पुलवामा हमले और तदंतर भारत तथा पाकिस्तान द्वारा किए गए ‘हवाई हमलों’ के बाद इस उप महाद्वीप को खतरनाक युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया गया है. इन दो एटमी शक्ति संपन्न ताकतों के बीच ऐसा माहौल, जिसके साथ “एटमी शक्ति के इस्तेमाल की धमकी” से जुड़ी गैर-जिम्मेदार मीडिया चर्चा भी साथ-साथ चल रही है, इस उपमहाद्वीप और समूची दुनिया के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है.
पहले तो भारत ने बालाकोट, पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद प्रशिक्षण शिविर को निशाना बनाते हुए हवाई हमला किया. भारत का दावा है कि वह “भविष्य के आतंकी हमलों को रोकने के लिए की गई अ-सैन्य कार्रवाई” थी - यह सूत्रीकरण अंतरराष्ट्रीय जनमत को समझाने के लिए था; लेकिन देश के अंदर के राजनीतिक विमर्श में मोदी सरकार ने इसे पुलवामा हमले का प्रतिशोध लेने की कार्रवाई के बतौर ही पेश किया.
बदले में पाकिस्तान ने भारत के रजौरी में बम गिराये. एक भारतीय विमान को पाकिस्तान ने मार गिराया और उसके पायलट को पकड़ लिया. बहरहाल, पाकिस्तान ने उस पायलट को, प्रधान मंत्री के शब्दों में “शांति के संकेत” के बतौर, वापस भारत भेज दिया.
बहरहाल, शांति अभी कोसों दूर है और भारतीय व पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा नियंत्रण रेखा के आर-पार गोले लगातार दागे जा रहे हैं जिसमें बच्चे समेत आम नागरिक हताहत हो रहे हैं.
भारत दावा कर रहा है कि उसने अपनी हवाई कार्रवाई में जैशे-मोहम्मद आतंकी शिविर को नष्ट कर दिया और भारी संख्या में आतंकियों को मार डाला है - पाकिस्तान ने इन दावों को चुनौती दी है. बालाकोट की उस जगह का दौरा करने वाले स्वतंत्र पत्रकारों को ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला है, जिससे इतनी तादाद में आतंकियों के मारे जाने का भारत सरकार का दावा प्रमाणित हो सके; और सरकार ने भी अब तक सार्वजनिक रूप से ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया है. भारतीय वायु सेना ने भी स्पष्ट किया है कि वह इन हताहतों की संख्या का कोई अनुमान पेश करने की स्थिति में नहीं है. इस प्रकार, बालाकोट हवाई हमले के असर का ठीक-ठाक नतीजा अभी भी स्थापित होना शेष है.
इस पूरे-के-पूरे घटनाक्रम में भारत सरकार अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन नजर आई है. पुलवामा हमले के दौरान और इस हमले के कई घंटे बाद तक प्रधान मंत्री कॉर्बेट नेशनल पार्क में स्वयं के बारे में डिस्कवरी चैनल फिल्म की शूटिंग करवा रहे थे, और मोबाइल फोन के जरिए एक आम सभा को संबोधित कर रहे थे जिसमें उन्होंने इस हमले का कोई जिक्र नहीं किया.
उसके बाद से, वे प्रसन्नचित्त अर्ध-निर्मित परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाने, एक ‘फिटनेस एप’ को जारी करने, चुनावी रैलियों को संबोधित करने और यहां तक कि भाजपा के चुनावी बूथ कार्यकर्ताओं के साथ एक बड़ी ‘मेरा बूथ, सबसे मजबूत’ वीडियो कान्फ्रेंसिंग को भी संबोधित करने में मशगूल रहे - इस पूरे समय में उन्होंने उस भारतीय पायलट के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा जो उस वक्त भी पाकिस्तान के कब्जे में था. सर्वोपरि तो था संवेदनहीनता और गैर-जिम्मेदारी का उनका वह भयावह प्रदर्शन जब पाकिस्तानी प्रधान मंत्री द्वारा उस भारतीय पायलट को रिहा करने की मंशा जताने के ठीक बाद मोदी ने एक रहस्यात्मक टिप्पणी में वादा किया कि अभी तो ‘पायलट प्रोजेक्ट’ पूरा हुआ है, अब इसके बाद जल्द ही असल प्रोजेक्ट पूरा किया जाएगा.
