असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) की प्रक्रिया में ऐसे अनेक उदाहरण मिले हैं जिनमें लोगों को उन व्यक्तियों के खिलाफ ‘आपत्ति आवेदन’ देने के लिए बाध्य किया जा रहा है जिनके नाम एनआरसी में दर्ज पाए जा रहे हैं.
सीजेपी (मुख्य न्यायिक अभियोजक) के पास असम के कोकराझाड़ जिले से कुछ लेागों ने शिकायतें भेजी हैं, जो दावा कर रहे हैं कि ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) के कुछ सदस्यों ने ऐसे दस ‘आपत्ति आवेदनों’ पर उनसे जबरन दस्तखत करवाए हैं.
जिला नागरिक पंजीकरण रजिस्ट्रार को संबोधित इन शिकायती चिट्ठियों में ऐसे तमाम लोगों की एआरएन संख्या दर्ज है जिनके खिलाफ उन शिकायतकर्ताओं को आपत्ति आवेदनों पर दस्तखत करने के लिए मजबूर किया गया है. इन सभी शिकायतकर्ताओं ने मांग की है कि जिन सच्चे निर्दोष नागरिकों के खिलाफ उनसे दस्तखत लिए गए हैं, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए.
शिकायतकर्ताओं ने अपनी चिट्ठियों में आपत्तियों को वापस ले लिया है और इसके बजाए एबीएसयू के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है, जिसने उन्हें झूठी आपत्तियों पर दस्तखत करने को मजबूर किया है. एबीएसयू सदस्यों द्वारा उत्पीड़न की ये घटनाएं दिसंबर 2018 में हुई थीं µ यानी, आपत्ति दर्ज कराने की अंतिम तिथि के ठीक पहले.
इसी बीच, असम के बदनाम हाजती शिविरों में बंद लोगों को बड़ी राहत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जिन लोगों को तीन वर्ष तक इन हाजतों में कैद रखा गया है, उन्हें कुछ शर्तों के साथ रिहा कर दिया जाए. असम के हाजती शिविरों के खस्ता हालात पर दायर याचिका की सुनवाई के दौरान यह निर्देश जारी किया गया है. न्यायालय इस बात पर भी सहमत है कि घोषित विदेशियों के निर्वासन के मामले में कूटनीतिक स्तर पर हुई प्रगति बताने और असम में विदेशियों के लिए अतिरिक्त ट्रिब्यूनल गठित करने की सूचना देने के लिए राज्य को अतिरिक्त समय दिया जाए. राज्य को यह भी कहा गया है कि वह गुवाहाटी उच्च न्यायालय के साथ सलाह-मशविरा कर विदेशियों के लिए ट्रिब्यूनल-गठन से संबंधित एक विस्तृत योजना बनाए जिसमें इन ट्रिब्यूनलों के सदस्यों व कर्मियों की नियुक्ति का भी विवरण रहे.
यह वही याचिका है जो सबसे पहले मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने दायर की थी. लेकिन जब हर्ष मंदर ने यह कहा कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने ‘विदेशियों’ के बारे में अपनी पूर्वाग्रहपूर्ण टिप्पणियों की रोशनी में खुद को इस मुकदमे से अलग कर लिया है, तो सर्वोच्च न्यायालय ने मंदर का नाम याचिकाकर्ता के बतौर हटा दिया और उनके बजाए सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा को मुख्य याचिकाकर्ता बना दिया.
याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से इन बातों का आग्रह किया गया है: