पार्टी महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने विगत 2 मार्च को पटना के तारामंडल सभागार में वाल्टर हाउजर द्वारा लिखित ‘बिहार प्रोविंशियल किसान सभा 1929-1942, (ए स्टडी ऑफ इंडियन पीजेंट मूवमेंट) नामक किताब के लोकार्पण समारोह को संबोधित किया. यह समारोह चिंताहरण सोशल डेवलपमेंट ट्रस्ट द्वारा आयोजित था. लोकार्पण समारोह में शहर के बुद्धिजीवी बड़ी संख्या में मौजूद थे.
का. दीपंकर ने कहा कि किसान आंदोलन और स्वामी सहजानंद सरस्वती में वाल्टर हाउजर की लंबे समय तक दिलचस्पी बनी रही. अस्सी के दशक में जब हमलोगों का किसान आंदोलन शुरू हुआ तो शायद वाल्टर हाउजर ने हमें किसान आंदोलन की धारावाहिकता में देखा. यह केवल एक पीएचडी थीसिस लिखने भर का मामला नहीं है, बल्कि यह किसी एक काम में पूरा जीवन देने का मामला है. वाल्टर हाउजर ने किसान आंदोलन पर रिसर्च किया जबकि आज डेवलपमेंट पर रिसर्च हो रहा है जिसे कॉरपोरेट तय कर रहे हैं. इस किताब को आज के हिसाब से नहीं, पचास साल पहले के हिसाब से देखने की जरूरत है. 1942 में कम्युनिस्टों ने जो गलत लाइन ली इससे उन्होंने अलगाव झेला. लेकिन यह कोई स्थाई अलगाव नहीं था. किसान आंदोलन के बल पर कम्युनिस्ट आंदोलन फिर से खड़ा हुआ और बड़ी ताकत बना.
उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन से ही राष्ट्रीय आंदोलन को ताकत और पहचान मिली. लेकिन आज किसान कहां हैं? किसान कोई निष्क्रिय ताकत नहीं है. इसकी कोशिश होनी चाहिए कि वही देश का एजेंडा तय करने वाला बने. स्वामी सहजानंद ऐसे ही किसान नेता थे. उन्होंने सत्ता के समक्ष सच बोलने का साहस दिखाया. स्वामी जी के किसान आंदोलन, भगत सिंह के साम्राज्यवाद विरोध और अम्बेडकर के जाति उन्मूलन आंदोलन - आज इन तीनों को मिलाने की जरूरत है.
स्वागत वक्तव्य देते हुए प्रो नवल किशोर चौधरी ने कहा कि वाल्टर हाउजर ने सभी दस्तावेज़ों को संभाल कर रखा और बिहार के किसान आंदोलन पर महत्वपूर्ण कार्य किया है. 1927 में पश्चिम पटना किसान सभा की स्थापना हुई थी. स्वामी जी मानते थे कि जब तक किसान लिबरेट न होगा, बिना जमींदारी उन्मूलन के आज़ादी का आंदोलन आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है. ये दूसरी बात है कि भूमि सुधार का काम अब तक अधूरा है. सामाजिक न्याय की ताकतें इतनी जल्दी सत्ता में नहीं आतीं. कैलाश चन्द्र झा ने कहा कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और लेफ्टिस्ट पार्टी कार्यकर्ताओं की भर्ती के लिए किसान सभा पर निर्भर थी. आज जब देश में किसानों की समस्या केंद्र में आती जा रही है. इस संदर्भ में वाल्टर हाउजर की इस पी.एच. डी थीसिस का जो 1961 में पूरी हुई थी, महत्व काफी बढ़ गया है.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना सेंटर के पुष्पेंद्र ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन पर जो भी दस्तावेज़ हैं उनमें किसान आंदोलनों का बहुत कम जिक्र किया गया है. उसमें बारडोली के किसान आंदोलन का जिक्र मिलता है लेकिन बिहार के किसान आंदोलन का नहीं. के.के दत्ता ने भी अपने अकादमिक लेखन में इसे कम जगह दी है. इस कारण यह किताब बहुत महत्वपूर्ण घटना है. किसान कौन है? क्या बड़े जमींदारों को छोड़ बाकी सब किसान हैं. आंदोलन और संगठन किसका हो? इस पर आज भी काफी बहस है. स्वामी सहजानंद भी 1936 में खेत मज़दूरों का अलग संगठन बनाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन 1944 आते-आते इसके पक्ष में आ जाते हैं.
वयोवृद्ध वामपन्थी नेता गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने संबोधन में कहा कि स्वामी जी माक्र्सवाद के पंडित थे. वे 1945 के बिहटा सम्मेलन तक हमारे साथ रहे. आत्मनिर्णय के सवाल पर कम्युनिस्टों से उनका मतभेद हुआ. बाद में कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी गलती मानी. यदि स्वामी जी 1950 में नहीं मरते तो वामपंथियों को इकट्ठा कर विकल्प बना डालते और आज देश में भाजपा की नहीं बल्कि लेफ्ट की सरकार होती.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह ने कहा कि ये पुस्तक बेहद महत्वपूर्ण है. स्वामी जी भले कभी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य नहीं बने, लेकिन उन्होंने किसान आंदोलन को नई दिशा दी. इससे बहुत सारा बदलाव आया. रेवडा के समय से ही जमींदारी के खिलाफ संघर्ष शुरू हुआ. जमींदारी उन्मूलन आंदोलन का सबसे बड़ा श्रेय स्वामी जी को जाता है.
अवकाश प्राप्त प्रशासनिक पदाधिकारी व अध्येता मनोज कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि एक सन्यासी होकर बिहार के किसानों के दुख-दर्द को महसूस करते हैं. असमानता से अन्याय पैदा होता है. स्वामी जी ने असमानता पर बहुत चोट किया है. उस वक्त की तुलना में आज असमानता बहुत ज्यादा है. ऑक्सफेम के अनुसार अमेरिका में भी मात्र 1 प्रतिशत लोगों ने सारी संपत्ति हथिया ली है. नौकरशाही का गरीबों के प्रति जो दुर्भावना भरा रुख स्वामी जी के समय था, वह आज भी कायम है.
लोकार्पण समारोह को वाल्टर हाउजर की पुत्री शीला हाउजर और इतिहासकार प्रो. ओपी जायसवाल ने भी संबोधित किया. लोकार्पण समारोह का संचालन अनीश अंकुर और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सत्यजीत सिंह ने किया. समारोह में विधान सभा के पूर्व सभापति उदय नारायण चौधरी, विधान पार्षद महाचन्द्र प्रसाद सिंह, कवि आलोकधन्वा, चिकित्सक डॉ. श्री कृष्ण सिंह, भाकपा(माले) के राज्य सचिव कुणाल, वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत व प्रणव कुमार चौधरी, माध्यमिक शिक्षक संघ केअध्यक्ष केदार पांडे, प्रो. डेज़ी नारायण आदि समेत बड़ी संख्या में राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और संस्कृतिकर्मी मौजूद थे.