इस हमले के बाद एक सप्ताह तक प्रतिरक्षा मंत्री किसी हरकत में नहीं दिखीं और ये हवाई हमले जबतक हो नहीं गए, तबतक उन्हें इसका कोई अता-पता भी नहीं था. उनकी अनुपस्थिति खुद प्रधान मंत्री और उनके सबसे करीबी पिट्ठुओं (जैसे कि उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल) के हाथों में निर्णयों और सूचनाओं के खतरनाक हद के संकेंद्रण की ओर संकेत करती है, जिसमें तमाम अनुभवी सलाहकारों तथा प्रोटोकॉल को दरकिनार कर दिया जाता है. यह स्थिति जारी है, जबकि इस बात के अनेक संकेतक हैं कि मोदी-डोभाल जोड़ी के सवालों के घेरे में आने वाले फैसलों ने उरी, पठानकोट और पुलवामा में हमले हो जाने के हालात पैदा करने में भूमिका निभाई है.
प्रधान मंत्री समेत भाजपा के नेतागण वोट बटोरने और सरकार से किए जाने वाले तमाम सवालों और उसकी आलोचना को दबा देने के लिए पुलवामा और इसके बाद की घटनाओं का खुल्लमखुल्ला इस्तेमाल करना चाहते हैं. कर्नाटक के पूर्व भाजपाई मुख्य मंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि पुलवामा और हवाई कार्रवाइयों ने मोदी की जीत पक्की कर दी है और इससे कर्नाटक में भी भाजपा को भारी विजय मिलेगी. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने किसी सबूत के बगैर दावा ठोंका है कि बालाकोट हवाई हमले में “250 से ज्यादा आतंकवादी” मारे गए हैं, और भारत ने पहली बार इस किस्म की प्रतिशोधात्मक कार्रवाई की है, जिससे भारत अब अमेरिका और इजरायल की श्रेणी में आ पहुंचा है. लेकिन शाह की इस शेखी को मोदी की कैबिनेट के केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया ने ही यह कह कर बेनकाब कर दिया कि उस हवाई हमले का मकसद सिर्फ “चेतावनी” देना था और कि सरकार ने हताहतों की संख्या के बारे में कोई आधिकारिक दावा पेश नहीं किया है.
मोदी स्वयं अपने बयानों के जरिए खुद की और अपनी सरकार की आलोचना को “भारत के प्रति नफरत” करार देने की कोशिश कर रहे हैं. तमिलनाडु में एक चुनावी रैली के दौरान इस तथ्य का इस्तेमाल करते हुए उस राज्य की जनता को अपनी जंगखोरी के एजेंडा के साथ खड़ा करने का हताशोन्मत्त प्रयास किया कि भारतीय पायलट अभिनंदन उस राज्य के निवासी हैं. उन्होंने यह झूठा दावा भी कर दिया कि निर्मला सीतारमण, जो तमिलनाडु से ही आती हैं, भारत की पहली महिला प्रतिरक्षा मंत्री हैं.
मोदी अब यह दावा करना चाहते हैं कि अगर भारत के पास राफेल जेट होते तो पुलवामा के बाद पाकिस्तान के साथ हुए टकराव का बेहतर नतीजा सामने आता. खुद उनकी ही दलाली में संपन्न हुए भ्रष्ट राफेल सौदे के बारे में उठे सवालों को खामोश कर देने के लिए बालाकोट हवाई कार्रवाई और जंगखोरी को एक भद्दे औजार के बतौर इस्तेमाल करने के अपने प्रयासों में मोदी ने दरअसल इस तथ्य को छिपा लेना चाहा कि बालाकोट कार्रवाई का शायद कोई नतीजा नहीं निकला है.
