उन्होंने न तो कोई जुर्म किया था, न ही उन के पास से कोई हथियार या विस्फोटक सामान आदि मिला था। पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक तो उनके पास से बस कथित तौर पर सिर्फ कुछ आपत्तिजनक किताबें व तस्वीरें ही बरामद हुई थी। इसी “खतरनाक सामान” को अपने पास रखने के “जुर्म” में पंजाब के जिला शहीद भगत सिंह नगर (नवां शहर) की एक जिला स्तरीय अदालत ने 5 फरवरी 2019 को 28-29 साल उम्र के तीन सिक्ख युवकों को, खालिस्तान बनाने के लिए देश के खिलाफ जंग छेड़ने जैसे गंभीर “राजद्रोह” के अपराध में दोषी करार देकर उम्र कैद व एक-एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुना दी।
यह मामला सामने आते ही भाकपा(माले) की ओर से 9 फरवरी 2019 को इस न्यायिक मनमानी व अन्याय के खिलाफ मानसा के जिला अदालती परिसर के सामने एक आक्रोशपूर्ण धरना दिया गया जिसमें कई सिक्ख संगठनों के नेता भी शामिल हुए। मानसा जैसी जगह में यह धरना, पंजाब के भीतर व बाहर के जनवादी हलकों, सिक्ख बिरादरी के आम लोगों के बीच व सोशल मीडिया पर भारी चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां के लोग इस मनमाने अदालती फैसले के संबंध में मुंह तक न खोलने पर तमाम परम्परागत सिक्ख संगठनों व नेताओं के खिलाफ सख्त नाराजगी जाहिर कर रहे हैं, वहीं इस सही व निडर पहलकदमी के लिए भाकपा (माले) की व्यापक तारीफ भी हो रही है। अकाली दल खुद को सिक्खों का असली प्रतिनिधि बताता है, लेकिन यह बेहूदा मुकदमा मई 2016 में पंजाब में अकाली-भाजपा राज के दौरान ही दर्ज हुआ था।
- सुखदर्शन नत्त