बरेली बड़ा बाईपास के भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसान लंबे समय से अपनी जमीन के मुआवजे की लड़ाई लड़ रहे हैं. 2006 में इस भूमि अधिग्रहण का नोटिफिकेशन हुआ था. यह बड़ा बाईपास लखनऊ-दिल्ली एनएच पर बरेली शहर के बाहर एक रिंग रोड की तरह फोरलेन का है जो लखनऊ की तरफ से जाने पर बरेली शहर से पहले नरियावल से शुरू होकर बरेली-पीलीभीत व बरेली-नैनीताल रोड के ऊपर से गुजरता हुआ बरेली शहर से बाहर परसाखेड़ा में दिल्ली फोरलेन में जुड़ता है.
नेशनल हाइवे एथारिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) ने 2013 में जमीन पर कब्जा लेना और किसानों को मुआवजा देना शुरू किया. इस अधिग्रहण में उ.प्र. करार नियमावली (जिसका इसमें इस्तेमाल किया जाना था) को पूरी तरह रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया. मुआवजा तय करते समय किसानों से कोई सहमति नहीं ली गई और इस अधिग्रहण में शामिल 33 गांवों में मनमर्जी के आधार पर अलग-अलग रेट तय कर दिए गए. इसमें हुई गड़बड़ी का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि धंतिया-ट्यूलिया को 2013-14 के सर्किल रेट पर मुआवजा वितरण तय किया तो बाकी गांवों का 2008 के सर्किल रेट पर, यही नहीं इन दो गांवों को जिनका सर्किल रेट उस समय न्यूनतम 10 लाख रु. प्रति हेक्टेयर था, उन्हें मुआवजा 61 व 64 लाख रु. प्रति हेक्टेयर दिया गया जबकि मुडिया अहमदनगर जिसका न्यूनतम सर्किल रेट 33 लाख रु. प्रति हेक्टेयर और कुम्हरा जिसका 33 लाख रु. प्रति हेक्टेयर था उसे 25 लाख रु. यानी ध्ंतिया-ट्यूलिया को सर्किल रेट के न्यूनतम स्तर से 6 गुना से ज्यादा कम और कुम्हरा-मुडिया आदि गांवों को सर्किल रेट के न्यूनतम स्तर से 5 से 8 लाख रु. कम मुआवजा तय किया गया. इन दो गांवों को अलग से यह अनुकंपा इसलिए की गई की यह वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री व स्थानीय सांसद संतोष गंगवार का गांव है.
आश्चर्य तो यह होता है कि उस समय दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी और उ.प्र. में अखिलेश यादव की सपा सरकार. मगर वे सरकारें संतोष गंगवार पर जो यहां से भाजपा के 7 बार सांसद जीते हैं, इतना मेहरबान क्यों थीं? किसानों ने इस नाइंसाफी के खिलाफ 2013 से ही संघर्ष छेड़ दिया था. ‘मुआवजा नहीं तो रोड नहीं’ के नारे के साथ बड़ा बाईपास भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसान संघर्ष समिति के बैनर से यह लड़ाई शुरू हुई. 2013 में जब सरकार ने किसानों का दमन कर जबरन अधिग्रहण शुरू किया तभी से अखिल भारतीय किसान महासभा भी इस आंदोलन के साथ खड़ी हुई और इस किसान आंदोलन की अगुवाई की.
गांघी पार्क में 23 दिन के धरने, दामोदर पार्क में सामूहिक भूख हड़ताल, लालपुर-भूडा में जबरन अधिग्रहण के खिलाफ पुलिस किसानों का भीषण टकराव, फतेहगंज पश्चिमी में टोल प्लाजा पर 7 दिन की भूख हड़ताल जैसे दर्जनों आंदोलनात्मक कार्यक्रम, जिलाधिकारी कार्यालय, कमिश्नरी पर प्रदर्शन सहित लंबा आंदोलन बड़ा बाईपास किसानों ने लड़ा है और इन आंदोलनों की देन है कि अदालत में मुकदमा होने के बाद ही एनएचएआई जिला प्रशासन किसानों के साथ वार्ता करने को मजबूर हुआ. राज्य सरकार को अदालत के बाहर समझौते के द्वारा इस प्रकरण को हल करने की सहमति देनी पड़ी.
जिलाधिकारी बरेली ने किसानों की मांग को मानते हुए 2013-14 के सर्किल रेट पर बीच के रेट को मानक मान कर पांच साल का ब्याज सहित भुगतान देने की बात मान ली और शासन को संस्तुति पत्र भी लिख दिया. लेकिन इसके बाद भी एनएचएआई ने इस रेट पर भुगतान जारी नहीं किया. तब किसानों ने पुनः आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया.
