की जीत हुई और प्रशासन ने इस जातिगत प्रथा पर रोक लगाई.
रामपदारथ जी नक्सलबाड़ी आदोंलन से काफी प्रभावित थे. 1980 के दशक में वह भाकपा(माले) में शामिल हुए. आईपीएफ उत्तर प्रदेश के वे उपाध्यक्ष भी रहे. आईपीएफ व भाकपा-माले से वह दो बार विधानसभा का चुनाव भी लड़े. जमीन, मजदूरी, व सामंती उत्पीड़न के खिलाफ उन्होंने कई सफल आंदोलनों का नेतृत्व किया. उन्होंने अपने इलाके में मजदूरी बढ़ाने के सवाल पर हड़ताल कराकर मजदूरी बढ़वाई. उनको स्कूली शिक्षा नहीं मिली थी. बावजूद इसके उन्होंने पार्टी में आकर पढ़ना सीखा. वह दैनिक समाचार पत्र के साथ पार्टी के साहित्य व मुखपत्र का नियमित रूप से गंभीर अध्ययन व बहस करते थे. साल 2002 में वह भवन निर्माण करते हुए दुर्घटना के शिकार हो गए जिसमें उनकी स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) टूट गई और शरीर लकवाग्रस्त हो गया. पार्टी में उनकी अटूट निष्ठा थी. वह फोन से हमेशा राजनीतिक सूचना लेते रहते थे. वह स्थानीय कार्यक्रमों में साथियों की मदद से व्हीलचेयर से भागीदारी करते थे. उनके नेतृत्व में प्रतिवर्ष रानीगंज कस्बे में अंबेडकर जयंती व भगत सिंह का शहादत दिवस कार्यक्रम मनाया जाता था. उन्हें बाजार के मुस्लिमों, दुकानदार, गरीब व प्रगतिशील सोच के सर्वसमाज का प्यार व सहयोग हासिल था. किसी भी कार्यक्रम के लिए उन्हें पैसे का कमी नहीं होती थी. उनकी याददाश्त काफी मजबूत थी. दिमागी तौर पर वह काफी सक्रिय थे. जनता के असीम प्यार व सहयोग के कारण शारीरिक विकलांगता उनको प्रभावित न कर सकी. उनके इलाज व अन्य खर्चों का प्रबंध लोग स्वत: कर देते थे और इसी से वह लंबी जिंदगी जी सके. उनका व्यक्तित्व हमेशा प्रेरणादायक बना रहेगा. कामरेड़ रामपदारथ को लाल सलाम !