भाजपा की सोशल मीडिया ट्रॉल सेना और मोदी सरकार के पालतू टीवी चैनल तथा एंकर इसी युद्धखोरी में मशगूल हैं और वे मोदी के तमाम आलोचकों को ‘राष्ट्र विरोधी’ बता रहे हैं. इन मुठभेड़ों में जान न्योछावर करने वाले सैनिकों के परिजनों ने इस जंगबाजी और सैनिकों की मौतों के राजनीतिक इस्तेमाल के खिलाफ कई बार बयान दिए हैं. इनमें सबसे हालिया बयान दिया है विजेता मंडगावने ने, जो बडगाम में वायुयान दुर्घटना में मारे गए भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर निनाद मंडगावने की पत्नी हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर आम जनता से भावपूर्ण आह्नान किया है कि वे इस जंगखोरी से खुद को अलग रखें. उन्होंने मजबूती से कहा है कि वे इन युद्धों के और सीमा के किसी भी तरफ के सैनिकों की मौत का विरोध करती हैं. उन्होंने, इसके बजाय, नागरिकों से आह्नान किया है कि वे जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से सांप्रदायिक घृणा के खिलाफ लड़ें और महिलाओं के खिलाफ हिंसा से दूर रहें. उनके शब्द प्रधान मंत्री द्वारा ‘फालो’ किए जाने वाले अनेक सोशल मीडिया हैंडलों के मुंह पर करारा तमाचा हैं, जो सांप्रदायिक नफरत भड़काते हैं और भद्दी नारी-द्वेषी गालियां उगलते हैं, जिनमें सरकार पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ बलात्कार और हत्या की धमकियां भी शामिल हैं.
मारे गए सैनिकों के परिजनों की ऐसी अपीलें हमें याद दिलाती हैं कि प्रधान मंत्री की लापरवाह बोलियों के विपरीत कोई भी सैनिक “प्रोजेक्ट” नहीं है और यह भी कि युद्ध टीआरपी बढ़ाने और चुनावी लाभ बटोरने के लिए खेला जाने वाला कोई उन्मादी खेल नहीं होता है. भारत और पाकिस्तान, दोनों ही देशों में शांति के लिए कई साहसपूर्ण आवाजें उठी हैं. गैर-जिम्मेदार और अंधराष्ट्रवादी मीडिया खिलाड़ियों के रहते हुए भी पाकिस्तान के अंदर विपक्षी नेताओं ने और आम नागरिकों ने जिस तरीके से आतंकवाद के खिलाफ, शांति के लिए और पायलट अभिनंदन की सुरक्षित वापसी के लिए अपनी आवाज उठाई है, वह खास तौर पर स्वागत-योग्य है.
अनुभवों ने दिखाया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता बंद होने और युद्ध होने से पाकिस्तान की तरफ से आने वाले आतंकवाद को कभी नहीं कुचला जा सका है, बल्कि इससे कश्मीर विवाद के राजनीतिक समाधान की संभावना ही नष्ट हुई है. शांति की गारंटी करने और कश्मीर विवाद के स्थायी राजनीतिक समाधान की ओर आगे बढ़ने के लिए भारत और पाकिस्तान की सरकारों पर दबाव डालना निहायत जरूरी है.
चुनावी दौरे की औपचारिक शुरूआत की ओर चलते हुए हमें मोदी सरकार को यह इजाजत हरगिज नहीं देनी चाहिए कि वह भांडा फूट चुकी अपनी युद्ध योजनाओं से चुनाव को आच्छादित कर दे. चुनाव की अवधि मौजूदा सरकार की नीतियों और उसके कृत्यों की सघन जांच का समय होता है, और “पाकिस्तान तथा आतंकवाद का राष्ट्रविरोधी तुष्टीकरण” बताकर इस जांच और वाद-विवाद को दबा देने का कोई भी प्रयास संसदीय चुनावों का पूरा मखौल बना देने के बराबर होगा. कश्मीर और भारत-पाकिस्तान संबंध मोदी शासन की विफलता के सबसे बड़े क्षेत्र रहे हैं, और कश्मीर के अवाम के साथ-साथ सुरक्षा बलों ने किसी भी पूर्ववर्ती सरकार की बनिस्पत मोदी के शासन काल में कहीं ज्यादा नुकसान झेला है. भारतीय जनता को चुनाव में इस विनाशकारी सरकार को बाहर खदेड़ देना होगा ताकि शांति, लोकतंत्र और भारत की आम जनता के लिए कल्याण की संभावनाएं मजबूत बनाई जा सके.