किसानों ने कहा कि मोदी सरकार सरदार पटेल की मूर्ति बनाने में 3 हजार करोड़ रु. खर्च कर रही है, योगी सरकार कुंभ में 4 हजार करोड़ खर्च कर रही है मगर बरेली बड़ा बाईपास किसानों की जमीन का मुआवजे के 100 करोड़ रुपयों का भुगतान नहीं कर रही है. किसानों ने ‘मुआवजा नहीं तो रोड नहीं’ और ‘जमीन हमारी, रोड तुम्हारी, नहीं चलेगी’ नारे के साथ 25 जनवरी से बड़ा बाईपास के किसानों ने कुम्हरा गांव में किसान महासभा के बैनर तले अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया, 29 जनवरी से इस धरने में क्रमिक भूख हड़ताल शुरू हुई. धरना स्थल पर रोज ही सैकड़ों किसान दिन भर बैठते थे और रात को 30-40 किसान रहते थे जिनमें बड़ी संख्या महिलाओं की भी रहती थी. किसानों ने 30 जनवरी को लखनऊ-दिल्ली के इस हाईवे को जाम कर देने का ऐलान किया. उस दिन सुबह से ही काफी संख्या में पुलिस तैनात थी. मगर कड़ाके की ठंढ के बाद भी करीब एक हजार किसानों ने 12 बजे दिन में दिल्ली हाईवे जाम कर दिया. यह जाम सवा घंटे बाद इस आश्वासन पर टूटा कि अगले 24 घंटे में उच्च स्तरीय वार्ता कर मुद्दे का हल निकाला जायेगा. 31 जनवरी को और भी ज्यादा किसान जुटे. प्रशासन ने पुलिस की संख्या भी काफी बढ़ा दी. जिलाधिकारी कार्यालय में जिला प्रशासन, एनएचएआई मुरादाबाद परिक्षेत्र के परियोजना निदेशक व किसानों के बीच वार्ता हुई जो आश्वासन के अलावा कुछ न दे सकी. किसानों ने 3 फरवरी को धरना-भूख हड़ताल स्थल पर ही किसान पंचायत का ऐलान कर दिया और घोषणा की कि केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार किसान पंचायत में नहीं आए तो महिलाओं-बच्चों समेत किसान हजारों की तादाद में पंचायत स्थल से मंत्री के कार्यालय तक 8 कि.मी. मार्च करते हुए मंत्री का घेराव करेंगे. रविवार होने के कारण मंत्री भी बरेली में थे और उस दिन उ.प्र. सरकार के उप मुख्य मंत्री दिनेश शर्मा भी बरेली में थे. उस दिन बारिश होने से ठंढ़ भी ज्यादा बढ़ गई थी. फिर भी काफी संख्या में किसान जुटे. पुलिस-प्रशासन ने पंचायत स्थल को चारों तरफ से घेर रखा था. उस दिन भाकपा(माले) केंद्रीय कमेटी की सदस्य का. कृष्णा अधिकारी, किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव का. पुरुषोत्तम शर्मा और पीलीभीत के किसान नेता का. बाबूराम वर्मा भी आए और उन्होंने पंचायत को संबोधित किया.
किसानों के दबाव में मंत्री संतोष गंगवार को किसान पंचायत में आना पड़ा, किसानों के आंदोलन के दबाव में उन्होंने इस मुद्दों को हल करने का आश्वासन देते हुए 7 फरवरी को अपनी उपस्थिति में पुनः वार्ता बुलाने की घोषणा की. इसके बाद का. कृष्णा अधिकारी, पुरुषोत्तम शर्मा व एडीएम, सिटी द्वारा जूस पिलवाकर किसानों के भूख हड़ताल को तोड़वाया गया.
7 फरवरी को सर्किट हाउस में मंत्री संतोष गंगवार, जिलाधिकारी बरेली व किसानों के बीच वार्ता हुई और जिलाधिकारी की तरफ से प्रस्ताव बना कर मुआवजा प्रकरण में भूतल परिवहन केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से वार्ता करना तय हुआ. 13 फरवरी को दिल्ली में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के कार्यालय में मंत्री संतोष गंगवार और गडकरी की किसानों के साथ वार्ता हुई, 14 फरवरी को चीफ जनरल मैनेजर (भूमि अधिग्रहण) के साथ भी किसानों की वार्ता हुई. किसानों ने इस मुआवजे की लड़ाई को जीतने तक जारी रखने का संकल्प ले रखा है. अखिल भारतीय किसान महासभा बरेली के नेता हरिनंदन सिंह व प्रदेश सह सचिव अफरोज आलम किसानों के इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं.
- अरुण कुमार